
पुणे/पालघर कोरोना महामारी के इस दौर में यहां से प्रवासियों द्वारा अपने गांव की ओर पलायन करने का दौर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस पलायन का सीधा असर यहां के उद्योग धंधे एवं कारखानों पर पडऩे लगा है।श्रमिकों द्वारा बार-बार घरों को लौटने को लेकर किए गए प्रदर्शन से परेशान स्थानीय प्रशासन ने विशेष श्रमिक रेलों के जरिए एवं बसों के द्वारा दो लाख से अधिक लोगों को उनके गंतव्य तक छोड़ा है।
पुणे से 8 ट्रेनें उत्तर प्रदेश के लिए चली
पुणे संभागीय आयुक्त दीपक म्हैसेकर ने पत्रकारों को बताया अब तक 86 हजार 590 यात्रियों को लेकर कुल 66 ट्रेनें मध्यप्रदेश के लिए, उत्तर प्रदेश के लिए 29, उत्तराखंड के लिए 29, तमिलनाडु के लिए 2, राजस्थान के लिए 5, बिहार के लिए 8, हिमाचल प्रदेश के लिए 1, झारखंड के लिए 2, छत्तीसगढ़ के लिए 2 और जम्मू और कश्मीर के लिए 1 ट्रैन से भेजा गया है सांगली से1,241 यात्रियों के साथ अमृतसर के लिए भेजी गई। 20 मई बुधवार को, पुणे डिवीजन से कुल 8 ट्रेनें, उत्तर प्रदेश के लिए 4, बिहार के लिए 3 और छत्तीसगढ़ के लिए 1 ट्रेन भेजी जाएगी, जिसमें कुल11 हजार 324 यात्रियों के जाने की उम्मीद है। इनमें से पुणे स्टेशन से उत्तर प्रदेश तक की 3 ट्रेनें और छत्तीसगढ़ की एक ट्रेन 5 हजार 417 यात्रियों के साथ चलाने की योजना है। सतारा रेलवे स्टेशन से उत्तर प्रदेश के लिए 1,456 यात्रियों वाली ट्रेन की योजना है। सांगली स्टेशन से बिहार के लिए 1 हजार 539 यात्रियों और कोल्हापुर स्टेशन से बिहार जाने वाली 2 ट्रेनों में 2 हजार 912 यात्रियों के साथ एक ट्रेन है। पुणे संभाग से 76 हजार 294 यात्री 5 हजार 871 बसों से अपने पैतृक गांव गए हैं। 5 हजार 708 यात्री 289 बसों द्वारा पुणे डिवीजन में आए हैं।
पालघर में एक शिफ्ट में काम
लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद पालघर जिले के बोईसर-तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित फैक्ट्रियों को शुरू करने की प्रक्रिया भले ही शुरू कर दी गई हो, लेकिन श्रमिकों के अभाव में अब तक अधिकांश फैक्ट्रियों में मशीने बंद पड़ी है। कुछ फैक्ट्रियां शुरू भी हुई है, तो वह श्रमिकों के अभाव में तीन शिप्ट की बजाय सिर्फ एक ही शिप्ट उत्पादन कर पा रही है। पिछले दो महीने से तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में सन्नाटा पसरा हुआ है। फैक्ट्रियों में उत्पादन शुरू करने के लिए श्रमिक जरूरी है, लेकिन काम धंधे ठप होने के बाद यहां कार्य करने वाले हजारों प्रवासी श्रमिक या तो अपने गृह प्रदेशों में पहुँच चुके हंै। या जाने के लिए तैयार बैठे हैं। श्रमिकों के अभाव में अभी भी सैकड़ों फैक्ट्रियों में काम ठप पड़ा हुआ है। बोईसर-तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में करीब 1600 फैक्ट्रियां है। जिनमें महिलाओं सहित लाखों लोग कार्य करते थे। लॉकडाउन के कारण लोकल ट्रेन बंद है, तो वही सड़को पर से ज्यादातर निजी वाहन भी नदारत है, जिससे स्थानीय श्रमिक सुविधा नहीं मिलने से औद्योगिक इकाइयां शुरू होने के बावजूद काम पर नही पहुंच पा रहे है। एसीलीन सूटिंग लिमिटेड के मालिक डॉक्टर राजकुमार छापरिया कहते हैं, कि सरकारों ने उद्योगों को फिर से शुरू करने के लिए छूट तो दे दी, लेकिन औद्योगिक इकाइयों को आवश्यक सुविधाएं आज तक नहीं मिली है। इसमें सबसे जरूरी है, कच्चे माल की आपूर्ति और माल बेचने के लिए बाजार का उपलब्ध होना। छपारिया कहते है, कि जिन श्रमिकों ने समस्याओं से जूझकर कर्मभूमि छोड़ी है। उनकी जल्द वापसी संभव नहीं है। इसलिए श्रमिकों के अभाव में फैक्ट्रियों के उत्पादन की लागत बढ़ेगी। टीमा के सलाहकार वीरेंद्र ठाकुर ने बताया कि श्रमिको की समस्या को सुलझाने के लिए जिलाधिकारी डॉ.कैलाश शिंदे के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन हुआ है। जिसमे उच्चाधिकारियों और टीमा के सदस्यों का समावेश है। श्रमिको की वापसी की सुनिश्चित की जा रही है।
Published on:
21 May 2020 06:35 pm
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