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आखिर कौन है जनता की गाड़ी कमाई के लाखों रुपए बर्बाद करने का जिम्मेदार….

locationकोटाPublished: Jun 05, 2018 12:06:57 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

शहर में अनेक मामलों में लाखों रुपए की बर्बादी हो चुकी है। यह सब जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से किया जा रहा है।

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आखिर कौन है जनता की गाड़ी कमाई के लाखों रुपए बर्बाद करने का जिम्मेदार….

कोटा . विकास के नाम पर इमारतें बनाने में करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी उन पर लटके हुए ताले तो आपने देख लिए। अब वाकिफ कराते हैं ऐसी कड़वी हकीकत से, जिसमें विकास का खाका खींचने के नाम पर ही लाखों रुपए खुर्द-बुर्द कर दिए गए।
कोई भी योजना बनाने से पहले उसकी उपयोगिता सुनिश्चित की जाती है, लेकिन कोटा नगर विकास न्यास के अभियंता पहले तो लाखों रुपए फूंककर विस्तृत कार्य योजनाएं (डीपीआर) बनवाते हैं, उसके बाद तय करते हैं कि शहर के विकास में उस योजना की उपयोगिता है भी या नहीं? शहर में ऐसे ही अनेक मामलों में लाखों रुपए की बर्बादी हो चुकी है। यह सब जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से किया जा रहा है। इस बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार है? यह तक कोई तय नहीं करता।
सैकड़ो यात्री तरस रहे पानी और छाया को पर सुनने वाला कोई नहीं

730 करोड़ रुपए फंसे पड़े शहर में विकास योजनाओं के नाम पर


298 दुकानें और पूरा हाट बाजार फांक रहे धूल, 5 से 10 साल तक से लटकी पड़ी कई योजनाएं

भीमगंजमंडी फ्लाईओवर 15 लाख
रेलवे स्टेशन से भीमगंजमंडी तक बनने वाला फ्लाईओवर मनमानी योजनाओं की सबसे बड़ी बानगी है। लोगों के विरोध के बावजूद यूआईटी ने पहले तो 40.63 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार कर लिया, लेकिन बाद में इसकी उपयोगिता तय करने के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने के लिए 15 लाख रुपए में ठेका दे दिया। डीपीआर की प्रोविजनल रिपोर्ट बनाकर मंजूरी के लिए जब रेलवे को दी गई तो उसने इस फ्लाईओवर की उपयोगिता को ही नकार दिया।

एरोड्राम फ्लाईओवर 08 लाख
पिछले दो दशक से शहर का सबसे प्रमुख चौराहा एरोड्राम सियासत का अड्डा बन चुका है। जब भी सरकार बदलती है, जनप्रतिनिधियों और सरकारी महकमों के योजनाकार इस चौराहे के विकास के नाम पर करोड़ों रुपए फूंकने वाली कोई न कोई योजना लेकर अवाम के बीच खड़े हो जाते हैं।
अब यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के नाम पर यहां फ्लाईओवर बनाए जाने का शिगूफा छोड़ा गया है। यूआईटी के इंजीनियरों ने ट्रैफिक लोड जांचे बगैर सीएडी सर्किल से डीसीएम रोड पर 150 करोड़ रुपए की लागत से फ्लाईओवर बनाने का प्रस्ताव बना डाला। हठधर्मिता की इंतेहा यह है कि विशेषज्ञों की आपत्ति के बाद भी पहले इस प्रस्ताव की उपयोगिता जांचने के बजाय यूआईटी विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने के लिए 8 लाख रुपए खर्च कर रही है।
रोगियों पर भारी रात, तीमारदारों पर दिन…

नेता-अफसर हो गए स्मार्ट, सिटी नहीं
को टा की हालत खस्ता है। शहर प्रदूषित हवा से कराह रहा है। जाम हमारी नई समस्या बन रहा है। जरा सी बरसात के बाद ही अनेक इलाके डूबने लगते हैं। शहर को बेहतर बनाने की बातें केवल चर्चा तक ही सीमित है। शहर में विकास के एक दो प्रयोग ही सफल हुए, लेकिन उनके बहाने न जाने कितने प्रयोग शहर पर थोप दिए गए। स्मार्ट सिटी योजना आई। शहर भले ही स्मार्ट न हुआ हो, लेकिन योजना को चलाने वाले विभाग, नेता और अफसर जरूर स्मार्ट हो गए। मास्टर प्लान तार-तार हो रहा है।

नगर विकास न्यास के पास मास्टर प्लान के उल्लंघन को रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं है। वे ऐसा कोई उपाय करना भी नहीं चाहते। क्योंकि चर्चा है कि मास्टर प्लान के टूटने से होने वाली कमाई का गंदा नाला कई अफसरों के घरों तक जाता है। शहर में अतिक्रमण भी एक सच्चाई है। जिसका फायदा गरीब से अधिक अमीर लोग उठाते हैं। यह बात अलग है कि उनका अतिक्रमण हम देखना नहीं चाहते। सड़कें भी संकरी होने लगी हैं। बाजारों में सड़कों पर दुकान का सामान रखा होगा। फिर वाहन खड़े होंगे और उसके बाद ठेले लगेंगे। फिर बची हुई जगह पर वाहन निकलेंगे।

सारे शहर के फुटपाथों पर दुकानें सजीं हैं। सड़क पर ही सब्जीमंडी आबाद है तो कहीं पार्र्किंग बनी हुई है। पार्किंग की जगह पर निर्माण हो रहे हैं। दर्जनभर स्थानों पर निजी बस स्टैण्ड चल रहे हैं। यह दिनोंदिन इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि सड़क पर कब्जा करने वालों को पता है कि कोई हटाने नहीं आएगा। स्मार्ट सिटी ऐसी व्यवस्था की कौन कल्पना कर रहा है।

दुखद यह कि इस स्थिति को देखने वाला तक नहीं है। कार्रवाई तो उसके बाद होगी। सरकारी दफ्तरों के वातानुकूलित कमरों में प्लान बन रहे हैं और वहीं उनकी पालना रिपोर्ट तैयार हो रही है। मौके के हालात कोई नहीं देख रहा। व्यवस्था ही ऐसी बना दी, जिसके सिर पर किसी का हाथ नहीं बस उसे हटा दो। बिगड़ते हालात को रोकने के लिए सरकार को दखल देना चाहिए।

विकास के नाम पर कुछ भी करने वाले ‘नीमहकीम’ अफसरों और व्यवस्था में बाधा बन रहे नेताओं को एक्सपोज किया जाना चाहिए। सख्त फैसले लिए जाएं और स्मार्टसिटी की मूल भावना को साकार किया जाए, वरना ‘प्रगति’ के चक्कर ‘दशहरा मैदान’ भी हाथ से चला जाएगा।

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