
शामली. 2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी के लिए कैराना उपचुनाव नाक का सवाल बन चुका है। बीजेपी किसी भी कीमत पर अपनी इस सीट को खोना नहीं चाहती है। वहीं अखिलेश यादव ने भी रालोद से गठबंधन कर अपनी मंशा जता दी है। लेकिन, उनकी सामने सबसे बड़ी परेशानी फूलपुर और गोरखपुर में साथ देने वाली मायावती बनी हुई हैं। दरअसल, बसपा सुप्रीमो मायावती ने उपचुनाव में कोई प्रत्याशी तो नहीं उतारा है, लेकिन समर्थन की भी घोषणा नहीं की है। बसपा सुप्रीमो की ये चुप्पी अब सपा-रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन सहित सपा मुखिया अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की बेचैनी बढ़ाए हुए है।
ज्ञात हो कि कैराना लोकसभा के उपचुनाव में रालोद ने सपा-बसपा के दम पर ही कैराना उपचुनाव में तबस्सुम को प्रत्याशी बनाया है। रालोद यहां मुस्लिम-जाट व अनुसूचित जाति के वोट बैंक के सहारे भाजपा को शिकस्त देने की तैयारी में जुटा है। नामांकन के बाद रालोद और सपा नेता चुनावी प्रचार में पूरी ताकत से जुटे हैं, लेकिन अभी तक बसपा नेता व कार्यकर्ताओं की आमद गठबंधन प्रत्याशी के समर्थन में नहीं दिख रही है। हालांकि रालोद व सपा नेताओं का दावा है कि अनुसूचित जाति का वोट उन्हें ही मिलेगा। वहीं दूसरी तरफ भाजपा नेता भी बसपा का वोट बैंक मिलने का दावा कर रहे हैं।
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इधर, जानकारी मिली है कि क्षेत्र के कांग्रेसी नेताओं को भी अभी तक हाईकमान से कोई दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं, लेकिन कांग्रेस नेता पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक व पूर्व विधायक पंकज मलिक चुनाव में सक्रिय हो गए हैं। ज्ञात हो कि तबस्सुम हसन 2009 में बसपा से ही कैराना में सांसद चुनी गई थीं। लेकिन, इसके बावजूद प्रचार में बसपा नेताओं की सक्रियता नजर नहीं आ रही है। बसपा की इस खामोशी के पीछे बहजनी का संदेश के इंतजार के रूप में देखा जा रहा है। इस संबंध में बसपा के जिलाध्यक्ष सुशील नहारिया की मानें तो वे बहनजी के निर्देश का इंतजार कर रहा है। निर्देश मिलते ही कार्यकर्ता प्रचार में जुट जाएंगे।
Published on:
16 May 2018 11:52 am
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