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हर रोज लाखों लीटर दूध का निर्यात फिर भी मिलावटी चीजें खा रहे हम, ये है मुख्य वजह

locationग्वालियरPublished: Jul 26, 2019 07:30:48 pm

Submitted by:

monu sahu

अंचल के कस्बों-गांवों में जमी हैं मिलावटी दूध, मावा की जड़ें, बेधडक़ सप्लाई होता है दूसरे जिलों और राज्यों में

milk and paneer

हर रोज लाखों लीटर दूध का निर्यात फिर भी मिलावटी चीजें खा रहे हम, ये है मुख्य वजह

ग्वालियर। प्रदेश के चंबल संभाग के भिण्ड जिले में नकली दूध का कारोबार कई वर्षों से चल रहा है। जिले में 14 चिलिंग प्लांट और 125 डेयरी पंजीकृत हैं,जबकि जमीनी स्तर पर दो दर्जन चिलर प्लांट तथा करीब 500 डेयरियां घरों में चल रही हैं, जो नकली दूध और मावा बनाकर बेच रही हैं। औसतन दो से ढाई करोड़ रुपए कीमत का साढ़े चार से पांच लाख लीटर दूध हर रोज भिण्ड से बाहरी जिले और अन्य राज्यों के लिए निर्यात हो रहा है। दूध से क्रीम निकालने के बाद बेजान दूध में यूरिया, शैंपू, ग्लूकोज एवं डिटरजेंट के अलावा नाइट्रोक्स नाम का केमिकल मिलाया जाता है, जिससे नकली दूध का स्वाद और रंगत दोनों असली नजर आती हैं।
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इसमें 60 से 65 फीसदी नकली दूध निर्यात किया जा रहा है। फूड सेफ्टी विभाग के जिला कार्यालय में दो निरीक्षक व एक सहायक निरीक्षक सहित तीन लोगों का स्टाफ है। साल में एक या दो बार ही सैंपलिंग की कार्रवाई नजर में आती है। सैंपल जांच के लिए बाहर भेजे जाते हैं। इस कार्रवाई में लंबा समय लग जाता है, इसका फायदा उठाकर नकली दूध का कारोबार चलता रहता है।
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इन क्षेत्रों में डेयरी
अटेर : परा, प्रतापपुरा, सुरपुरा, फूप, गढ़ा, बलारपुरा, जवासा, दुल्हागन, एंतहार, चौम्हों, मसूरी, धरई, टीकरी, जार।
मेहगांव: हसनपुरा, प्रतापपुरा, अकलौनी, बीसलपुरा, आलमपुरा, मेंहदौली, रजगढिय़ा, सोनी, सुनारपुरा।
गोहद: क्षेत्र के खितौली, भगवासा, बिरखड़ी, जैतपुरा में बिना पंजीयन के डेयरी चल रही हैं।
लहार: बरथरा, कसल, रुरई, विशुनपुरा सहित एक दर्जन से ज्यादा गांवों में अवैध डेयरियां हैं।
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5 साल में विभाग ने एक बार भी नहीं की बड़ी कार्रवाई
फूड सेफ्टी विभाग की ओर से पांच साल में कोई ये हैं नकली दूध पर बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है। प्रति वर्ष दीपावली और होली जैसे त्योहारों पर दुकानों से मिठाई के सैंपल लेकर औपचारिकता की जाती है। इनकी रिपोर्ट आने में कई महीने लग जाते हैं। जब ये अमानक पाए जाते हैं तो नाम मात्र का जुर्माना लगता है।
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रिपोर्ट आने में लगते हैं कई महीने
मिलावट की पहचान करने के लिए छोटे शहरों और कस्बों में जांच लैब नहीं है, न ही जरूरी संसाधन हैं। यदि टीम मिलावटी खाद्य पदार्थ पकड़ती है तो अन्य राज्यों में जांच के लिए भेजा जाता है। इसकी रिपोर्ट आने में कई महीने लग जाते हैं। इससे कोई व्यक्ति मिलावट की शिकायत ही नहीं कर पाता। शिकायत से जांच तथा उसके बाद सजा होने तक की प्रक्रिया काफी लंबी है, इस कारण लोग आवाज उठाने से हिचकते हैं।
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ऐसे करें पहचान

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पहचान करना नहीं आता
एक दुकानदार ने बताया कि ग्राहक सिर्फ भरोसे पर खरीद करता है। मावा असली है या मिलावटी उसकी पहचान करना लोगों को नहीं आता। कुछ ग्राहक देसी तरीकों से मावे की असलियत पहचानने की कोशिश करते हैं, लेकिन सिंथेटिक मावे की पहचान के सारे देसी तजुर्बे बेअसर हैं।
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कसेंगे शिकंजा
भिण्ड कलेक्टर छोटे सिंह ने बताया कि नकली दूध के कारोबार पर शिकंजा कसा जाएगा। पुलिस का भी सहयोग लेंगे। लगातार छापामार कार्रवाई के लिए फूड सेफ्टी विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए जा रहे हैं। अमला बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।
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