क्या है जमानत राशि
किसी भी चुनाव में जब प्रत्याशी चुनाव लड़ता है तो पर्चा भरते वक्त उसे एक निश्चित रकम जमानत के तौर पर चुनाव आयोग में जमा करनी होती है। इसी राशि को चुनावी जमानत राशि कहते हैं। यह राशि कुछ मामलों में वापस दे दी जाती है अन्यथा आयोग इसे अपने पास रख लेता है।
किसी भी चुनाव में जब प्रत्याशी चुनाव लड़ता है तो पर्चा भरते वक्त उसे एक निश्चित रकम जमानत के तौर पर चुनाव आयोग में जमा करनी होती है। इसी राशि को चुनावी जमानत राशि कहते हैं। यह राशि कुछ मामलों में वापस दे दी जाती है अन्यथा आयोग इसे अपने पास रख लेता है।
कितनी होती है जमानत राशि
जमानत राशि हर चुनाव के आधार पर चुनाव आयोग की ओर से तय की जाती है और चुनाव के आधार पर अलग-अलग होती है। पंचायत के चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक जमानत राशि अलग-अलग होती है। यह राशि सामान्य वर्ग के लिए और आरक्षित वर्ग के लिए अलग-अलग होती है। वहीं एससी-एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को जनरल वर्ग के उम्मीदवारों के मुकाबले आदि राशि देनी होती है।
जमानत राशि हर चुनाव के आधार पर चुनाव आयोग की ओर से तय की जाती है और चुनाव के आधार पर अलग-अलग होती है। पंचायत के चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक जमानत राशि अलग-अलग होती है। यह राशि सामान्य वर्ग के लिए और आरक्षित वर्ग के लिए अलग-अलग होती है। वहीं एससी-एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को जनरल वर्ग के उम्मीदवारों के मुकाबले आदि राशि देनी होती है।
Loksabha Election 2019″ src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/06/06/chonav_4673292-m.jpg”>विधानसभा चुनाव के लिए जमानत राशि
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34(1)(ए) के अनुसार विधानसभा चुनाव में जनरल वर्ग के उम्मीदवारों को 10 हजार रुपये और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को 5 हजार रुपये जमा करने होते हैं। इससे पहले यह राशि काफी कम थी और सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 250 और एससी-एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को 125 रुपए राशि जमा करनी होती थी। हालांकि साल 2009 में इसमें बदलाव किया गया।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34(1)(ए) के अनुसार विधानसभा चुनाव में जनरल वर्ग के उम्मीदवारों को 10 हजार रुपये और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को 5 हजार रुपये जमा करने होते हैं। इससे पहले यह राशि काफी कम थी और सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 250 और एससी-एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को 125 रुपए राशि जमा करनी होती थी। हालांकि साल 2009 में इसमें बदलाव किया गया।
लोकसभा चुनाव के लिए जमानत राशि
वहीं बात लोकसभा चुनाव की कि जाए तो लोकसभा चुनाव में दावेदारी प्रस्तुत करने वाले जनरल वर्ग के उम्मीदवारों को 25 हजार रुपये और एससी-एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को 12,500 रुपये फीस जमा करनी होती है। 2009 से पहले जनरल वर्ग के लिए यह राशि 10 हजार रुपये और एससी-एसटी उम्मीदवार के लिए 5 हजार रुपये थी।
वहीं बात लोकसभा चुनाव की कि जाए तो लोकसभा चुनाव में दावेदारी प्रस्तुत करने वाले जनरल वर्ग के उम्मीदवारों को 25 हजार रुपये और एससी-एसटी वर्ग के उम्मीदवारों को 12,500 रुपये फीस जमा करनी होती है। 2009 से पहले जनरल वर्ग के लिए यह राशि 10 हजार रुपये और एससी-एसटी उम्मीदवार के लिए 5 हजार रुपये थी।
कब जब्त होती है जमानत
जब कोई प्रत्याशी किसी भी चुनाव क्षेत्र में पड़े कुल वैध वोट का छठा हिस्सा हासिल नहीं कर पाता है तो उसकी जमानत राशि जब्त मानी जाती है और नामांकन के दौरान दी गई राशि उन्हें वापस नहीं मिलती है। जैसे अगर किसी सीट पर 1 लाख लोगों ने वोट दिया है और उम्मीदवार को 16666 से कम वोट हासिल हुए हैं तो उसकी जमानत जब्त हो जाएगी।
जब कोई प्रत्याशी किसी भी चुनाव क्षेत्र में पड़े कुल वैध वोट का छठा हिस्सा हासिल नहीं कर पाता है तो उसकी जमानत राशि जब्त मानी जाती है और नामांकन के दौरान दी गई राशि उन्हें वापस नहीं मिलती है। जैसे अगर किसी सीट पर 1 लाख लोगों ने वोट दिया है और उम्मीदवार को 16666 से कम वोट हासिल हुए हैं तो उसकी जमानत जब्त हो जाएगी।
किसे वापस मिलती है जमानत राशि पार्षद चुनाव के लिए जमानत राशि
आपको बता दें कि ग्वालियर नगर निगम के महापौर विवेक शेजवलकर ने बुधवार को मेयर पर दे इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में अब महापौर के लिए चुनाव होना है। लेकिन नगर पालिका अधिनियम 1956 की धारा 21(1) के तहत जैसे ही मेयर का पद खाली होता है, तो राज्य सरकार,चुनाव आयोग को तत्काल सूचित करेगी।
आपको बता दें कि ग्वालियर नगर निगम के महापौर विवेक शेजवलकर ने बुधवार को मेयर पर दे इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में अब महापौर के लिए चुनाव होना है। लेकिन नगर पालिका अधिनियम 1956 की धारा 21(1) के तहत जैसे ही मेयर का पद खाली होता है, तो राज्य सरकार,चुनाव आयोग को तत्काल सूचित करेगी।
इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति यथास्थिति शेष कार्यकाल के लिए मेयर बनेगा। लेकिन यदि किसी नगर पालिका की शेष कालावधि छह माह से कम है तो ऐसी रिक्ति नहीं भरी जाएंगी।इसी तरह 21(2) के तहत जब तक उपधारा(1) के अधीन मेयर पद नहीं भरा जाए, तब तक के लिए मेयर के सारे अधिकार और कर्तव्य ऐसे निर्वाचित पार्षद द्वारा पालन किए जाएंगे,जैसा कि राज्य सरकार इस काम के लिए निर्दिष्ट करे।
ग्वालियर में नगर निगम चुनाव चूंकि इसी साल नवंबर में होना हैं और इसके लिए समय छह माह से कम बचा है, इसलिए मेयर पद के लिए फिलहाल चुनाव नहीं कराया जा सकेगा। ऐसे में अब इसी साल नवंबर माह में चुनाव होना है। जिसमें मेयर के साथ पार्षद के भी चुनाव होंगे। चुनाव के दौरान जनरल वर्ग के उम्मीदवार को 5000 रुपए और आरक्षित उम्मीदवार को 2500 रुपए की राशि जमानत के तौर पर जमा करनी होती है।
2014 में कितनी जब्त हुई थी जमानत राशि
साल 2014 में 8748 उम्मीदवारों ने दावेदारी प्रस्तुत की थी, जिसमें से 7502 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। यानी 7502 उम्मीदवारों को 16.6 फीसदी वोट हासिल नहीं हुए थे। आपको बता दें कि देश की सिर्फ ऐसी 6 सीटें थीं,जहां विजेता प्रत्याशी की ही जमानत बच पाई थी। इन सीटों में त्रिपुरा ईस्ट, त्रिपुरा वेस्ट,गाजियाबाद,सतारा व फरीदाबाद शामिल है। वहीं 2019 के चुनाव में भी कई उम्मीदवारों की जमानत राशि जब्त हो गई है।
साल 2014 में 8748 उम्मीदवारों ने दावेदारी प्रस्तुत की थी, जिसमें से 7502 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। यानी 7502 उम्मीदवारों को 16.6 फीसदी वोट हासिल नहीं हुए थे। आपको बता दें कि देश की सिर्फ ऐसी 6 सीटें थीं,जहां विजेता प्रत्याशी की ही जमानत बच पाई थी। इन सीटों में त्रिपुरा ईस्ट, त्रिपुरा वेस्ट,गाजियाबाद,सतारा व फरीदाबाद शामिल है। वहीं 2019 के चुनाव में भी कई उम्मीदवारों की जमानत राशि जब्त हो गई है।
कहा जाता हैं पैसा
आपको बता दें कि प्रत्याशियों की जमानत राशि जब्त होने पर जमा होने वाले पैसों को इलेक्शन अकाउंट में जमा किया जाता है।
आपको बता दें कि प्रत्याशियों की जमानत राशि जब्त होने पर जमा होने वाले पैसों को इलेक्शन अकाउंट में जमा किया जाता है।