
कोटा . केस को पुख्ता करने और सबूत जुटाने में अहम भूमिका निभाने वाले जांच अधिकारी भगवतसिंह हिंगड़ ने बताया कि 10 अक्टूबर 2014... रात आठ बजे अचानक मेरा फोन घनघनाया...दूसरी ओर मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात तत्कालीन आईजी संजय अग्रवाल लाइन पर थे... फोन उठाते ही कुछ कहने-सुनने के बजाय सीधा आदेश मिला... तुरंत जवाहर नगर थानाधिकारी के पद पर ड्यूटी ज्वाइन करो... और इसके बाद फोन कट गया। यही वो दिन था, जिसकी सुबह रुद्राक्ष का शव नहर में मिला था। शव मिलने के बाद पूरा शहर गुस्से से तमतमाया हुआ था... प्रदर्शन हो रहे थे... कैंडेल मार्च निकल रहे थे... आक्रोश के चलते पूरा कोटा बंद था। मैंने तत्काल ड्यूटी ज्वाइन कर ली... लंबे समय तक कोटा के विभिन्न थानों में रहा था... जिसकी वजह से लोगों का इतना भरोसा कायम हो चुका था कि प्रदर्शन करने वाले भी केस खुलने की बात कह कर जाते।
13 अक्टूबर 2014... रुद्राक्ष के अपहरण का चौथा दिन... जब एक के बाद एक मिले सबूतों का पीछा करते हुए हम अपराधियों की पहचान करने में कामियाब हुए... लेकिन अब भी उनकी गिरफ्तारी चुनौती से कम न थी... ठीक 13 दिन बाद आखिर वो मौका भी आ गया... जब उत्तर प्रदेश के लखनऊ और कानपुर से हमने अंकुर और अनूप पाडिय़ा को धर दबोचा। इसके लिए एडीजी (अपराध) अजीतसिंह के नेतृत्व में गठित टीम और आईज्ी रविप्रकाश मेहरडा, एसपी शहर अमनदीप सिंह, कोटा ग्रामीण विकास पाठक, बारां एसपी परेश देशमुख, एएसपी शान्तनु कुमार सिंह, मनीष कुमार, प्रवीण जैन, पारस जैन, राजन दुष्यन्त, डिप्टी रानू शर्मा, निरीक्षक राजेश सोनी, एसआई रवि सामरिया और साइबर टीम का का सहयोग भुलाए नहीं भूला जा सकता।
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अपराधियों की गिरफ्तारी और मामले के खुलासे से लोग भले ही खुश हों, लेकिन मेरे लिए असल चुनौतियां यहीं से शुरू हुई... रुद्राक्ष के साथ कोटा के आम आदमी की भावनाएं जुड़ी हुई थीं। जांच के दौरान कई बार रुद्राक्ष के घर जाना पड़ा। माता-पिता और दादा के दुख ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया था। मैंने तभी दृढ़ निश्चय कर लिया था कि रुद्राक्ष के हत्यारों को सजा दिलाकर इस परिवार को न्याय दिलाकर ही रहूंगा। मेरे सामने सबसे पहला काम था कि इस प्रकरण के बिखरे हुए साक्ष्यों की कड़ी से कड़ी में जोड़कर एक मजबूत केस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करूं। 90 दिन में चार्जशीट पेश करनी थी और मुकदमे का दायरा राजस्थान से लेकर गुजरात, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और उड़ीसा तक फैला हुआ था।
अनुसंधान के दौरान मैंने सबसे ज्यादा तकनीकी साक्ष्य जुटाने पर जोर दिया। कॉल डिटेल प्रदाता कम्पनियों के सभी नोडल अधिकारियों को गवाह बनाया और आईटी एक्ट के प्रमाण पत्र भी पत्रावली पर लिए। अंकुर के मोबाइल और लेपटॉप की फॉरेंसिक जांच कराने के साथ ही उसकी आवाज के नमूनों की भी एफएसएल से जांच कराई। पिछले छह महीने की कॉल डिलेट और उसकी हर गतिविधि की गहन जांच की।
घटना स्थल से अंकुर की कार के सीसीटीवी फुटेज हासिल किए। इन फुटेज को एफएसएल भेजकर गाड़ी का नंबर पता कराया। उसके पास दो कार थी। ये दोनों कारें पूरे शहर में जहां-जहां से निकली वहां के सीसीटीवी फुटेज इक_े किए। सारे सबूतों को इक_ा कर जब हमने कोर्ट में 1467 पेज की चार्जशीट फाइल की तो हर कोई चौंक पड़ा... कोटा में शायद यह सबसे बड़ी और तथ्यों के आधार पर मजबूत चार्जशीट थी। इस पूरे काम में एएसआई बुद्धी प्रकाश, उपनिरीक्षक हाल बूंदी जितेन्द्र सिंह, हाल सहायक उप निरीक्षक जवाहरनगर देवकी नन्दन, हैड कांस्टेबल रविन्द्र और प्रताप सिंह ने दिन रात एक कर डाले थे।
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हमने पूरे मुकदमे में 110 गवाह बनाए। बड़ी बात यह रही कि जनता ने जिस तरह जांच में सहयोग किया उसी तरह अदालती कार्रवाई में भी। आम तौर पर लोग अपराधिक मामलों की गवाही देने से बचते हैं, लेकिन यह पहला मौका था कि एक भी गवाह अपने बयान से नहीं मुकरा। इन सबूतों के आधार पर अदालत ने आज जो फैसला दिया है, उससे आम आदमी का पुलिस और न्याय व्यवस्था में विश्वास मजबूत होगा।
Published on:
27 Feb 2018 11:39 am
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