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खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स: 5 में से 3 प्लांट बंद, शुरू होता तो हजारों युवाओं को मिलता रोजगार, पटरियां उखाड़कर जमीन पर कब्जा

खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स की हालत ऐसी हो गई है कि उत्पादन आधे से भी कम रह गया है और तीन में से 3 संयंत्र बंद पड़े हैं। केसीसी अब महज 500 स्थाई कर्मचारियों पर सिमट गया है।

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Jhunjhunu Khetri Copper Complex

Khetri Copper Complex

खेतड़ीनगर (झुंझुनूं): कभी एशिया की तांबा नगरी कहलाने वाला खेतड़ी आज अपने ही खनिज वैभव की राख में सिसक रहा है। पहाड़ों में तांबे की चमक अब संयंत्रों की वीरानी में गुम हो गई है। जहां कभी 10 हजार कर्मचारियों की चहल-पहल थी, वहां अब सन्नाटा पसरा है।


खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लेक्स की हालत ऐसी हो गई है कि उत्पादन आधे से भी कम रह गया है और तीन में से 3 संयंत्र बंद पड़े हैं। केसीसी अब महज 500 स्थाई कर्मचारियों पर सिमट गया है।


ठप पड़े रोपवे और रेलवे


कभी कोलिहान से केसीसी प्लांट तक रोपवे पर तांबे के पत्थरों से भरी ट्रॉलियां दौड़ती थीं और डाबला से सिंघाना तक रेलवे लाइन पर खनिज का परिवहन होता था। अब रोपवे भी ठप है और पटरियां उखाड़कर जमीन पर कŽब्जा कर लिया गया है।


विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार और एचसीएल प्रबंधन ठोस रणनीति बनाएं तो खेतड़ी और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों बबाई व सिंघाना रीको क्षेत्र में तांबा आधारित नए उद्योग स्थापित हो सकते हैं। इससे न केवल झुंझुनूं, बल्कि पूरा शेखावाटी क्षेत्र औद्योगिक हब बन सकता है।


बाहर जा रहा तांबा


साल 2008 तक खेतड़ी में ही 99.99 प्रतिशत शुद्ध तांबा तैयार होता था। लेकिन अब यहां से निकला तांबा रिफाइनिंग के लिए गुजरात और विदेश भेजा जा रहा है। स्थानीय श्रमिक संघ और लोग कहते हैं कि अगर सरकार ठोस पहल करे तो खेतड़ी और आसपास तांबा आधारित उद्योग बर्तन, बिजली के तार, इले€क्ट्रॉनिक उपकरण और मशीनरी निर्माण लगाकर हजारों युवाओं को रोजगार दिया जा सकता है।


केसीसी के पांच में से तीन प्लांट बंद


केसीसी के पांच प्लांटों में से तीन स्मेल्टर, रिफाइनरी और फर्टीलाइजर बंद हो चुके हैं। कारण है पानी की कमी। पहले चंवरा से पाइपलाइन से पानी आता था, लेकिन अवैध छीजत और सरकारी उदासीनता से आपूर्ति घटती गई। कुंभाराम नहर से भी पर्याप्त पानी नहीं मिला। नतीजतन संयंत्र धीरे-धीरे ठप होने लगे।


…तो फिर से स्वर्णिम युग हो सकता है शुरू


वर्तमान में केसीसी की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन पांच मिलियन टन है, लेकिन वास्तविक उत्पादन डेढ़ मिलियन टन से भी कम है। विशेषज्ञों का कहना है कि आधुनिक तकनीक, पानी की आपूर्ति और नई भर्ती नीति पर ध्यान दिया जाए तो खेतड़ी का तांबा उद्योग फिर से अपने स्वर्णिम युग को प्राप्त कर सकता है।


ये रही पैक्ट फाइल…


-केसीसी की स्थापना साल 1967 में हुई थी।
-केसीसी में बने रोपवे का निर्माण साल 1973 में हुआ था।
-साल 1974 में रेल की पटरियां बिछाई गई थी।
-साल 1975 में तांबे का उत्पादन शुरू हुआ था।
-साल 1996 में बंद हुई कर्मचारियों की भर्ती हुई थी।
-साल 2008 में प्लांट बंद करने का सिलसिला शुरू हुआ था।


खदानें बोलती हैं, संयंत्र खामोश हैं…


खेतड़ी, बनवास, कोलिहान और चांदमारी की पहाड़ियों में तांबे के भंडार हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यहां से सीकर जिले तक अथाह तांबा फैला है। अयस्क से सोना भी निकलता है, लेकिन रिफाइनरी बंद होने से करोड़ों का सोना अब मिट्टी के ढेरों में दबा पड़ा है।


एचसीएल के केसीसी प्लांट को दोबारा पहले वाली स्थिति में लाने के लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है। केंद्रीय खान मंत्री के सामने भी हमने नई टे€क्नोलॉजी की मशीनरी लगाने के लिए प्रारूप पत्र सौंपा है।
-धर्मपाल गुर्जर, विधायक खेतड़ी


प्लांट को नई टे€क्नोलॉजी के साथ लगाने के लिए हमने बार-बार एचसीएल के अधिकारियों के समक्ष मुद्दा रखा है। तांबे का प्रचुर मात्रा में भंडार है, लेकिन मशीनें पुरानी होने की वजह से उत्पादन पर असर पड़ रहा है। नई मशीन लगेगी तो उत्पादन भी बढ़ेगा रोजगार के भी नए अवसर पैदा होंगे तथा एचसीएल लाभ की स्थिति में होगा।
-बिड़दू राम सैनी, महासचिव केटीएसएस यूनियन