सरकार ने स्वीकारा कि अराजकता हो सकती थी
राज्य सरकार के पत्र में इस बात का उल्लेख है कि केंद्र ने राज्य को 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के नागरिकों का टीकाकरण, स्वयं के बजट पर करने की अनुमति दी, जिसके बाद कंपनियों से 75 लाख टीकाकरण की मांग की गई, मगर कंपनियों ने 30 अप्रैल तक वैक्सीन सप्लाई नहीं की। 30 अप्रैल शाम को कहा गया कि 1 मई को 1.50 लाख वैक्सीन भेज रहे हैं। यही वजह है कि विस्तृत कार्ययोजना नहीं बना सके। 1.50 लाख वैक्सीन सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए खोली जाती तो अराजकता मच सकती थी। इसलिए आयुवर्ग के एक विशेष समूह को देना आवश्यक हो गया था।
केंद्र पर मढ़ा आरोप
राज्य सरकार ने अपने पत्र में लिखा है कि कोविन पोर्टल पर ऑनसाइट पंजीयन की अनुमति थी, जिसे केंद्र ने 18 से 44 आयुवर्ग के नागरिकों को यह सुविधा वापस ले ली, जो गरीबों के साथ बहुत बड़ा भेदभाव है। इसलिए अत्यंत गरीब लोगों के लिए सरकार को नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा।यह कहा था हाईकोर्ट में
सरकार के टीकाकरण नीति पर हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की थी। हाई कोर्ट ने कहा था, बीमारी अमीर-गरीब को देखकर नहीं आती है। टीकाकरण डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि व्यवस्था बनाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।पहले दिन से हो रहा था विरोध
राज्य सरकार के वर्ग विशेष को टीकाकरण के फैसले का पहले दिन से विरोध हो रहा था। टीकाकरण से वंचित रहने वाले बीपीएल और एपीएल वर्ग के लोगों ने इसे अधिकारों का हनन करार दिया था। सोशल मीडिया समेत अन्य मंचों पर जमकर विरोध हुआ।
अमित जोगी बोले- गलत नियत से लिया फैसला
जकांछ के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा, हाईकोर्ट की मंशा है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के साथ-साथ बाकी सभी को भी टीका लगे, किंतु इस मंशा के विपरीत फरमान निकाल दिया। सरकार ने हाईकोर्ट को जनता के समक्ष खलनायक बनाने की गलत नियत से यह फैसला लिया है।