Ramzan: 21वां रोजा याद दिलाता है शेर-ए-खुदा हजरत अली की शहादत
रमजान इस्लामी महीने का 9वां महीना है। इस माह को सबसे पाक माना जाता है। रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं।

कोटा. रमजान इस्लामी महीने का 9वां महीना है। इस माह को सबसे पाक माना जाता है। रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को अशरा कहते हैं। अरबी में इसका मतलब 10 से है।
Shab-e-Barat Special: शब-ए-बारात पर ऐसे करें गुनाहों से तौबा, बरसेगी अल्लाह की रहमत
इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों की बारिश करता है। दूसरे अशरे में रोजेदारों के गुनाह माफ होते हैं। तीसरे दस दिन में रोजेदारों के लिए जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। या यूं कह लें कि दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किया गया है।
Special News: घर के आंगन में लगे ये खास पौधे बदल देंगे आपकी तकदीर, जानिए, इन पौधों में है अशांत ग्रहों को काबू करने की शक्ति
20वें रोजे के साथ रमजान के दो अशरे समाप्त हो चुके हैं और तीसरा अशरा गुरुवार से 21वें रोजे के साथ शुरू हो गया है। इस आखिरी अशरे में रोजदारों के सारे गुनाह माफ कर जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।
Ramzan Special: दोजख की आग से निजात पाने की साधना है रमजान
रोजेदार अलाउद्दीन अशरफी ने बताया कि माहे रमजान के सभी 30 रोजों का अपना- अपना महत्व हैं। इनमें कुछ न कुछ तारीखी वाक्यात हुए हंै, जिसमें 21 वां रोजा भी शामिल है, इसे हजरत अली की शहादत के रूप में जाना जाता है। हजरत अली को पूरी दुनिया में मौला अली, मुश्किल कुशा और शेर-ए-खुदा के नाम से भी जाना जाता है। हजरत अली पूरी दुनिया की इकलौती ऐसी शख्सियत हैं जिनकी पैदाईश काबा शरीफ के अंदर हुई थी।
Read More: कोटा के इस दबंग अफसर ने नेताओं को बांध दिया शर्तों के बंधन में, अब नहीं कर पाएंगे मन की मर्जी!
उन्होंने हमेशा गरीबों, यतिमों और बेसहाराओं की खिदमत में पूरी जिंदगी गुजार दी और लोगों को नसीहत दी कि हमेशा गरीबों, यतिमों और बेसहाराओं की मदद करते रहो। हजरत अली अल्लह के नेक बंदे और सच्चे आशिक-ए- रसूल हैं। 21 वें रोजे को आपने जामे शहादत नोश फरमाई। आपकी मजार मुबारक कुफा में हंै। माहे रमजान में आपको मानने और चाहने वाले आपके नाम की फतिया करते हंै। पूरी दुनिया में मुस्लिमानों को आपके बताए गए मार्ग पर चलने की नसीहत दी जाती है।
Human story: मां-बाप ने मासूम के पैरों में 5 साल से बांध रखी है जंजीर, वजह जान रो पड़ेगा आपका दिल
21वें रोजे पर पूरी दुनिया में शहादत-ए-मौला अली मनाया जाता है। मस्जिद-मदरसों में जलसे होते हैं। तकरीर में शेर-ए-खुदा की खूबियां बयां की जाती है।
Read More:Ramzan: ख़ुदा के रोज़े का फरमान अदा कर रहा फरहान
मानसिक तनाव दूर, याददाश्त होती तेज
अलाउद्दीन अशरफी बताते हैं, रमजान में पांच वक्त की नमाज व तरावीह अदा करने से मानसिक तनाव दूर होता है। साथ ही एकाग्रता बढ़ती है। इसके अलावा बार-बार कुरआन दोहराने से याददाश्त तेज होती है। वहीं, रमजान का क्रम इंसान को समय की पाबंदी सिखाता है। नमाज के दौरान उठना, बैठना तो कभी सजदा व सलाम करने से कसरत हो जाती है, जो शरीर को चुस्त-दुस्त रखती है। व्यवहार में लचीनापन, सहन शक्ति में इजाफा, आत्मनिर्भरता, आत्मसंतुलन शरीर में कैलारी की मात्रा को नियंत्रण में रखने में भी रमजान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
अब पाइए अपने शहर ( Kota News in Hindi) सबसे पहले पत्रिका वेबसाइट पर | Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें Patrika Hindi News App, Hindi Samachar की ताज़ा खबरें हिदी में अपडेट पाने के लिए लाइक करें Patrika फेसबुक पेज