
कोरोना ने बदल दिए हालात, तालों में कैद हो रही अपनों की अस्थियां
आशीष पाठक
रतलाम. करीब 57 दिन से कोरोना वायरस के लगे लॉकडाउन ने परिवार को तो घर में सुरक्षित रहने के लिए घरों में रहने को मजबूर किया ही है, इसके साथ साथ जहां मृत्यु हुई है उन परिवार में अपनों की अस्थियों को भी तालों में कैद करने को मजबूर किया है। यह सिर्फ हिंदू संप्रदाय में हो रहा हो यह नहीं है, मुस्लिम भी परिवार के सदस्य की मृत्यु होने पर जो 40 दिन तक जो रस्त करते है, उस पर कोरोना ने ब्रेक लगा दिया है।
मुक्तिधाम के हालात
22 मार्च से अब तक शहर के प्रमुख तीन शमशान भक्तन की बावड़ी, त्रिवेणी मुक्तिधाम, जवाहर नगर में करीब 50 शहरवासी की मौत के बाद शव अंतिम संस्कार के लिए आए। कुछ शमशान तो इस प्रकार के भी रहे जहां अस्थी तो दूर शव के करीब भी परिवार के सदस्यों को आना नसीब नहीं हुआ। इसकी वजह जो मौत हुई वो कोरोना के संदिग्ध की थी। यह अलग बात है कि बाद में वे सभी संदिग्ध की रिपोर्ट नेगेटिव ही आई।
रुका धार्मिक कार्य
- मरने पर स्नान से लेकर कफन जरूरी जो रुक गया।
- जनाजे क नमाज में जरूरी संख्या का अभाव हो गया।
- मय्यत को कंधा नहीं मिल पा रहा, वाहन में जा रहा शव।
- दफन करते समय शव पर मिट्टी नहीं गिराई जाती, बल्कि लकड़ी या फर्शी रखी जाती है।
- तीजे की फातेहा मस्जीद में होती है, जो बंद है।
- 40 दिन तक रिश्तेदार कुरान का पाठ करते है, वो बंद हो गया।
सुरक्षा हमारी जवाबदारी
लॉकडाउन के बाद से सभी अपने घर में है। इसके चलते मरने वाले की अस्थियों को सुरक्षित रखने की जवाबदेही हमारी है। इसलिए परिवार के आग्रह पर जितने शव आए सभी की अस्थियों को मटकी में सुरक्षित रखा गया है।
- मंगतराम, भक्तन की बावड़ी मुक्तिधाम
कई कार्य बंद हो गए
मुस्लिम रीति रिवाज अनुसार परिवार में मृत्यु होने पर जो नियम का पालन मस्जीद से लेकर कब्रिस्तान में किया जाता है, कोरोना वायरस व लॉकडाउन ने उस पर रोक लगा दी है।
- आसिफ काजी, चीफ काजी, रतलाम
Published on:
19 May 2020 10:33 am
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