दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूहों ने पेगेसस मामले का खुलासा करते हुए बताया था कि भारत के भी 300 प्रमुख प्रमाणित नंबर इसमें शामिल हैं। मतलब साफ है कि इन नंबरों की जासूसी इस सॉफ्टवेयर के जरिए की गई है। विपक्ष ने भी इस मसले पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया था और संसद का सत्र भी इसी मद्दे पर गतिरोध के चलते खत्म हुआ था। विपक्ष का आरोप था कि यह जांच सरकार के इशारे पर की गई, क्योंकि यह सॉफ्टवेयर कंपनी सिर्फ सरकारों के साथ ही सौदा करती है। वहीं सरकार ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया था। इस मामले की जांच की मांग को लेकर 15 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थीं। इनमें निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी। इससे पहले प्रधान न्यायाधीश एन.वी.रमना, न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश हिमा कोहली की पीठ ने 13 सितंबर को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह यह जानना चाहती है कि क्या केंद्र सरकार ने नागरिकों की कथित जासूसी के लिए अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया या नहीं? पीठ ने यह टिप्पणी भी की थी कि वह मामले की जांच के लिए तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन करेगी।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश देकर उन सभी आशंकाओं पर विराम लगा दिया, जिनमें कई तरह की बातें कही जा रही थीं। यह देश को जानने का हक है कि क्या जासूसी की गई थी? अगर नहीं की गई तो फिर पेगेसस सॉफ्टवेयर में देश के महत्त्वपूर्ण 300 लोगों के नंबर क्यों पाए गए? क्या यह कोई एक बड़ी साजिश का हिस्सा है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब देश को जानना जरूरी है। सरकार भी राहत की सांस ले सकती है, क्योंकि जांच रिपोर्ट आने तक विपक्ष के लगातार हमलों से उसे राहत मिलेगी। साथ ही सच भी सामने आ सकेगा।