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Smart City: करोड़ों रुपए खर्च के बाद भी ‘स्मार्ट’ नहीं बन पाए राजस्थान के ये 4 शहर

Smart City Project: स्मार्ट सिटी का सपना अब बेतरतीब पसरते शहरों की हकीकत में बदल रहा है। लोगों को स्मार्ट सुविधाएं देने के बजाय शहरों का आकार लगातार बढ़ रहा है।

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jaipur

पत्रिका फाइल फोटो

जयपुर। स्मार्ट सिटी का सपना अब बेतरतीब पसरते शहरों की हकीकत में बदल रहा है। लोगों को स्मार्ट सुविधाएं देने के बजाय शहरों का आकार लगातार बढ़ रहा है। केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल चार शहर जयपुर, अजमेर, कोटा और उदयपुर में करोड़ों खर्च करने के बावजूद वादों के मुकाबले परिणाम फीके हैं। शहरवासियों का स्मार्ट सुविधाओं से युक्त करने का सपना भी हकीकत नहीं बन सका है।

भले ही सरकारी रिपोर्ट में 95 प्रतिशत प्रोजेक्ट पूरे होने का दावा है, लेकिन धरातल पर स्मार्ट ट्रैफिक, क्लीन एनवायरनमेंट और डिजिटल गवर्नेंस जैसी सुविधाएं सिर्फ रिपोर्टों और बोर्डों तक सीमित है। स्मार्ट लिविंग के लिए जो कंसेप्ट तय किए, उन पर अफसरों की मनमानी और नेताओं की राजनीति हावी होती गई।

‘एरिया बेस्ड डवलपमेंट’ (एबीडी) के तहत तय की गई रकम का बड़ा हिस्सा मनमाने तरीके से अन्य कामों में शिफ्ट कर दिया गया। सांसदों की निगरानी समिति तक इस पर सवाल उठा चुकी है, मगर जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कुल 447 परियोजनाएं स्वीकृत की गई थी, जिनमें से 428 से ज्यादा पूरे होने का दावा है।

विश्व शहर दिवस के मौके पर राजस्थान पत्रिका की पड़ताल में सामने आया, अधिकांश प्रोजेक्ट में उद्देश्य सिर्फ दिखावे तक सिमटा। नतीजा यह रहा कि स्मार्ट ट्रैफिक, क्लीन एनवायरनमेंट और डिजिटल गवर्नेंस जैसी योजनाएं केवल बोर्डों और रिपोर्टों में दिखाई देती हैं। शहरवासी आज भी जाम, गंदगी से जूझ रहे हैं, जबकि सरकारें ‘काम पूरा’ बताकर संतुष्टि का दावा कर रही हैं।

जयपुर: जर्जर बरामदे आज भी जस के तस

जयपुर में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत करोड़ों खर्च हुए, पर जनता को ठोस लाभ नहीं मिला। परकोटा में फसाड़ कार्य पर 10 करोड़ खर्च हुए, पर दीवारों पर काई और जर्जर बरामदे आज भी जस के तस हैं। 140 करोड़ की भूमिगत पार्किंग (रामनिवास बाग, चौगान स्टेडियम, चांदपोल मंडी आदि) अधिकतर खाली रहती हैं। स्मार्ट टॉयलेट पर 3.91 करोड़ खर्च कर 50 यूनिट लगाए गए, लेकिन अब ज्यादातर बंद या गायब हैं। सीवर सेंसर लगाने पर चार करोड़ खर्च हुए, तीन साल में एक बार भी काम नहीं आए। वाई-फाई डिवाइस पर तीन करोड़ खर्च कर 200 डिवाइस लगाए गए (किशनपोल, अजमेरी गेट, नेहरू बाजार और सांगानेरी गेट सहित कई बाजार) पर उपयोग नगण्य है।
मुख्य प्रोजेक्ट: फसाड़ वर्क और परकोटा सौंदर्यीकरण, भूमिगत पार्किंग निर्माण, स्मार्ट टॉयलेट और सेंसर सिस्टम, नि:शुल्क वाई-फाई सुविधा

उदयपुर: जलापूर्ति, कनेक्टिविटी में कमी

झीलों की नगरी उदयपुर में करोड़ों खर्च के बावजूद शहर बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्षरत है। सभी प्रोजेक्ट पूरे घोषित किए गए, लेकिन 24 घंटे जलापूर्ति, सफाई व्यवस्था और आइटी कनेक्टिविटी अब भी अधूरी है। कई इलाकों में लीकेज, कम प्रेशर और पुरानी पाइपलाइन की समस्या बनी हुई है। स्मार्ट रोड और सेफ लेन के काम कई जगह खराब निकले। फुटपाथ अतिक्रमण और ट्रैफिक अव्यवस्था से जनता परेशान है। कचरे से खाद निर्माण सफल रहा, लेकिन बिजली उत्पादन प्रोजेक्ट तकनीकी कारणों से ठप है।
मुख्य प्रोजेक्ट: आयड़ नदी सौंदर्यीकरण एवं संरक्षण, फ्लाईओवर और ट्रैफिक सुधार, हैरिटेज भवनों का पुनरुद्धार, अंदरूनी शहर में सीवरेज नेटवर्क बिछाना

कोटा: अधूरा रहा अभय कमांड एरिया

कोटा में स्मार्ट सिटी के अधिकांश प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं, लेकिन अभय कमांड एरिया विकास प्रोजेक्ट तकनीकी कारणों से अधूरा रह गया। शहर में सिग्नल फ्री सिटी, ऑक्सीजोन सिटी पार्क, आधुनिक कचरा ट्रांसफर स्टेशन, फिल्टरेशन प्लांट और फ्लाईओवर निर्माण जैसे कार्यों से शहर की तस्वीर बदली है। एमबीएस और जेके लोन अस्पतालों में नए भवन, मॉर्डन मोर्चरी, खेल संकुल और श्रीनाथपुरम व सकतपुरा के फिल्टरेशन प्लांट प्रमुख उपलब्धियां हैं।
मुख्य प्रोजेक्ट: ट्रैफिक सिग्नल फ्री सिटी, ऑक्सीजोन सिटी पार्क निर्माण, आधुनिक कचरा ट्रांसफर स्टेशन, पेयजल सुदृढ़ीकरण के तहत फिल्टरेशन प्लांट

अजमेर: एलिवेटेड रोड की आगरा गेट भुजा पर दरारें

अजमेर में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 90 प्रतिशत कार्य पूरे हो चुके हैं। 275 करोड़ की लागत से बना एलिवेटेड रोड की आगरा गेट भुजा पर दरारें आने से दोबारा खोदा गया। जेएलएन अस्पताल में सर्जिकल विभाग भवन और ईदगाह-लोहागल में 50 करोड़ से वाटर रिजर्वायर निर्माण कार्य प्रगति पर हैं। टीबी अस्पताल परिसर में सुपर स्पेशलिटी विंग के लिए 192 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं। हालांकि, गुणवत्ता और स्थायित्व पर सवाल बने हुए हैं।
मुख्य प्रोजेक्ट: एलिवेटेड रोड (275 करोड़), वाटर रिजर्वायर निर्माण (50 करोड़), सुपर स्पेशलिटी विंग (192 करोड़), सर्जिकल विभाग भवन निर्माण

एक्सपर्ट व्यू - स्मार्ट सिटी मिशन: सपनों का शहर अब भी अधूरा

स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य कभी भी सिर्फ चमकदार इमारतें या रंगी हुई दीवारें बनाना नहीं रहा। इसका मकसद ऐसे शहर तैयार करना था जहां नागरिकों को बेहतर बुनियादी ढांचा, स्वच्छ वातावरण, उच्च जीवन स्तर और तकनीकी समाधान एक साथ मिलें। शहरों को आधुनिक सुविधाओं से जोड़ने की दिशा में यह देश का एक बड़ा और दूरदर्शी कदम था। राजस्थान से जयपुर, उदयपुर, कोटा और अजमेर को इस मिशन में शामिल किया गया, जिनके लिए बड़े बजट और महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई गईं।

मिशन के प्रमुख लक्ष्य थे स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट मोबिलिटी, स्वच्छ शहर, प्रभावी प्रशासन और सांस्कृतिक व धरोहर संरक्षण। उदयपुर ने इन लक्ष्यों की दिशा में कुछ सकारात्मक उदाहरण जरूर दिए, लेकिन बाकी शहरों में काम उम्मीद के अनुरूप नहीं हो सका। योजनाओं का फोकस ‘स्मार्ट लुक’ पर अधिक रहा, जबकि ‘स्मार्ट लिविंग’ की मूल भावना कहीं पीछे छूट गई।

धीमी प्रगति के पीछे कई वजहें रहीं- काम में देरी, ठेकेदारों और अधिकारियों की शिथिलता, बार-बार प्रशासनिक फेरबदल, भूमि अधिग्रहण की जटिलताएं, विभागों के बीच तालमेल का अभाव और तकनीकी विशेषज्ञों की कमी। जनता की सीमित भागीदारी ने मिशन के वास्तविक उद्देश्यों को और कमजोर किया। दिखावे पर आधारित परियोजनाओं ने जरूरतमंद क्षेत्रों (जैसे कचरा प्रबंधन, पेयजल आपूर्ति और सीवरेज प्रणाली) को पीछे धकेल दिया। परिणामस्वरूप, जिन सुधारों की अपेक्षा थी, वे धरातल पर दिखाई नहीं दिए।
-एच.एस. संचेती, पूर्व मुख्य नगर नियोजक, राजस्थान