
परिजनों ने बताई कहानी (फोटो- पत्रिका)
SMS Hospital Fire: एसएमएस अस्पताल का ट्रॉमा सेंटर रविवार देर रात किसी नर्क से कम नहीं था। रात 11:20 बजे न्यूरो आईसीयू से उठता धुआं देखते ही देखते मौत की खबर में बदल गया।
बता दें कि जिन मशीनों पर मरीजों की जिंदगी टिकी थी, वही जहर उगलने लगीं। मिनटों में पूरा आईसीयू धुएं से भर गया और अफरा-तफरी मच गई। भरतपुर के शेरू की मां भी उस हादसे की चपेट में थीं।
शेरू ने बताया, धुआं 20 मिनट पहले ही उठना शुरू हुआ था। हमने स्टॉफ को बताया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। प्लास्टिक की ट्यूब पिघलने लगी और वार्ड बॉय वहां से भाग गए। हमने खुद अपनी मां को बाहर निकाला। उनके मुताबिक, दो घंटे बाद उनकी मां को ग्राउंड फ्लोर पर शिफ्ट किया गया, लेकिन अब तक उनकी हालत की जानकारी नहीं दी गई।
मरीज के परिजन ओमप्रकाश ने बताया, उनकी मौसी का 25 वर्षीय लड़का भर्ती था और छुट्टी मिलने वाली थी, तभी घटना घट गई। रात 11:20 बजे धुआं उठने के बाद उन्होंने डॉक्टरों को चेतावनी दी, लेकिन धीरे-धीरे धुआं बढ़ता गया और डॉक्टर व स्टॉफ बाहर निकल गए। चार-पांच मरीजों को बाहर निकाला गया, जबकि कुछ अंदर ही दम तोड़ गए।
अस्पताल के बाहर खड़े नरेंद्र ने बताया कि वे अपनी मां का इलाज कराने आए थे, लेकिन आग लगने और धुएं के कारण मदद नहीं मिल पाई। मृतकों में आगरा की 40 वर्षीय सर्वेश देवी शामिल हैं, जिनकी मौत धुएं से हुई। जयपुर के शेर सिंह ने बताया कि उन्होंने अपनी मां को बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।
फायरकर्मी अवधेश पांडे ने बताया, अलार्म बजते ही हम मौके पर पहुंचे। पूरा वार्ड धुएं से भरा था, अंदर जाना नामुमकिन था। बिल्डिंग के दूसरी ओर से कांच तोड़कर पानी फेंका गया। आग पर काबू पाने में डेढ़ घंटे लगे। तब तक कई मरीज दम तोड़ चुके थे।
आईसीयू में उस वक्त 11 मरीज थे। ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर डॉ. अनुराग धाकड़ ने कहा, हमने अपने अग्निशमन उपकरण से कोशिश की, लेकिन जहरीली गैस इतनी तेजी से फैली कि स्टॉफ के लिए रहना असंभव था। पांच मरीजों को बचाया, बाकी छह की जान नहीं बच पाई।
हादसे में पिंटू (सीकर), दिलीप (जयपुर), श्रीनाथ, रुकमणि, कुषमा (भरतपुर), सर्वेश (आगरा), बहादुर (सांगानेर) और दिगंबर वर्मा की मौत हुई। आठ परिवारों की दुनिया इस हादसे में उजड़ गई।
आग लगने के बाद परिवारों का गुस्सा फूट पड़ा। लोग चिल्ला रहे थे, डॉक्टर कहां हैं? हमारे लोग जिंदा हैं या नहीं? गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह मौके पर पहुंचे, लेकिन भीड़ ने उन्हें घेर लिया। परिजन आरोप लगा रहे हैं कि 20 मिनट पहले आग की सूचना देने के बावजूद समय पर कार्रवाई नहीं हुई।
मृतकों में आगरा से इलाज के लिए आई 40 वर्षीय सर्वेश देवी, जयपुर के शेर सिंह की मां, और भरतपुर, सीकर तथा जयपुर के अन्य मरीज शामिल हैं। ट्रोमा सेंटर में घटना के समय 250 से अधिक मरीज भर्ती थे।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, आग लगने के बाद धुआं तेजी से फैल गया और मरीजों सहित स्टॉफ भी भागने को मजबूर हो गया। कई गंभीर और कोमा में पड़े मरीजों को बचाना मुश्किल हो गया था। अस्पताल के नर्सिंग स्टॉफ और वार्ड बॉयज ने ट्रॉली पर मरीजों को बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन छह मरीजों को सीपीआर के बावजूद बचाया नहीं जा सका। आंखों के सामने मौत का मंजर दिख रहा था।
शेर सिंह ने बताया कि जब आग लगी, तो स्टॉफ और अन्य लोग भाग गए, लेकिन उन्होंने अपनी मां को उठाकर बाहर लाया, तब तक वह दम तोड़ चुकी थीं। सवाई माधोपुर के दिगंबर वर्मा, जो एक्सीडेंट केस में भर्ती थे, भी बाहर भगदड़ में मारे गए।
आईसीयू के उपाधीक्षक डॉ. जगदीश मोदी ने बताया कि अचानक चिंगारी उठी और वार्ड धुएं से भर गया। नर्सिंग स्टाफ और वार्ड बॉय ने मरीजों को बाहर निकाला। अब सभी मरीजों को अन्य वार्डों और आईसीयू में शिफ्ट किया गया है।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी ने कहा कि आग के कारणों की जांच की जा रही है। लेकिन परिजनों का कहना है कि आईसीयू का डिज़ाइन ही मौत का जाल बन गया, क्योंकि ग्लासवर्क और सील्ड स्ट्रक्चर से धुआं बाहर नहीं निकल सका।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गहरी संवेदना जताई और उच्चस्तरीय जांच की मांग की। पर उन परिवारों के लिए, जिनके अपने मिनटों में राख हो गए, अब कोई जांच मायने नहीं रखती। अस्पताल की गलियारों में जली तारों की गंध और दीवारों पर धुएं के निशान अभी भी उस रात की त्रासदी की याद दिला रहे हैं।
Updated on:
06 Oct 2025 11:18 am
Published on:
06 Oct 2025 09:47 am
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