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अन्तर्मुखी 14: णमोकार मंत्र की साधना से मिलती आत्मिक शांति

जो सम्पूर्ण जिनशासन का सार, चौदह पूर्वों का भी निचोड है, ऐसा णमोकार मंत्र जिसके हदय में सदा रहता है, यह संसार उसका क्या बिगाड सकता है?

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Sunil Sharma

Jan 01, 2018

antarmukhi

antarmukhi pujya sagar maharaj

- मुनि पूज्य सागर महाराज

णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूण

णमोकार मंत्र में विशिष्ट शुद्ध आत्मा को नमस्कार किया गया है। जिन्होनें अपने जीवन में अहिंसा को उतार लिया है तथा जिनकी सभी क्रिया अहिंसक है। यह आत्माएँ भारतीय और जैन संस्कृति की साक्षात प्रतिमा है। नमस्कार करने से हमारा जीवन आर्दश मय बन जाता है। शुद्ध आत्माओं का आर्दश सामने रखने से तथा शुद्धात्माओं के आर्दश का स्मरण, चिंतन और मनन करने से शुद्धत्व की प्राप्ति होती है, जीवन पूर्ण अहिंसक बनता है। अरिहंत, सिद्ध पूर्ण अहिंसक व परमात्मा बन गए है, आचार्य, उपाध्याय, साधु अहिंसक व परमात्मा बनने की प्रकिया है। ये पाँचो ही प्राणीमात्र के लिए उपकारी है। अपने जीवन में संयम, तपश्चरण द्वारा समस्त प्रणाओं का हित करते हैं। इस मंत्र के माध्यम से तप और त्याग के मार्ग में आगे बढने की प्रेरणा मिलती है। तथा अहिंसा, अपरिग्रह को आचारण में उतारने की शिक्षा, विश्वबन्धुत्व और आत्मकल्याण की कामना उत्पन्न होती है। ये पाँचों आत्माएँ परम पद में स्थित है इसलिए इन्हें परमेष्ठी कहते हैं।

संसार में प्राणी मात्र शारीयिक, मानसिक, आर्थिक और अगंतुक दु:खोँ से दु खी है, इन दु:खों से बचने के लिए जैन धर्म में एक मास्टर चाँबी है जिसे णमोकार मंत्र के नाम से सब जानते हैं। णमोकार मंत्र को मास्टर चाँबी इसलिए कहते हैं क्यों की णमोकार मंत्र रुपी चाँबी से संसार के समस्त दु:खो को नाश किया जा सकाता है। णमोकार मंत्र में सम्पूर्णी द्वादशांक गर्भित है। णमोकार मंत्र चमत्कारी मंत्र है क्यों की इस मंत्र के ध्यान, स्मरण, पाठ, साधना और जाप से प्राणी मात्र दु:ख में भी सुख का अनुभव करने लग जाता है तथा वह कार्य भी सफलता हो जाता है जिसमें वह बार-बार असफलता हो रहा है। संसार, स्वर्ग और मोक्ष के सुख णमोकार मंत्र के स्मरण से प्राप्त किया जाता है। मनुष्य के जीवन में णमोकार मंत्र का उपयोग उसके जन्म से लेकर मोक्ष जाने तक की हर क्रिया में सर्व प्रथम किया जाता है। प्रतिदिन श्रद्धा से जाप करने वाले मनुष्य को दु:ख कभी आ ही नही सकता है। जितने भी मंत्र, ऋद्धि मंत्र व यंत्र है वह सब णमोकार मंत्र से ही निकले या बने है।

- बीमार व्यक्ति का इलाज डाँ. करता है दु:ख रुपी बीमारी का इलाज करने के लिए णमोकार मंत्र डाँ के समान है।
- जिस प्रकार हाथ की अंजुली में पानी अधिक देर तक नही रखा जा सकता है उसी प्रकार णमोकार मंत्र की आराधना करने वाला जीव पापमल से अधिक समय तक नही घिरा रह सकता है।
- युद्ध में व्यक्ति अपनी प्राणों की रक्षा के लिए मजबुत लोहे का कवच अपने हाथों में रखता है उसी प्रकार संसार रुपी दावानल वन में कर्मो रुपी प्राणीयों से बचने के मनुष्य को अपने मन में णमोकर मंत्र को रखना चाहिए क्योकि णमोकार मंत्र कवच के समान है।
- कल्पवृक्ष से जो माँगे वह मिलता है, उसी प्रकार णमोकार मंत्र का जाप करने वाले को सब कुछ मिल जाता है।

पर्यायवाची नाम
महामंत्र, बीज मंत्र, अनादि मंत्र, नमस्कार मंत्र, नवकार मंत्र, मूल मंत्र, पंच मंगल, अपराजित मंत्र, मंत्रराज, पंचपरमेष्ठी मंत्र, पंच पद मंत्र, शाश्वत मंत्र, अनादि निधन मंत्र, सर्वविघ्ननाशक मंत्र, सनातन मंत्र व मंगल सूत्र आदि नाम णमोकार मंत्र के हि है।

नमस्कार
णमोकार मंत्र में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पाँच परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। अरिहंत और सिद्ध परमेष्ठी को देव संज्ञा और आचार्य, उपाध्याय और साधु को गुरु संज्ञा दी गई है। वर्तमान में पाँचो परमेष्ठी में से आचार्य, उपाध्याय, साधु परमेष्ठी के हमेँ साक्षात दर्शन हो सकते हैं। वर्तमान में अरिहंत, सिद्ध परमेष्ठी के साक्षात दर्शन नही हो सकते हैं, उनकी प्रतिमा के दर्शन मन्दिर चैत्याल आदि में कर सकते हैं।

इतिहास
णमोकार मंत्र प्राकृत भाषा में लिखा गया है। णमोकार मंत्र अनादि निधन मंत्र है, इसका सर्व प्रथम लिपिबद्ध उल्लेख षटखंडागम ग्रंथ में मंगलाचरण के रुप में मिलता है। षटखंडागम ग्रंथ के रचिता आचार्य पुष्पदंत भूतबली है। णमोकार मंत्र में 58 मात्राऐं, 35 अक्षर, 30 व्यंजन, 34 स्वर 5 सामन्य पद, 11 विशेष पद हैं। णमोकार मंत्र 84 लाख मंत्रो का जन्मदाता है। णमोकार मंत्र को 18432 प्रकार से बोल व लिख सकते हैं।

महत्व
एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं होई (हवइ) मंगलं।
अर्थ- यह पंच नमस्कार महामंत्र सर्व पापो का नाश करनेवाला है। सबके लिए मंगलमय है, तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है।

संकट मोचन
संग्राम-सागर-क्रीन्द्र-भुजंग-सिहं, दुर्व्याधि-वह्नि-रिपु-बन्धनसम्भवानि।
चौर-ग्रह-भ्रम-निशाचरशाकिनीनां, नश्यंति पंचपरमेष्ठीपदैर्भयानि॥
(पंचनमस्कारस्तोत्रम् आचार्य उमास्वामी)

संग्राम, सागर, हाथी, सर्प, सिंह, दुष्ट व्याधियां, अग्नि, शत्रु और बन्धन से उत्पन्न होने वाले, चोर, ग्रहपीडाजन्य, भ्रमसम्भूत, निशाचर और शाकिनियों के द्वारा उत्पन्न भय पंच परमेष्ठी पदों के स्मरण से नष्ट हो जाते हैं।

अनुकल परिस्थिति
इन्दुर्दिवाकरतया रविरिन्दुरुप: पातालमम्बरमिला सुरलोक एव।
किं जल्पितेन बहुना भुवनत्रये1पि, यन्नाम तन्न विषमं च समं च न स्यात्॥ (पंचनमस्कारस्तोत्रम् आचार्य उमास्वामी)

णमोकार मंत्र के प्रभाव से इच्छा करने पर चन्द्रमा सूर्यरुप में, सूर्य चन्द्ररुप में, पाताल आकाश रुप में, पृथ्वी स्वर्गरुप में परिणत हो सकते हैं। अधिक कहने से क्या? तीनोँ लोक मेँ ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो णमोकार मंत्र के साधक के लिए सम चाहने पर सम और विषम चाहने पर विषम न हो जाये।

तीन लोक में श्रेष्ट
मंत्र संसारसारं त्रिजगदनुपमं सर्वपापारिमंत्रं संसारोच्छेदमंत्रं विषमविषहरं कर्मनिर्मूलमंत्रम्
मंत्रं सिद्धिप्रदानं शिवसुखजननं केवलज्ञानमंत्रं मंत्रं श्रीजैनमंत्रं जप जप जपितं जन्मनिर्वामंत्रम् (मंगलमंत्र णमोकार एक अनुचिंतन)

अर्थ- णमोकार मंत्र संसार में सारभूत है, तीनों लोकों में इसकी तुलना के योग्य दूसरा कोई मंत्र नहीं है, समस्त पापों का यह शत्रु है, संसार का उच्छेद करने वाला है, भयंकर विष को हर लेता है, कर्मों को जड मूल से नष्ट कर देता है, इसी से सिद्धि-मुक्ति का दाता है, मोक्ष सुख का और केवज्ञान को उत्पन्न करने वाला है। अत: इस मंत्र को बार-बार जपो, क्योंकि यह जन्म-परम्परा को समाप्त कर देता हैं।

हल पल साथ
अपवित्र: पवित्रो वा, सुस्थितो दु:स्थितो1पि वा।
ध्यायेत्पंच-नमस्कारं, सर्वपापै: प्रमुच्यते॥ 1॥
अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो1पि वा।
य: स्मरेत्परमात्मानं स बाह्राभ्यंतरे शुचि:॥ 2॥
अपराजित-मंत्रो1यं, सर्व-विघ्न-विनाशन:।
मंगलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मंगलं मत:॥ 3॥
विघ्नौघा: प्रलयं यांति, शाकिनी-भूत-पन्नगा:।
विषं निर्विषतां याति, स्तूयमाने जिनेश्वरे। (ज्ञानपीठ पुंजाजलि)

अर्थ- पवित्र हो या अपवित्र, अच्छी स्थिति में हो या बुरी स्थिति में, पंच-नमस्कार मंत्र का ध्यान करने से सब पाप छूट जाते हैं। पवित्र हो या अपवित्र, किसी भी दशा में हो, जो पंच परमेष्ठी (परमात्मा) का स्मरण करता है वह बाह्य और अभ्यंतर से पवित्र होता है। यह नमस्कार मंत्र अपराजित मंत्र है। यह सभी विघ्नों को नष्ट करनेवाला है एवं सर्व मंगलों में यह पहला मंगल है। विघ्नों के समूह नष्ट हो जाते हैं एवं शाकिनी, डाकिनी, भूत, पिशाच, सर्प आदि का भय नहीं रहता और भयंकर हलाहल-विष भी अपना असर त्याग देते हैं।

अंतिम समय सुनने का फल
कृत्वा पाप सहस्त्राणि हत्वा जंतुशतानि अमुं मंत्रं समाराध्य तिर्यंचि1पि दिवं गता:॥ ज्ञानार्वण॥

भार्वाथ- तिर्यंच पशु-पक्षी, जो मांसाहारी, क्रूरू हैं जैसे सर्प, सिन्हादि, जीवन में सहस्त्रों प्रकार के पाप करते हैं। ये अनेक प्रणीयों की हिंसा करते हैं, मांसाहारी होते हैं तथा इनमें क्रोध, मान, माया और लोभ कषायों की तीव्रता होती है, फिर भी अंतिम समय में किसी दयालु द्वारा णमोकार मंत्र का श्रवण करने मात्र से उस निंघ तिर्यंच पर्याय का त्याग कर स्वर्ग में देव गति को प्राप्त होते हैं।

जिनवाणी का सार
जिणसासणस्य साये चउदसपुव्वाणं समुद्धारो।
जस्य मणे णमोकाये संसारो तस्य किं कुणादि॥
वि.(आइरिय वसुणदि तच्चतियारो)

जो सम्पूर्ण जिनशासन का सार, चौदह पूर्वों का भी निचोड है, ऐसा णमोकार मंत्र जिसके हदय में सदा रहता है, यह संसार उसका क्या बिगाड सकता है?

तिर्यंच गति से देव गति
मरणक्षणलब्धेन येन श्वा देवा1जनि।
पंचमंत्रपदं जप्यमिदं केन न धीमता॥ (क्षत्रचूडामणि)

मरणोन्मुख (कुत्ते को) जीवधर स्वामी ने करुणावश णमोकार मंत्र सुनाया था, इस मंत्र के प्रभाव से वह पापाचारी श्वान देवता के रुप में उत्पन्न हुआ। अत: सिद्ध है कि मंत्र आत्मविशुद्धि का बहुत बडा कारण है।

कब कब जप करना चाहिए
णमोकार मंत्र का श्रद्धा व आस्था के साथ हर कार्य के साथ जाप, स्मरण और ध्यान करने से वह कार्य अवश्य ही सफलता को प्राप्त होता है।

स्वपन् जाग्रत्तिष्ठन्नपि पथि चलन् वेश्मनि सरन्
भ्रमन् क्लिश्यन् माघन् वनगिरिसमुद्रेष्ववतरन्।
नमस्कारान पंच स्मृतिखनिनिखातानिव सदा,
प्रशस्तैर्विज्ञप्तानिव वहति य: सो1त्र सुकृती॥

सोते हुये, जागते हुए, ठहरते हुये, मार्ग मे चलते हुये, घर में चलते हुये, घूमते हुये, क्लेश दशा में मद-अवस्था में वन-गिरि और समुद्रों में अवतरण करते हुये, जो व्यक्ति (सुकृती) प्रशस्ति से वोज्ञापित किये गये इन नमस्कार मंत्रों को अपनी स्मृतिरुप खजाने मे रखे हुये के समान धारण करता है, वह बडा भाग्यशाली (सुकृती पुण्यवान्) है।

मंगल रुप णमोकार मंत्र
मंगलकारकवस्तूनां दधिदूर्वाक्षतचन्दननालिकेरपूर्ण-कलश-स्वस्तिक-दर्पण-भद्रासन-वर्धमान-मत्स्ययुगल-श्रीवत्सनंघावर्तादीनां मध्ये प्रथमं मुख्यं मगलं मंगलकारको भवति। यतो1स्मिन् पठिते जप्ते स्मृते च सर्वाण्यपि मंगलानि भवतीत्यर्थ:

भावार्थ दधि, दर्वा, अक्षत, चन्दन, नारियल, पूर्णकलश, स्वस्तिक, दर्पण, भद्रसन, वर्धमान, मत्स्य-युगल, श्रीवत्स, नंघावर्त आदि मंगल वस्तुओं में णमोकार मंत्र सबसे उत्कृष्ट मंगल है। णमोकार मंत्र का स्मरण और जप से अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है। अमंगल दूर हो जाता है और पुण्य की वृद्धि होती है।

शांति को देने वाला
ननु उवसग्गे पिडा कूरग्गह दंसणं भओ संका।
जइ वि न हवंति ए ए, तह वि सगुज्झं भणिज्जासु

उपसर्ग, पीडा, कूरग्रह, दर्शन, भय, शंका आदि न भी हो तो भी शुभ ध्यान पूर्वक णमोकार मंत्र का जाप या पाठ करने से परम शांति प्राप्त होती है। णमोकार मंत्र सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है।

उपवास का फल
विशुद्धया चिंतयस्तस्य शतमष्टोत्तरं मुनि:।
भुंजानो1पि लभेतैव चतुर्थतपस: फलम्॥
हेमचन्द्रचार्य का योगशास्त्र (मंगलमंत्र णमोकार एक अनुचिंतन)

विशुद्धि पूर्वक इस (णमोकारमंत्र) मंत्र का 108 बार ध्यान करने से भोजन करने पर भी चतुर्थोपवास-प्रोषधोपवास का फल प्राप्त होता है।

जाप विधि
णमोकार मंत्र का जाप -1.द्रव्य2.क्षेत्र 3.समय 4.आसन 5.विनय 6.मन 7.वचन 8.काय इन आठ प्रकार की शुद्धि के साथ जाप करने पर फल जल्दी मिलता है।

द्रव्य शुद्धि- द्रव्य शुद्धि का अर्थ है अंतरंग शुद्धि से है। पाँचों इन्द्रिय तथा मन को वश में कर कषायों का कम करना तथा दयालुचित हो कर जाप करना चाहिए।

क्षेत्र शुद्धि - ऐसा स्थान जहाँ हल्ला-गुल्ला नही हो, मच्छर, डाँस भी नही हो, मन को आशांत करने के साधन न हो तथा जहाँ पर न तो अधिक उष्ण हो न ही अधिक शीत हो एसे स्थान का चयन कर जाप करने बैठना क्षेत्र शुद्धि है।

समय शुद्धि -प्रात:मध्याह और सन्ध्या के समय कम से कम 45 मिनट तक जाप करना चाहिए।

आसन शुद्धि- काष्ठ, शिला, भूमि, चटाई या शीतल पट्टी पर पूर्वदिशा या उत्तर दिशा में मुख पद्मासन, खड्गासन या अर्धपद्मासन होकर जाप करना चाहिए।

विनय शुद्धि- जिस आसन पर बैठक कर जाप करना है उसे ईयापथ शुद्धि के साथ साफ करना चाहिए। जाप करते समय मन में मंत्र के प्रति श्रद्धा, अनुराग और नम्रता का भाव रहना आवश्यक है।

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मन शुद्धि- अशुभ विचारोँ का त्याग कर शुभ विचार को ग्रहण करना, मन को चंचल होने से रोकना मन शुद्धि है।

वचन शुद्धि- धीर-धीर अर्थ समझते हुए शुद्ध उच्चारण करना, मन-मन में उच्चारण करना वचन शुद्धि है।

काय शुद्धि-शौचादि जाने के बाद शरीर की यथा योग्य शुद्धि करना तथा शरीर का हलन-चलन नही होने देना काय शुद्धि है।

जाप का फल
- णमोकार मंत्र के एक अक्षर का भाव सहित जाप व स्मरण करने से सात सागर तक भोगा जाने वाला पाप नष्ट हो जाता है। - णमोकार मंत्र के एक पद का भाव सहित जाप व स्मरन करने से पचास सागर तक भोगा जाने वाला पाप कर्म का नाश हो जाता है।
- सम्रग णमोकार मंत्र का भक्ति भाव सहित विधिपूर्वक जाप व स्मरण करने से पाँच सौ सागर तक भोगे जाने वाला पाप कर्म नष्ठ हो जाता है।
- णमोकार मंत्र के आठ करोड, आठ लाख, आठ हजार और आठा सौ आठा बार लगातार जाप करने से शाश्वत सुख अर्थात मोक्ष को प्राप्त करता हैं।
- णमोकार मंत्र के सात लाख लगातार जाप करने से जीव समस्त प्रकार के दु:खों व कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
- णमोकार मंत्र का धूप देकर एक लाख जाप करने से मनोकामना पूर्ण होती है।
-णमोकार मंत्र का आनुपूर्वी क्रम से मंत्र का स्मरण और मननकरने से आत्मिक शांति मिलती है। णमोकार मंत्र का जाप श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाने पर ही फल प्राप्त होता है।

ग्रह की शांति
णमोकार मंत्र का पाठ व जाप नव ग्रह की पीडा को शांत करता है। णमोकार मंत्र अलग-अलग पदो से नव ग्रहों की पीडा शांत होती है।
ऊँ णमो सिद्धाणं का जाप करने से सूर्य ग्रह की पीडा शांत होती है।
ऊँ णमो अरिहंताणं का जाप करने से चन्द्रग्रह शुक्र ग्रह, की पीडा शांत होती है।
ऊँ णमो सिद्धाणं का जाप करने से मंगल ग्रह की पीडा शांत होती है।
ऊँ णमो उवज्झायाणँ का जाप करने से बुध ग्रह की पीडा शांत होती है।
ऊँ णमो आइरियाणँ का जाप करने से गुरु ग्रह की पीडा शांत होती है।
ऊँ णमो लोए सव्वसाहूणं का जाप करने से शनि ग्रह की पीडा शांत होती है।
राहु और केतु ग्रह की पीडा शांत करने के लिए समस्त णमोकार मंत्र का जाप किया जाता है।

बीज मंत्र की उत्पत्ति
ऊँ बीज समस्त णमोकार मंत्र से उत्पन्न हुआ है।
ह्रीं बीज की उत्पत्ति णमोकार मंत्र के प्रथम पद णमो अरिहंताणं से हुई है।
श्रीं बीज की उत्पति णमोकार मंत्र के द्वितीय पद णमो सिद्धाणं से हुई है।
क्षीं और क्ष्वीं की उत्पति णमोकार मंत्र प्रथम, द्वितीय और तृतीय पदों से हुई है।
क्लीं बीज की उत्पति प्रथम पद में प्रतिपादित तीर्थंकरों की यक्षिणियों से हुई है।
ह्र्रं की उत्पति णमोकार मंत्र के प्रथम पद से हुई है।
द्रां द्रीं की उत्पत्ति णमोकार मंत्र के चतुर्थ और पंचम पद से हुई है।
ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: ये बीजाक्षर प्रथम पद से उत्पन्न हुई है।
क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षौं: बीजाक्षर प्रथम, द्वितीय ओर पंच पद पर निष्पन्न है।

णमोकार व्रत
णमोकारपैंतीसीव्रत एक वर्ष छह महीने में पुरा होता है। कुल 35 उपवास होते हैं। इस व्रत का प्रारम्भ प्रथम आषाढ शुक्ला सप्तमी से होता है, फिर श्रावण महिने की दोनों सप्तमी, भाद्रपद की दोनों सप्तमीआश्विन महीने की दोनों सप्तमी, फिर कार्तिक कृष्ण पंचमी से पौष कृष्ण पंचमी तक पाँच उपवास, फिर पौष कृष्ण चतुर्दशी से चैत कृष्ण चतुर्दशी तक सात उपवास फिर चैत्र शुक्ला चतुर्दशी से आषाढ शुक्ला चतुर्दशी तक सात उपवास फिर श्रावण कृष्ण नवमी से अगहन कृष्ण नवमी तक नौ उपवास होते हैं। यह इसी क्रम से ही होते हंै। वर्धमान पुराण में णमोकार मंत्र को 70 दिन में कर सकते हैं ऐसा विधान है अर्थात लगातार 70 दिन तक एकाशन कर के किया जा सकता है।

णमोकार मंत्र का फल
जे के वि गया मोक्खं गच्छांति य जे के वि कम्ममलमुक्का।
ते सव्वं वि य जाणसु जिणणमोक्कारप्पभावेण॥ ( तच्चवियारो)
जो कोई भी आज तक मोक्ष गये है, कर्ममल से मुक्त हुए है, वह सभी णमोकार मंत्र का प्रभाव जानो है।

एसो मंगल-निलओ मयविलओ सयलसंघसुहजनओ।
नवकारपरममंतो चिंति अमित्तँ सुहँ देई॥
नवकारो अन्नो सारो मंतो न अत्थि तियलोए।
तम्हाहु अणुदिणँ चिय, पठियव्वो परममत्तीए॥
हरइ दुहँ कुणइ सुहँ जणइ जसँ सोसए भवसमुद्दं।
इहलोय-परलोइय-सुहाण मूंल नमोक्कारो॥

अर्थात- यह मंत्र मंगल का आगार, भय को दुर करनेवाला, सम्पूर्ण चतुर्विध संघ को सुख देनेवाला और चिंतनमात्र से अपरिमित शुभ फल को देनेवाला है। तीनों लोकों में णमोकार मंत्र से बढकर कुछ भी सार नहीं, इसलिए प्रतिदिन भक्ति भाव और श्रद्धापूर्वक इस मंत्र को पढना चाहिए। यह दु:खों का नाश करनेवाला, सुखों को देनेवाला, यश को उत्पन्न करने वाला और संसाररुपी समुद्र से पार करनेवाला है। इस मंत्र के समान इहलोक और परलोक में अन्य कुछ भी सुखदायक नहीं है।