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पॉलिट्रिक्स : धुरंधरों में खिंची तलवार - Politics Special Column In Pali :  

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पाली

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Suresh Hemnani

Jul 23, 2019

Politics Special Column In Pali Rajasthan

पढि़ए...पाली की पॉलिटिक्स के अंदरूनी किस्से...

-राजेन्द्रसिंह देणोक
पाली।Politics Special Column In Pali : पाली की पंचायती [ Pali ki Panchayati ] यूं ही ‘कुख्यात’ नहीं हुई। यहां की सियासत में कब कौन दोस्त से दुश्मन बन जाए, देर नहीं लगती। रविवार को वन मंत्री [ Forest Minister ] की बैठक में ऐसा ही हुआ। हाथ वाली पार्टी के दो धुरंधर कपड़ा उद्योग [ textile industry ] की नई तकनीक के मुद्दे पर आमने-सामने हो गए। ग्रामीण इलाके के नेताजी का तरफदारी करना शहरी नेताजी को अखर गया। बोले, शहर की पंचायती हम करेंगे, किसी और को नहीं करने देंगे। शहरी नेताजी का ये मिजाज बैठक में भी चर्चा में रहा। यूं तो ग्रामीण इलाके वाले नेताजी पहले भी कई बार नई तकनीक की पैरवी कर चुके हैं। लेकिन स्थानीय नेताजी को यह पच नहीं रहा। वैसे, शहरी नेताजी की भी अपनी पीड़ा है। आखिर सालों से सियासत में बने रहने के लिए यही तो एक दमदार मुद्दा मिला हुआ है। यही हाथ से निकल जाएगा तो करेंगे क्या।

हवन करते जल गए हाथ
शहर की एक धार्मिक संस्था को हवन करते हाथ जल जाए वाली कहावत से सामना करना पड़ गया। हुआ यूं कि संस्था ने पुण्य का काम शुरू करने के लिए धूमधाम से तैयारियां की। मंत्रीजी को भी बुला लिया। यहां तक तो सब ठीक-ठाक रहा। बात वहां बिगड़ी जब कार्यक्रम में फूल वाली पार्टी को तवज्जो दे दी। कार्यक्रम ही नहीं मंच पर भी विपक्षी ज्यादा। फिर तो सत्ता में बैठे नेताओं की भौंहें तनना स्वाभाविक ही था। मंत्री कार्यक्रम में आए, लेकिन उन्हीं के पार्टी के नेताओं ने किनारा कर लिया। रही सही कसर एक गलती ने पूरी कर दी। इससे किए-कराए पर पानी फिर गया। किरकिरी हुई सो अलग। अब समेटने में जरूर लगे हैं, लेकिन बात तो बात है दूर तलक जाएगी।

मेहंदी नगरी के ठाठ निराले
मेहंदी नगरी [ Mehndi Nagari ] के ठाठ निराले हैं। यहां की सत्ता फूल वाली पार्टी के हाथ में जरूर है। लेकिन काम-काज के लिहाज से सरकार की सीधी नजर है। सरकार के मजबूत ब्यूरोक्रेट की सबसे पसंदीदा जगह होने का फायदा भी मेहंदी नगर को मिल रहा है। यह बात और है कि ब्यूरोक्रेट का अपना ‘सियासी’ हित है। तभी तो सूबे का काम छोडकऱ गाहे-ब-गाहे यहां खींचे चले आते हैं। यूं तो आम आदमी के लिए बड़े ओहदेदारों के दर्शन मुनासिब नहीं होते। लेकिन मेहंदी नगरी की किस्मत चमकी हुई है। कार्यक्रम छोटा हो बड़ा, ब्यूरोक्रेट के दर्शन हो ही जाते हैं। परेशान तो वे है जिन्होंने मेहंदी नगरी से सियासत का सपना देख रखा है।

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