
मोबाइल गेम्स एडिक्शन के साइड इफेक्ट (फोटो सोर्स- पत्रिका)
Side Effects Of Mobile Game Addiction: मोबाइल गेम एडिक्शन का साइड इफेक्ट ये है कि बच्चे उग्र हो रहे हैं। गेम में तुरंत रिजल्ट की तरह वे असल जीवन में भी यही चाहते हैं। इससे वे हिंसक भी बनते जा रहे हैं। बात-बात में ऊंची आवाज में बात करना या पैरेंट्स से बहस आम बात है। यही नहीं मोबाइल में व्यस्त रहने के कारण उनका कयुनिकेशन स्किल भी कमजोर रहा है। ऐसे बच्चों की पढ़ाई पर भी विपरीत असर पड़ रहा है।
एम्स व आंबेडकर अस्पताल के मनोरोग विभाग में मोबाइल एडिक्शन वाले बच्चों की संख्या 10 से 12 फीसदी हो गई है। कोरोना काल के पहले शून्य था। कई बच्चों में सिजोफ्रेनिया जैसा खतरनाक मनोरोग हो रहा है। एम्स के मनोरोग विभाग की ओपीडी में रोजाना 100 मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इसमें 10 से 12 बच्चे ऐसे होते हैं, जो मोबाइल गेम के बाद मनोरोग का शिकार हो रहे हैं।
सबसे आश्चर्य की बात ये है कि 100 में आधे मरीज किसी न किसी तरह से मोबाइल के अधिक उपयोग के कारण बीमार बन रहे हैं। डॉक्टरों की हिस्ट्री पूछने पर ये बात सामने आती है कि युवा व बड़े भी लिमिट से ज्यादा मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं। बच्चों में जहां गेम एडिशक्शन है, वहीं युवा भी इसके शिकार हैं। बड़े सोशल मीडिया पर इतना वक्त गुजार रहे हैं कि उन्हें लगता है कि यही उनकी असल दुनिया है।
मोबाइल एडिक्शन बच्चों में हायपरटेंशन व डायबिटीज का कारण भी बन रहा है। आउटडोर गेम बंद होने के कारण बच्चे गेम खेलते हुए एक जगह बैठे रहते हैं। साथ में खाना भी खाते हैं। फिजिकल एक्टीविटीज कम होने के कारण वे मोटापे का शिकार हो रहे हैं। मोटापे से हायपरटेंशन व डायबिटीज का रिस्क बढ़ रहा है। कई बच्चे इसका शिकार भी हैं।
मोबाइल स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने के कारण नजर कमजोर हो रही है और दूर की चीजें नहीं देख पा रहे हैं। इससे नजर के चश्मे भी लग रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार बच्चों को मोबाइल से दूर रखने में पैरेंट्स की सबसे बड़ी भूमिका है, लेकिन ज्यादातर कामकाजी होने के कारण नजर नहीं रख पाते। जो नजर रख भी रहे हैं, उनकी बात बच्चे नहीं सुन रहे हैं।
मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार, पहले बच्चों में आउटडोर गेम व खाने को लेकर एक्साइटमेंट रहता था। अब यह पैटर्न बदल गया है और एक्साइटमेंट केवल मोबाइल फोन पर आकर टिक गया है। चूंकि मोबाइल गेम में हर दिन नया कंटेट होता है इसलिए बच्चों को बोरियत महसूस नहीं होती।
पहले आउटडोर गेम की बात करते थे, अब केवल मोबाइल गेम की। इसलिए 13 से 17 साल के बच्चों व किशोरों में मोबाइल एडिक्शन हद से ज्यादा बढ़ गया है। गेम में गोली मारते हैं और वे असल जीवन में भी हिंसा को आसान मानकर ऐसे ही रिजल्ट की चाहत रखते हैं। इसलिए बच्चे उग्र व हिंसक हो रहे हैं। वे हिंसा को आसानी से कैप्चर कर रहे हैं और इसे ही सच मानकर जीवन में उतार रहे हैं।
मोबाइल फोन बच्चों व युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है। ओपीडी में 10 से 12 फीसदी मरीज सीधे मोबाइल के ज्यादा उपयोग के कारण इलाज कराने आ रहे हैं। जबकि कुल ओपीडी में आने वाले मरीजों में आधे किसी न किसी तरह मोबाइल के ज्यादा उपयोग के कारण बीमार पड़ रहे हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि तय समय के लिए मोबाइल दें। बच्चे क्या देख रहे हैं, इस पर पूरी नजर रखें। गेम बच्चों के ब्रेन को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे वे उग्र व चिड़चिड़ापन हो रहे हैं। - डॉ. लोकेश सिंह, एचओडी मनोरोग एस
युवाओं में गुस्सा नियंत्रण करने की क्षमता कम होती जा रही है। यही नहीं उनमें सहनशक्ति भी कम हो गई है। उन्हें तत्काल रिजल्ट चाहिए। वेटिंग वाली बात नहीं रहती। इंटरनेट व कई टीवी चैनल आ गए हैं। इस कारण 18 से 25 साल के युवकों को अपनी पसंद के लिए भटकना नहीं पड़ता। उनकी पसंद आसानी से मिल रही है। उन्हें मेहनत ही नहीं करनी पड़ती। वे अधीर हो रहे हैं। चैनलों, गेस व इंटरनेट के ज्यादा उपयोग से वे उग्र भी हो रहे हैं। यही कारण है कि ये उग्रता क्राइम में भी दिख रही है। - डॉ. सुरभि दुबे, एसोसिएशन प्रोफेसर मनोरोग नेहरू मेडिकल कॉलेज
Published on:
30 Aug 2025 02:10 pm
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