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700 साल पुरानी परंपरा जीवित, इंद्रावती को सोने की नाव और चांदी की पतवार अर्पित…

Bastar News: जगदलपुर जिले में परंपराओं और आस्थाओं से सराबोर बस्तर अंचल के घाटकवाली गांव में मंगलवार को इंद्रावती नदी के तट पर एक अनूठा अनुष्ठान संपन्न हुआ।

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700 साल पुरानी परंपरा जीवित, इंद्रावती (photo-patrika)

700 साल पुरानी परंपरा जीवित, इंद्रावती (photo-patrika)

Bastar News: छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले में परंपराओं और आस्थाओं से सराबोर बस्तर अंचल के घाटकवाली गांव में मंगलवार को इंद्रावती नदी के तट पर एक अनूठा अनुष्ठान संपन्न हुआ। ग्रामवासियों ने प्राणदायिनी इंद्रावती नदी को सोने की नाव और चांदी की पतवार अर्पित कर अपनी आस्था प्रकट की। इसी अवसर पर ग्रामदेवी जलनी आया से गांव में नयाखानी तिहार मनाने की अनुमति भी मांगी गई।

जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव अपनी 700 साल पुरानी परंपराओं के लिए जाना जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इंद्रावती ही उनके जीवन और खेती का मुख्य आधार है। पूर्वजों से चली आ रही परंपरा के तहत प्रत्येक वर्ष यह आयोजन होता है, जिसमें आसपास के सैकड़ों ग्रामीण जुटते हैं।

Bastar News: अनुष्ठान में दी गई विशेष भेंट

ग्राम पुजारी मंगतु राम कश्यप ने विधि-विधान से सेवा अर्जी विधान सम्पन्न कराया। इस अवसर पर नदी और ग्रामदेवी को सोने की नाव, चांदी की पतवार, सफेद बकरा, चोका मुर्गा, चोकी मुर्गी, साठ दिन में पकने वाले धान की बालियां (साठका) और लांदा सहित अनेक पारंपरिक भेंट अर्पित की गई। ग्रामीण मानते हैं कि इस अनुष्ठान से प्रकृति प्रसन्न होती है और गांव को समृद्धि व सुख-शांति प्राप्त होती है।

सात शताब्दियों से जारी परंपरा

ग्राम के माटी पुजारी मंगतु राम कश्यप ने बताया कि यह परंपरा गांव की स्थापना के साथ लगभग सात शताब्दियों पूर्व शुरू हुई थी और आज भी निरंतर जारी है। यह आयोजन न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि गांव की एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखता है।

ग्रामीणों की बड़ी सहभागिता

इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक सीताराम, श्यामसुंदर, पंडरू कश्यप, सम्पत, इश्पर, विजय, रामनाथ, जुगल, कुमर, मयतर सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे। सामूहिक श्रद्धा और उत्साह के बीच पूरे गांव में पर्व जैसा माहौल रहा।

इंद्रावती ही जीवन और खेती का आधार

गांव जिला मुख्यालय जगदलपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूर बसा है और यह अपनी 700 वर्ष पुरानी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। ग्रामीण मानते हैं कि इंद्रावती ही उनके जीवन और खेती का आधार है। धान की खेती, पशुपालन और अन्य जीविकोपार्जन नदी की कृपा से ही संभव हो पाते हैं। यही कारण है कि नदी को ग्रामवासी “प्राणदायिनी” कहकर पुकारते हैं और प्रत्येक वर्ष भेंट अर्पित करते हैं।

परंपरा का निर्वाह

पूर्वजों से चली आ रही परंपरा के अंतर्गत ग्रामीण सामूहिक रूप से नदी तट पर एकत्र होते हैं। ग्राम पुजारी द्वारा सेवा-अर्जी विधान सम्पन्न कराया जाता है और इसके बाद सोने की नाव, चांदी की पतवार, सफेद बकरा, चोका मुर्गा, चोकी मुर्गी, साठ दिन में पकने वाले धान की बालियां (साठका) और लांदा जैसी भेंट नदी व ग्रामदेवी को अर्पित की जाती है। ग्रामीणों का विश्वास है कि इस अनुष्ठान से गांव में समृद्धि, अच्छी फसल और सुख-शांति बनी रहती है।

सात शताब्दियों से निरंतर परंपरा

ग्राम के माटी पुजारी मंगतु राम कश्यप बताते हैं कि यह परंपरा गांव की स्थापना के समय से ही चली आ रही है और लगभग सात शताब्दियों से निरंतर जारी है। बदलते समय और आधुनिक जीवनशैली के बावजूद ग्रामीण हर वर्ष पूरे श्रद्धा भाव से इस आयोजन को निभाते हैं। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।

सामूहिक आस्था का उत्सव

इस अवसर पर गांव और आसपास के सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित रहे। वृद्धजन, महिलाएँ और बच्चे सभी अनुष्ठान में शामिल हुए और इंद्रावती के तट पर सामूहिक भोज और पारंपरिक गीत-संगीत का आयोजन भी किया गया। इस तरह यह आयोजन न केवल आस्था का पर्व बन गया, बल्कि सामूहिक उत्सव का रूप भी ले लिया।