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Rajasthan Election Result Countdown : जीत के दावे के बावजूद कांग्रेस-BJP की बाड़ाबंदी, सामने आई ये ख़ास और नई वजह !

Rajasthan Assembly Election 2023 : 3 दिसंबर को लेकर दोनों पार्टियों के आलाकमान को सरकार बनाने लिए बाड़ाबंदी से लेकर बागियों पर डोरे डालने तक की तैयारी करनी पड़ी है। इन तैयारियों का उपयोग दोनों ही दलों के आलाकमान को कितना और कैसे करना पड़ेगा यह उस दल को मिलने वाली सीटों की संख्या पर निर्भर करेगा।

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Rajasthan Assembly Election 2023 Result Congress BJP final Strategy

दौलत सिंह चौहान/ जयपुर।

राजस्थान में एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद कांग्रेस ही नहीं, बल्कि भाजपा ने भी संभावित जिताऊ बागियों और निर्दलीयों को साधने के प्रयास जिस कदर तेज किए हैं, उससे 3 दिसंबर को आने वाले चुनाव परिणामों को लेकर लोगों की जिज्ञासा और ज़्यादा बढ़ गई है।

नतीजों को लेकर बड़ा कन्फ्यूजन

राजस्थान में 30 साल से भाजपा और कांग्रेस के बीच पांच-पांच साल सत्ता की बारी बंधी हुई है, ऐसे में यहां चुनाव परिणाम के अनुमान को लेकर विश्लेषकों को बहुत माथापच्ची जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन 2023 के चुनाव की शुरुआत ही राज या रिवाज के नारे के साथ हुई। मतलब कांग्रेस जहां रिवाज बदलने के दावे के साथ तो भाजपा राज बदलने के संकल्प के साथ चुनाव मैदान में उतरीं। दोनों ही दलों का पूरा चुनाव अभियान ही इसी पर आधारित रहा। इसी के चलते हालात ऐसे बने कि नतीजों को लेकर बड़ा कन्फ्यूजन चल रहा है।

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प्रदेश के नेताओं पर नहीं भरोसा

अब नतीजे आने से पहले जिस तरह अपने-अपने विधायकों की बाड़ाबंदी और बागियों और निर्दलीयों को साधने की तैयारियां दोनों दलों के आलाकमान ने अपने स्तर पर की है, उससे साफ है कि चुनाव के नतीजे आने बाद के हालात को लेकर आलाकमान को प्रदेश स्तर के नेताओं में आपसी मतभेदों को देखते हुए उन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है। किसी भी पार्टी की एकतरफा जीत होने पर ही आलाकमान थोड़ा राहत में रह सकता है। अन्यथा मामूली बहुमत या बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में इस बार दोनों ही दलों के राष्ट्रीय नेताओं को सरकार बनाने में चुनाव से पहले से भी ज्यादा पसीना आने वाला है।

दोनों दल रहे अंतर्कलह से पीड़ित

इस बार के घमासान में एक बात दोनों ही दलों में समान रही वह थी, पार्टी नेताओं के बीच मतभेद, खींचतान और महत्वाकांक्षा जनित अंतर्कलह। कांग्रेस में जहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खुली लड़ाई हुई और बात सड़क तक पहुंच गई, और लंबे समय तक आलाकमान असहाय सी स्थिति में रहा। बाद में 25 सिंतबर की घटना ने तो कांग्रेस आलाकमान को पूरी तरह से एक्सपोज कर दिया। अशोक गहलोत ने हालांकि उसके लिए माफी मांगी, मगर उससे पार्टी को हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई। कांग्रेस में अध्यक्ष पद पर मल्लिकार्जुन खरगे के चुनाव के बाद जरूर गहलोत-पायलट में दिखावटी सुलह करा दी गई और दोनों को सुर चुनाव के मतदान तक बने रहे। लेकिन यह ‘शांति समझौता’ क्या 3 दिसंबर को चुनावी नतीजों के बाद भी जारी रहेगा? यह सवाल अभी भी महत्वपूर्ण है।

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खत्म नहीं हुए मतभेद

दूसरी ओर भाजपा में नेताओं के आपसी मतभेद सड़कों पर भले ही नहीं आए हों लेकिन उनकी आंच कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई से कतई कम नहीं रही। प्रदेश अध्यक्ष पद के सतीश पूनिया की विदाई तक बात गई। भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेताओं के आपसी मतभेद भाजपा का आलाकमान पूरी ताकत लगाकर भी दूर नहीं कर पाया। भाजपा आलकमान ने प्रत्याशियों की पहली सूची में प्रदेश नेताओं के कई करीबियों को दरकिनार कर टिकट दिए तो उसका जिस तरह खुल कर विरोध हुआ, उसने पार्टी के अंदरूनी हालात को सामने ला दिया। आगे की बाकी सूचियों में डेमैज कंट्रोल के लिए कोशिशें की गई। भाजपा का मजबूत आलाकमान भी नेतृत्व के मुद्दे पर राजस्थान के नेताओं में एकराय कराने में कामयाब नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री ने भरी सभा में यहां तक कहा कि भाजपा का और कोई चेहरा नहीं कमल का फूल ही चेहरा है।

बाड़ाबंदी विपक्ष के डर से नहीं

इन हालात में 3 दिसंबर को लेकर दोनों पार्टियों के आलाकमान को सरकार बनाने लिए बाड़ाबंदी से लेकर बागियों पर डोरे डालने तक की तैयारी करनी पड़ी है। इन तैयारियों का उपयोग दोनों ही दलों के आलाकमान को कितना और कैसे करना पड़ेगा यह उस दल को मिलने वाली सीटों की संख्या पर निर्भर करेगा।