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मासूम आखों में सजे सपनों को पूरा करने में रंगीन गुब्बारों का है इनको सहारा

locationरतलामPublished: Jan 13, 2020 11:00:02 am

Submitted by:

Ashish Pathak

स्वेटर नहीं है इसलिए एक चाय लेकर करते है आधी आधी, जिससे सर्दी दूर हो सकेबचपन के दोस्त है दोनों बच्चे, साथ स्कूल जाते, खेलते व पढ़ते हैं।

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रतलाम। इन दोनों मासूनों का कद से लेकर आंखे छोटी है, लेकिन सपने बडे़ है। परिवार सर्दी से बचाने के लिए स्वेटर से लेकर महंगे रबड़ पैंसील नहीं दिला सकता इसलिए दोनों सप्ताह में दो दिन शनिवार व रविवार को स्वरोजगार करके अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल रहे है। एक को सेना में जाना है तो दूसरे को कलेक्टर बनना है। हम बात कर रहे है शहर के मोहल्लों में फुग्गे की बिक्री करने वाले रमेश व चुलबुल की।
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सर्दी से बचने लेते है एक चाय

वैसे इन दोनों की उम्र पढऩे व खेलने की है, लेकिन कम उम्र में यह दोनों समझदार हो गए है। जो लंबाई में बड़ा रमेश है वो कक्षा आठ में तो छोटा वाला चुलबुल कक्षा 6 में है। दोनों शहर के बजंरंग नगर में रहते है। हाट की चौकी स्थित सरकारी स्कूल में साथ जाते है। अन्य बच्चों को सर्दी मिटाने के लिए स्वेटर पहनते देखा व महंगी रबड़, पैंसील लेते देखा तो मन हो गया कि खुद का खर्च निकाले, इसलिए शनिवार व रविवार को फुग्गे की बिक्री करने का कार्य करते है। जब कंपकपाने वाली सर्दी होती है तो स्वेटर के अभाव में एक चाय खरीदते है व आधी-आधी दोनों पी लेते है। पिजा बर्गर के दौर में यह दोनों बच्चे स्वयं की पढ़ाई के लिए पाई- पाई एकत्रित करते है।
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बीच में खर्च हो जाते है

बड़ा रमेश है। रमेश बताता है कि रुपए तो इकठ्ठे होते है, लेकिन कभी – कभी खर्च भी हो जाते है। कहां खर्च होते है जब सवाल किया तो दोस्त चुलबुल की तरफ उंगली उठा दी। फिर चुलबुल ने बताया कि उसकी बहन है भूरी। उसको कभी कभी भेलपूरी खाने की इच्छा होती है तो खिला देते है। बस इस चक्कर में अब तक स्वेटर तो नहीं खरीद पाए, लेकिन बड़ी दुकान से संपन्न लोगों की तरह रबड़, पैंसील ले ली है। चुलबुल का मन कलेक्टर बनने का है, तो रमेश को सेना में जाना है। चुलबुल के अनुसार कलेक्टर बना तो किसी बच्चे को बगैर स्वेटर नहीं रहने दूंगा।
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यह कहते है चुलबुल के पिता
चुलबुल के पिता विरङ्क्षसह के अनुसार दोनों को मना किया कि सर्दी अधिक है। हम लोग मेहतन करते ही है, लेकिन दोनों सुनने को तैयार नहीं है। बाकी दिन तो पढ़ाई करते है, लेकिन शनिवार व रविवार को शाम को ५ बजे से लेकर रात ९ बजे तक शहर के अलग-अलग मोहल्लों में जाकर फुग्गे की बिक्री करते है। बच्चों को स्वेटर क्यों नहीं दिलाया तो कहते है मजदूरी करते है, रोटी के लिए कमा ले यही बहुत है।

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