scriptLockdown: ‘मैं एक बदनसीब पिता हूं, जो आखिरी वक्त में अपने बच्चे के चेहरे को भी नहीं देख सका…’ | lockdown painful story of migrant labour ram pukar who lost his son | Patrika News

Lockdown: ‘मैं एक बदनसीब पिता हूं, जो आखिरी वक्त में अपने बच्चे के चेहरे को भी नहीं देख सका…’

locationनई दिल्लीPublished: May 18, 2020 06:17:11 pm

Submitted by:

Naveen

-Coronavirus: यह दर्दभरी दास्तां मजदूर रामपुकार पंडित की है, जो राजधानी दिल्ली की एक सड़क किनारे बैठे मोबाइल पर बात करते हुए जार जार रो रहा था।-Painful Story of Migrant Labour Ram Pukar: इस तस्वीर को सोशल मीडिया ( Social Media ) पर खूब साझा किया जा रहा है। बिहार के रहने वाले मजदूर रामपुकार की दास्तां सुनकर दिल्ली के अधिकारी भी भावुक हो गए।-Lockdown: रामपुकार की पत्नी ने 8 माह पहले ही बेटे को जन्म दिया था। जिसकी इलाज के अभाव में तीन दिन मौत हो गई।

lockdown painful story of migrant labour ram pukar who lost his son

नई दिल्ली।
coronavirus ‘साहब! मैं एक बदनसीब पिता हूं जो आखिरी वक्त में अपने बच्चे का चेहरा भी नहीं देखा सका। मेरे 8 माह के बच्चे ने दुनिया को अलविदा कह दिया…वो बच्चा जिसके लिए मैंने लाखों मन्नतें मांगी थीं…बड़े से बड़े मंदिरों में जाकर माथा टेका..तब जाकर 8 साल बाद घर में एक किलकारी गूंजी थी। उसकी मौत हुए तीन दिन हो चुके हैं…साहब! मैं अमीर नहीं हूं जो आपको पैसे देकर घर जा सकूं। आप मुझे पैदल ही घर जाने दो, ताकि इस मुश्किल घड़ी में घर में पत्नी को हिम्मत बंधा सकूं…’

यह दर्दभरी दास्तां मजदूर रामपुकार पंडित की है, जो राजधानी दिल्ली की एक सड़क किनारे बैठे मोबाइल पर बात करते हुए जार जार रो रहा था। उसकी यह भावुक तस्वीर देशभर के प्रवासी मजदूरों के लिए प्रतीक बन गई। इस तस्वीर को सोशल मीडिया ( Social Media ) पर खूब साझा किया जा रहा है। बिहार के रहने वाले मजदूर रामपुकार की दास्तां सुनकर दिल्ली के अधिकारी भी भावुक हो गए।

इसके बाद उसे बिहार पहुंचाने के लिए इंतजाम किया गया। पूर्वी जिले के जिलाधिकारी अरुण कुमार मिश्रा ने रामपुकार के लिए नई दिल्ली से बिहार जाने वाले विशेष ट्रेन में मजदूर के लिए सीट का इंतजाम किया। एसडीएम संदीप दत्ता ने मजदूर को स्टेशन तक पहुंंचाया और उनके लिए खाने पीने की व्यवस्था की।

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भले ही रामपुकार अपने मूल राज्य बिहार पहुंच गया है लेकिन वह अभी तक अपने परिवार से मिल नहीं पाया है। कोरोना वायरस ( Coronavirus ) के कारण प्रवासी मजदूरों पर संकट को दर्शाती इस तस्वीर को आज पूरा देश जानता हैं। पीटीआई के फोटोग्राफर अतुल यादव ने बेतहाशा रो रहे रामपुकार की तस्वीर ली थी, जो आज प्रवासी संकट का चेहरा बन गई है।

8 माह के बेटे की मौत
बिहार के बेगूसराय के रहने वाले राम पुकार ने बताया कि वह दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में मजदूरी करते हैं। बिहार में उनकी पत्नी व दो बेटियां रहती हैं। लाख मन्नतों के बाद 8 साल बाद घर में एक बच्चे की किलकारी गूंजी थी। उनकी पत्नी ने 8 माह पहले ही बेटे को जन्म दिया था। कुछ दिनों से बच्चे की तबीयत खराब थी। लॉकडाउन के कारण पत्नी डॉक्टर को नहीं दिखा सकी।

तीन दिन पहले उसकी मौत हो गई। वह दिल्ली में फंसा हुए थे और बिहार जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला तो पैदल ही निकल पड़े। इसी बीच दिल्ली-यूपी गेट पर पुलिस ने रोक लिया। दो दिन तक भूखे-प्यासे सड़क पर रहे, उन्होंने अपनी परेशानी एक पुलिसकर्मी को बताई, उन्होंने जिलाधिकारी से संपर्क करवाया। वह इस समय बेगुसराय के बाहर एक गांव के स्कूल में पृथक-वास केंद्र में रह रहे है।

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