रायबरेली में ज्येष्ठ मास का वह मंगलवार भी आ गया, जब करोड़पति बंदर की मूर्ति उसके पालनहार के घर में बने मंदिर में स्थापित की गई। मोहल्ले में जश्न का माहौल रहा। पूरे विधि-विधान से राम बारात निकली और काशी से आए पांच आचार्यों ने पूजन-अर्चन कराया। साथ ही भजन और लोकगीतों की फुहार और मंत्रों के उच्चारण चल रहा है। इसके साथ लोगों को भंडारा भी कराया गया है। आसपास आने जाने वालों को प्रसाद लेने की गुजारिश की जा रही थी।
शहर के शक्तिनगर निवासी कवि साबिस्ता बृजेश का चुनमुन भवन अब मंगलवार से मंदिर के नाम से पहचाना जायेगा क्योंकि इसी में उस बंदर (चुनमुन) का मंदिर बनाया गया है, जो करीब पंद्रह साल पहले दंपती को मिला था। उसके आने के बाद साबिस्ता-बृजेश की माली हालत ऐसे बदली मानों कोई जादू हो गया हो क्योंकि प्रेम विवाह करने के बाद परिवार और समाज से लड़ रहे साबिस्ता (मुस्लिम) और बृजेश (हिन्दू) के लिए सामान्य जीवन यापन भी मुश्किल हो रहा था। कर्ज पर कर्ज लद चुका था किंतु हिन्दू धर्मग्रंथों में दिखाए रास्ते साबिस्ता को ताकत देते रहे। वे कभी वृंदावन तो कभी नैमिष में जाकर संतों के उपदेशों को सुनती रहीं। इसी बीच उन्हें एक मदारी से तीन माह का बंदर मिला। उसका नाम उन्होंने चुनमुन रखा। उसके आने पर बकौल साबिस्ता उनकी जिंदगी बदल गई। कर्ज कब खत्म हुआ, पता ही नहीं चला। पैसे की कमी खत्म हो गई। धन-शोहरत सब अकूत मिली। फिर दंपती ने तय किया कि उनका कोई बच्चा नहीं है, ऐसे में उनका सब कुछ चुनमुन ही होगा। इसके लिए बाकायदा एक संस्था भी बनी। इस दौरान चुनमुन की मौत हो गई। फिर इस बंदर और उसके पालनहार के रिश्ते को अमर करने की खातिर उसी मकान के एक कोने में मंदिर बनाया गया। जहां, मंगलवार को चुनमुन की जयपुर से बनकर आयी मूर्ति की स्थापना हो गई। इसी मंदिर में राम-लक्ष्मण और सीता के संग चुनमुन हमेशा के लिए लोगों की श्रद्धा का केंद्र बन गया है।
क्या था चुनमुन का इतिहास, कैसे बना साबिस्ता के घर नन्हा बेटा
साबिस्ता मुस्लिम समुदाय से हैं। उन्होंने साल 1998 में शहर निवासी बृजेश श्रीवास्तव से लव मैरिज की। दोनों की कोई संतान नहीं है। एक जनवरी 2005 को चुनमुन उनके घर का नन्हा मेहमान बना। साबिस्ता ने बंदर की अच्छे तरीके से परवरिश की। घर के तीन कमरे उसके लिए सुरक्षित कर दिए गए। चुनमुन के कमरे में एसी और हीटर भी लगवाया। 2010 में शहर के पास ही छजलापुर निवासी अशोक यादव की बंदरिया बिट्टी यादव से उसका विवाह भी कराया गया।
चुनमुन और बिट्टी के भविष्य को लेकर चिंतित कपल ने एक बड़ा फैसला लिया। साबिस्ता और ब्रजेश ने चुनमुन के नाम से एक ट्रस्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अब दोनों अपनी करोड़ों की संपत्ति ट्रस्ट के नाम करने वाले हैं। चुनमुन ट्रस्ट मुख्य रूप से बंदरों के बेहतरी के लिए काम करेगा। इस ट्रस्ट के लिए सदस्य चुनने का काम भी अंतिम दौर में है।
टिनटिन से चुनमुन तक का सफर साबिस्ता बताती हैं कि उनके पड़ोसी ने बंदर-बंदरिया पाल रखी थी। एक दिन वह बंदरिया को पीट रहा था तो साबिस्ता ने मना किया। इस पर पड़ोसी ने कहा कि इतनी ही तकलीफ हो रही है तो तुम इसे खरीद लो। आर्थिक स्थिति ठीक न होते हुए भी साबिस्ता ने बंदरिया टिनटिन को 300 रुपए में खरीदा। टिनटिन के घर आते ही उनकी आर्थिक स्थिति सुधरने लगी। लगभग एक साल टिनटिन उनके घर में रही। एक दिन घर के सब लोग बाहर गए थे, तभी टिनटिन का गला रस्सी से कस गया और उसकी मौत हो गई। टिनटिन की मौत के बाद कपल ने चुनमुन को गोद लिया। चुनमुन दस साल से उनके घर में है और इस दौरान उनकी आर्थिक स्थिति लगातार बेहतर होती गई है।
मैरेज ऐनिवर्सरी पर भोज चुनमुन और बिट्टी की मैरेज ऐनिवर्सरी हर साल धूमधाम से मनाई जाती थी। 500 से 1000 लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की जाती थी। वानर भोज का आयोजन भी होता था । नाच गाने के साथ सभी बंदर-बंदरिया की मैरेज ऐनिवर्सरी का आनंद लेते थे।