
CG Medical College: पीलूराम साहू. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एमडी डिग्रीधारी पैथोलॉजिस्ट की ड्यूटी केजुअल्टी यानी इमरजेंसी में लगा दी जाए, लेकिन ऐसा हो रहा है। कोरबा मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर की ड्यूटी ऐसी ही लगाई गई है।
यही नहीं सरगुजा संभाग में भी आर्थोपीडिक, एनीस्थीसिया व पैथोलॉजी डिग्री वालों की एमएलसी ड्यूटी (मेडिको लीगल केस) यानी उनसे पोस्टमार्टम करवाया जा रहा है। पढ़े-लिखे माने जाने वाले स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा विभाग में डिग्री का ऐसा मजाक उड़ाया जा रहा है कि पीजी करने का कोई मतलब नहीं रह जाता।
कोरबा मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पताल के अधीक्षक का एक आर्डर पत्रिका के पास है, जिसमें एमडी पैथोलॉजी डिग्री वाले डॉक्टर की ड्यूटी केजुअल्टी में लगाई गई है। यह ऑर्डर 4 अप्रैल का है। इसी तरह सरगुजा सीएमएचओ का एक आदेश है, जिसमें ऑर्थोपीडिक, एनीस्थीसिया व पैथोलॉजी वालों की पोस्टमार्टम ड्यूटी लगाई गई है। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि ये केवल सरगुजा का उदाहरण नहीं है, ज्यादातर जिलों में बांड पोस्टिंग वाले पीजी पास छात्रों के साथ ऐसा ही हो रहा है।
भला बताइए एमडी करने के दौरान पैथोलॉजी का छात्र ब्लड जांच की रिपोर्टिंग करता है, वह केजुअल्टी यानी इमरजेंसी में मरीजों के साथ क्या न्याय करेगा? केजुअल्टी में अचानक बीमार हुए लोग या सड़क दुर्घटना में गंभीर लोग आते हैं। पैथोलॉजिस्ट मरीज को कैसे मैनेज करेगा, ये ऑर्डर जारी करने वालों को भी मालूम है, लेकिन सब ढर्रे पर चल रहा है।
ऑर्थोपीडिक व एनीस्थीसिया वाले डॉक्टरों की जरूरत इमरजेंसी में होती है, लेकिन सरगुजा सीएमएचओ इन डॉक्टरों से पोस्टमार्टम करवा रहे हैं। इधर कोरबा मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक पैथोलॉजिस्ट से इमरजेंसी ड्यूटी करवा रहे हैं। इस ऑर्डर का विरोधाभास समझिए।
इमरजेंसी में हड्डी में चोट लगे वाले व गंभीर मरीज आते हैं, जिन्हें ऑपरेशन व मैनेज करने का जिम्मा ऑर्थो व एनीस्थीसिया वाले करते हैं। इमरजेंसी में ऑपरेशन भी करने की जरूरत पड़ती है, जिसमें दोनों डॉक्टरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बताया जाता है कि जिस सीएचसी में भी बांड में डॉक्टरों की पोस्टिंग की गई है, वहां डॉक्टरों की पोस्टमार्टम करने की ड्यूटी लगाई जा रही है।
एमडी हो एमएस डिग्री, ये तीन साल की कड़ी पढ़ाई के बाद मिलती है। पीजी छात्र पढ़ाई के दौरान ही इमरजेंसी केस हैंडल करते हैं, लेकिन ये विभाग के अनुसार होता है। एक पैथोलॉजी के पीजी छात्र की ड्यूटी पढ़ाई के दौरान कभी इमरजेंसी में नहीं लगाई जाती। उन्हें इमरजेंसी का कोई अनुभव भी नहीं होता।
इसी तरह एक ऑर्थोपीडिक, एनीस्थीसिया के छात्रों की मरचूरी में कभी ड्यूटी नहीं लगाई जाती, जहां पोस्टमार्टम करने की जरूरत पड़ती हो। फिर डिग्री मिलने के बाद यानी विशेषज्ञ डॉक्टर बनने के बाद उनकी ड्यूटी पढ़ाई के विपरीत कैसे लगाई जा सकती है?
मामला कोरबा या सरगुजा संभाग का ही नहीं है, नेहरू मेडिकल कॉलेज से संबद्ध आंबेडकर अस्पताल में भी रेडियो डायग्नोसिस के एक सीनियर रेसीडेंट डॉक्टर की ड्यूटी हाल में कार्डियोलॉजी विभाग में लगाई गई थी। जो डॉक्टर एमबीबीएस पास के बाद एक्सरे की रिपोर्टिंग कर रहा हो, वो भला कार्डियोलॉजी विभाग में मरीज का क्या इलाज करेगा? यही नहीं इस रेगुलर डॉक्टर की पोस्टिंग ही रेडियो डायग्नोसिस विभाग में हुई थी। डॉक्टर ने मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जहां उन्हें स्टे मिल गया है।
डीएमई डॉ. यूएस पैकरा ने कहा की सीएचसी में कोई भी डिग्रीधारी पीजी हो, उनसे सभी काम करवाए जाते हैं। अगर मेडिकल कॉलेज में एमडी पैथोलॉजी की ड़्यूटी केजुअल्टी में लगाई गई है तो ये गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस संबंध में जानकारी ली जाएगी।
कोरबा मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. केके सहारे ने कहा की जिस डॉक्टर की केजुअल्टी ड्यूटी लगाई गई है, उसका मूल पद मेडिकल ऑफिसर है। जरूरत के अनुसार ड्यूटी लगाई जाती है। जब केजुअल्टी में डॉक्टर आ जाएंगे, तब डॉक्टर की ड्यूटी पैथोलाॅजी विभाग में लगा दी जाएगी।
Published on:
17 Apr 2025 10:18 am
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