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न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के आर्थोपेडिक वार्ड में इस तरह का जटिल ऑपरेशन किया गया है। अब मां व बेटी दोनो ही स्वस्थ्य हैं। गडे़पान स्थित बंबोली गांव निवासी राजकांता ने अपनी बेटी गौरी रेंगर (साढ़े तीन वर्ष) के पैर को बचाने के लिए यह कदम उठाया।
न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के आर्थोपेडिक वार्ड में इस तरह का जटिल ऑपरेशन किया गया है। अब मां व बेटी दोनो ही स्वस्थ्य हैं। गडे़पान स्थित बंबोली गांव निवासी राजकांता ने अपनी बेटी गौरी रेंगर (साढ़े तीन वर्ष) के पैर को बचाने के लिए यह कदम उठाया।
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नहीं लगाते तो काटना पड़ताइतनी कम उम्र में बच्चों के पैर खराब होने पर उसमें इम्पलांट डालना मुश्किल होता है। बढ़ती उम्र के साथ पैर में समस्या होती है। मां ने बताया कि गौरी ६ माह पहले गिर गई थी, उस समय उसके पैर में लोहे का टुकड़ा घुस गया था। धीरे-धीरे उसके पैर ने पकाव ले लिया और पैर खराब हो गया। कुछ समय पूर्व पैर बिल्कुल ही लटक गया।
न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अस्थि विभाग के यूनिट हेड डॉ. राजेश गोयल ने बच्ची को देखा। उसके पैर में करीब ३ इंच की हड्डी नहीं थी। पैर बचाने के लिए उन्होंने मां के पैर की हड्डी को बच्ची के पैर में लगाया। डॉ. गोयल का कहना है कि हड्डी नहीं लगाते तो पैर काटना पड़ता।
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हजारों में एक मामला
बच्चों को केवल मां की ही हड्डी लगाई जा सकती है। मां की हड्डी में कोई टेस्ट कराए जाने की जरूरत नहीं होती। इस तरह का कैस हजारों में एक ही आता है। नए अस्पताल में अब तक इस तरह के केवल १० ही ऑपरेशन किए गए हैं।