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पहली बार संसद पहुंचा यह युवा,दिग्गज नेता को दी करारी शिकस्त

locationग्वालियरPublished: May 28, 2019 01:36:32 pm

Submitted by:

monu sahu

कांग्रेस की दिग्गज नेता की हार के बाद समर्थकों में मायूसी,सिंधिया कभी भी नहीं हारे गुना से

kp yadav

पहली बार संसद पहुंचा यह युवा,दिग्गज नेता को दी करारी शिकस्त

ग्वालियर। लोकसभा चुनाव खत्म होते ही अब देश और प्रदेश में चर्चा है तो केवल एक ही सीट की व एक ही नेता की,और वह है गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता सिंधिया की। लोकसभा चुनाव 2019 में गुना सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के युवा नेता केपी यादव ने सवा लाख मतों से हरा दिया है। इसके साथ ही यह युवा नेता व कभी सिंधिया का समर्थक रहे केपी यादव अब संसद पहुंच गए हैं। पिछले 67 साल से सिंधिया परिवार की रिजर्व गुना सीट पर इसी परिवार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया को शिकस्त देने वाले डॉ. केपी यादव ने राजनीति का क-ख-ग भी सिंधिया से ही सीखा।
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इतना ही नहीं वे सिंधिया के नजदीकी होने के साथ-साथ उनके हर कार्यक्रम में न केवल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, बल्कि सिंधिया के वाहन के आगे खड़े होकर सेल्फी भी लेकर अपनी फेसबुक पर शेयर करते थे। केपी के पिता की माधवराव सिंधिया से अच्छी मित्रता थी,इसलिए दोनों के बेटों की भी बचपन से ही नजदीकियां रहीं। मुंगावली में रहने वाले डॉ. केपी यादव के पिता रघुवीर सिंह यादव कांग्रेसी हैं तथा वे गुना जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
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रघुवीर सिंह की माधवराव सिंधिया से अच्छी मित्रता व नजदीकियां थीं,जिसके चलते यह पूरा परिवार ही कांग्रेसी रहा। चूंकि पिता की दोस्ती माधवराव सिंधिया से थी,इसलिए जब अपने पिता के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया उस क्षेत्र में आते थे,उनसे मिलने के लिए केपी यादव भी अपने पिता के साथ जाते थे। इसी दौरान ज्योतिरादित्य व केपी यादव की भी दोस्ती हो गई। समय गुजरने के साथ ही केपी यादव न केवल सिंधिया फैंस क्लब मप्र के उपाध्यक्ष रहे,बल्कि अशोकनगर जिला पंचायत में वे सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि भी रहे। केपी यादव की पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं।
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बीएएमएस डॉक्टरी की उपाधि लेने वाले केपी यादव का अपना क्लीनिक भी है और एक बड़ा अस्पताल जब उन्होंने 2015 में खोला था, तो उसका उद्घाटन भी सिंधिया ने ही किया था। चिकित्सीय कार्य के अलावा राजनीति में सक्रियता के चलते केपी यादव का नाम और पहचान बढ़ती गई। मुंगावली विधायक रहे महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के आकस्मिक निधन के बाद जब यहां वर्ष 2018 में उपचुनाव हुआ,तो केपी यादव ने पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया से टिकट की मांग की। लेकिन सिंधिया ने टिकट केपी को न देते हुए बृजेंद्र सिंह यादव को दिया।
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हालांकि बृजेंद्र सिंह भी उपचुनाव जीत गए थे। लेकिन टिकट न मिलने से केपी यादव की अपने ही नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से इतनी नाराजगी हो गई कि उन्होंने शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ले ली।केपी यादव के भाजपा में शामिल होते ही विधानसभा आम चुनाव में भाजपा ने उन्हें मुंगावली से अपना प्रत्याशी बनाया, जबकि कांग्रेस से बृजेंद्र सिंह यादव को ही पुन: टिकट दिया गया।
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इस चुनाव में केपी यादव ने कड़ी टक्कर दी, हालांकि वे 2100 वोट से हार गए थे। चूंकि गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में यादव वोटर की संख्या अधिक है, इसलिए जब सिंधिया के सामने चुनाव लडऩे के लिए कोई दूसरा प्रत्याशी भाजपा को नहीं मिला,तो फिर केपी यादव को ही मैदान में उतार दिया। केपी के चुनाव मैदान में आते ही सोशल मीडिया पर वो फोटो भी वायरल हुआ, जिसमें केपी खुद सिंधिया के साथ सेल्फी लेने के लिए उनके वाहन के आगे खड़े हुए हैं। राजनीति के इस मोड़ पर केपी यादव को भी यह भरोसा नहीं था कि एक समय ऐसा आएगा, जब वे सिंधिया के सामने न केवल चुनाव लड़ेंगे,बल्कि उन्हें शिकस्त भी देंगे।
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