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राजस्थान में फीस एक्ट बना ‘बेजान कानून’, अभिभावक परेशान, शिक्षा विभाग बना है तमाशबीन

Rajasthan New Fees Act : राजस्थान में नया फीस एक्ट लागू है। पर प्रदेश में बिना डरे स्कूल हर साल मनमानी फीस वृद्धि कर रहे हैं। अभिभावक परेशान है क्या करे? उधर शिक्षा विभाग तमाशबीन बना हुआ है। पढ़े यह रिपोर्ट।

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Rajasthan Fee Act lifeless law Parents Worried Education Department is a mere spectator

ग्राफिक्स फोटो पत्रिका

Rajasthan New Fees Act : दिल्ली में नया फीस एक्ट लागू होने के साथ ही अभिभावकों को मनमानी फीस वृद्धि से राहत मिल गई है। लेकिन राजस्थान के अभिभावकों का दर्द अब भी जस का तस है। वजह साफ है, यहां आठ साल पहले फीस एक्ट तो बना, मगर इसकी पालना कभी नहीं हो पाई। नतीजा यह कि हर नए सत्र के साथ अभिभावकों की जेब ढीली होती जा रही है और निजी स्कूल मनमर्जी से फीस बढ़ाते जा रहे हैं। दरअसल दिल्ली में दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) अधिनियम, 2025 लागू होने के साथ ही निजी स्कूलों को मनमानी फीस वृद्धि पर रोक लग गई है लेकिन प्रदेश में शिक्षा विभाग तमाशबीन बना हुआ है।

राजधानी जयपुर में ही 50 से अधिक बड़े और करीब पांच हजार छोटे निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकतर हर सत्र में फीस बढ़ाते हैं। एक्ट होने के बावजूद न अभिभावकों की सुनवाई हो रही है और न ही स्कूलों पर कोई सख्ती। अभिभावक संगठनों का कहना है कि विभाग की ढिलाई ने फीस एक्ट को ‘बेजान कानून’ बना दिया है।

ये हैं फीस एक्ट के प्रावधान, जिनकी पालना अब तक नहीं

1- नया सत्र शुरू होने के 30 दिन के भीतर स्कूलों को पेरेंट्स-टीचर्स एसोसिएशन (पीटीए) का गठन करना अनिवार्य है।
2- हर अभिभावक और शिक्षक इसका सदस्य होता है।
3- 15 अगस्त से पहले पीटीए के सदस्यों में से स्कूल लेवल फीस कमेटी (एसएलएफसी) का चुनाव लॉटरी से किया जाना चाहिए।
4- इस कमेटी में 10 सदस्य-पांच स्कूल और पांच अभिभावक शामिल होते हैं।
5- कमेटी द्वारा तय की गई फीस तीन साल तक लागू रहती है।
6- तय फीस की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी को भेजी जाती है।
7- संभाग और राज्य स्तर पर भी फीस निर्धारण कमेटियां गठित होनी चाहिए।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ज्यादातर निजी स्कूल न तो पीटीए का गठन करते हैं और न ही कमेटियों की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी को देते हैं। जयपुर में महज 10 फीसदी स्कूलों की कमेटियों की सूचना विभाग के पास दर्ज है।

अधिकांश स्कूल बिना कमेटी गठित किए हर साल बढ़ा रहे फीस

सत्र शुरू होते ही हजारों अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि की शिकायतें करते हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती। शिक्षा विभाग स्कूलों को नोटिस तो भेजता है, लेकिन आगे कोई ठोस कदम नहीं उठाता। पिछले सत्र में एक निजी स्कूल पर संभागीय फीस विनियामक समिति ने कार्रवाई करते हुए फीस वृद्धि को नियम विरुद्ध माना था। यह फीस एक्ट 2017 के तहत राजस्थान की पहली कार्रवाई थी। लेकिन उसके बाद से विभाग ने न तो किसी अन्य स्कूल पर सख्ती की और न ही कमेटियों की जांच की। राज्यभर में 38 हजार निजी स्कूल संचालित हैं, जिनमें से जयपुर जिले में ही पांच हजार से अधिक स्कूल हैं। अधिकांश स्कूल बिना कमेटी गठित किए ही हर साल फीस बढ़ा रहे हैं।

अभिभावक संगठनों का दर्द

फीस एक्ट का असली फायदा अभिभावकों को नहीं मिला। स्कूलों की मनमानी से हर साल जेब पर बोझ बढ़ रहा है, लेकिन विभाग और सरकार खामोश हैं। अगर दिल्ली फीस एक्ट को कड़ाई से लागू कर सकती है, तो राजस्थान में क्यों नहीं?
दिनेश कांवट, अध्यक्ष, पेरेंट्स वेलफेयर सोसायटी