
Explainer: केंद्र हो या राज्य, अकेली पार्टी को बहुमत के बजाय गठबंधन की सरकार बनती है तो लोकप्रिय सदन (लोकसभा-विधानसभा) में स्पीकर की भूमिका अहम हो जाती है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में टीडीपी-जेडीयू और अन्य साथी दलों के साथ एनडीए की सरकार बनने से नए स्पीकर पर नजर है। भाजपा पर स्पीकर पद के लिए घटक दलों के दबाव की चर्चा की कोई अधिकृत पुष्टि नहीं हुई है। जानते हैं लोकसभा में स्पीकर की क्या है भूमिका और क्या हैं उसकी कानूनी शक्तियां?
अनुच्छेद 93 के अनुसार सदन के शुरू होने के बाद यथाशीघ्र स्पीकर चुना जाना चाहिए। उसका चुनाव सदन में साधारण बहुमत से होता है। सदन के भंग होने के साथ ही उसका कार्यकाल समाप्त हो जाता है। इस्तीफे या अविश्वास प्रस्ताव के जरिये पहले थी पद से हट सकता है।
स्पीकर बनने के लिए विशेष योग्यता की जरूरत नहीं, लोकसभा का कोई भी सांसद स्पीकर बन सकता है। स्पीकर का वेतन भारत की संचित निधि से दिया जाता है।
सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर ही स्वीकार करता है। स्वीकार करना जरूरी है लेकिन स्पीकर उसे थोड़े समय टाल सकता है। 2018 में जब वाईएसआरसीपी और टीडीपी ने अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस दिया तो स्पीकर सुमित्रा महाजन ने प्रस्ताव को स्वीकार करने और वोटिंग से पहले सदन को कई बार स्थगित किया। अनुच्छेद 100 के मुताबिक स्पीकर सदन में वोट नहीं डालता लेकिन किसी भी प्रस्ताव पर बराबर वोट पड़ने अपर उसे निर्णायक मत (टेंडर वोट) देने का अधिकार है। हालांकि भारत में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी।
संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दलबदल के मामलों में सदस्य को अयोग्य ठहराने की स्पीकर की शक्ति सबसे अहम है। इसी वजह से गठबंधन सरकारों के दौर में पार्टियों में तोड़फोड़ या दलबदल के समय स्पीकर का पद सबसे प्रमुख भूमिका निभाता है। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में किहोटो होलोहन बनाम जाचिल्हु के मामले में स्पीकर की सर्वोच्चता पर मोहर लगाते हुए कहा है कि दलबदल मामले में स्पीकर का अंतिम आदेश ही न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा। स्पीकर अंतिम आदेश देने में जल्दी या देरी कर सरकार के भविष्य के लिए निर्णायक बन जाता है। यदि सत्तारूढ़ दल के सदस्य दलबदल करते हैं तो वह जल्दी अयोग्यता पर निर्णय कर सरकार का बहुमत सुरक्षित कर सकता है, नई सरकार का बहुमत रोक सकता है। यदि वह अयोग्य घोषित करने का निर्णय टालता है तो अल्पमत के कारण सरकार गिर सकती है या दूसरे पक्ष के पास बहुमत हो सकता है। हालांकि 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि विधानसभाओं और लोकसभा के स्पीकरों को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने में अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय करना होगा।
स्पीकर - कार्यकाल - पार्टी - सत्तारूढ़ गठबंधन
रवि रॉय - दिसंबर 1989 जुलाई 1991 - जनता दल - राष्ट्रीय मोर्चा
शिवराज पाटिल - जुलाई 1991 मई 1996 - कांग्रेस - कांग्रेस
पीए संगमा - मई 1996 मार्च 1998 - कांग्रेस - राष्ट्रीय मोर्चा
जीएमसी बालयोगी - मार्च 1998 मार्च 2002 - टीडीपी - एनडीए
मनोहर जोशी - मई 2002 जून 2004 - शिवसेना - एनडीए
सोमनाथ चटर्जी - जून 2004 जून 2009 - सीपीएम - यूपीए
मीरा कुमार - जून 2009 जून 2014 - कांग्रेस - यूपीए
सुमित्रा महाजन - जून 2014 जून 2019 - भाजपा - एनडीए
ओम बिरला - जून 2019 जून 2024 - भाजपा - एनडीए
Published on:
12 Jun 2024 08:48 am
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