
White Rice and Refined Flour Linked to Rising Diabetes and Obesity in India (फोटो सोर्स: AI image@Gemini)
White Rice Refined Flour Linked to Rising Diabetes : ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने देश भर में एक बहुत बड़ा सर्वे किया है जिसमें सामने आया है कि भारतीयों की खाने-पीने की आदतें तेजी से बदल रही हैं, और यही वजह है कि देश में डायबिटीज और मोटापा बढ़ रहा है। हमारी डाइट में ज्यादातर कार्बोहाइड्रेट 'लो-क्वालिटी' वाली चीजों से आ रहा है। इसमें मुख्य रूप से सफेद चावल, बारीक पिसा हुआ आटा (जिसके चोकर और पोषक तत्व निकल जाते हैं), और ढेर सारी एडेड शुगर शामिल हैं।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-भारत मधुमेह (ICMR-INDIAB) द्वारा किए गए अध्ययन में यह सिफारिश की गई है कि भारतीयों को इन आहारों की जगह वनस्पति, दूध और पशु-आधारित प्रोटीन का सेवन करना चाहिए।
नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि विभिन्न राज्यों में पोषक तत्वों के सेवन में उल्लेखनीय विविधता होने के बावजूद, अधिकांश भारतीयों को अपनी कैलोरी का 62% कार्बोहाइड्रेट से मिलता है, जो दुनिया में सबसे अधिक दरों में से एक है।
मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) के सहयोग से किए गए इस क्रॉस-सेक्शनल सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि कार्बोहाइड्रेट का एक बड़ा हिस्सा निम्न-गुणवत्ता वाले स्रोतों, जैसे सफेद चावल, पिसे हुए साबुत अनाज और अतिरिक्त चीनी से आता है।
दक्षिण पूर्व और पूर्वोत्तर में जहां सफेद चावल का प्रचलन है, वहीं उत्तर और मध्य क्षेत्रों में गेहूं ज्यादा खाया जाता है। इस अध्ययन में, जिसमें 36 राज्यों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 1,21,077 भारतीय वयस्कों का सर्वेक्षण किया गया, पाया गया कि उच्च कार्बोहाइड्रेट कैलोरी और उनके प्राथमिक खाद्य स्रोत डायबिटीज, प्री-डायबिटीज और मोटापे जैसे चयापचय संबंधी जोखिम में वृद्धि से जुड़े थे।
डॉ. वी. मोहन का कहना है कि अगर हम अपनी रोजाना डाइट में कार्बोहाइड्रेट (जैसे चावल, आटा) की थोड़ी सी मात्रा कम करके सिर्फ 5% कैलोरी पौधों से मिलने वाले प्रोटीन (जैसे दालें, सोयाबीन) या दूध से मिलने वाले प्रोटीन से पूरी कर लें, तो डायबिटीज और प्री-डायबिटीज का खतरा काफी कम हो जाता है।
उन्होंने ये भी बताया कि अगर कार्बोहाइड्रेट की जगह रेड मीट या फैट (तेल, घी) लिया जाए, तो उतना फायदा नहीं होता।
समस्या सिर्फ चीनी से नहीं है, बल्कि हम रोजमर्रा में चावल और गेहूं बहुत ज्यादा खा रहे हैं। यही आदत डायबिटीज और मोटापे जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे रही है।
प्रमुख लेखक और एमडीआरएफ के अध्यक्ष डॉ. आरएम अंजना ने कहा कि उनके निष्कर्ष स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि सामान्य भारतीय आहार, जिसमें सफेद चावल या गेहूं के आटे से प्राप्त कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है और गुणवत्ता वाले प्रोटीन की मात्रा कम होती है लाखों लोगों को जोखिम में डाल रहा है।
केवल सफेद चावल से साबुत गेहूं या बाजरे पर स्विच करना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि कुल कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम न हो जाए और ज्यादा कैलोरी वनस्पति या डेयरी प्रोटीन से प्राप्त न हो जाए।
वरिष्ठ वैज्ञानिक सुधा का कहना है कि चाहे लोग चावल ज्यादा खाएं या गेहूं, हर जगह ज्यादा कार्बोहाइड्रेट खाने से सेहत पर एक जैसा बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए जरूरी है कि सरकार की नीतियों और हेल्थ कैम्पेन में बदलाव हो, ताकि लोग ज्यादा दालें, दूध और प्रोटीन वाली चीजें खाएँ और कार्बोहाइड्रेट व ज्यादा तेल-घी कम लें।
डॉ. शिल्पा भूपतिराजू का कहना है कि संतृप्त वसा (जैसे ज्यादा तेल-घी) कम करना लोगों के लिए मुश्किल है, लेकिन अगर हम हेल्दी तेलों, दालों और फलियों को बढ़ावा दें, तो देश की सेहत में बड़ा सुधार हो सकता है।
अध्ययन में ये भी पता चला कि देश में बाजरा मुख्य रूप से सिर्फ तीन राज्यों – कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र में ही खाया जाता है। यहां लोग रागी, ज्वार और बाजरा जैसे अनाज खाते हैं और ये उनके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।
Published on:
01 Oct 2025 11:56 am
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