
धूमावती माता प्रकटोत्सव 28 मई 2023
माता धूमावती के उपाय
धार्मिक पुस्तकों के अनुसार मां धूमावती का अवतार पापियों को दंड देने के लिए हुआ है। माता धूमावती की पूजा से युद्ध में विजय के साथ ही विपत्तियों से मुक्ति मिलती है और रोग का नाश भी होता है। इनकी महिमा इतनी निराली है कि दर्शन मात्र से तमाम मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं, माता को देवी का फूल प्रिय है। ऐसे में माता धूमावती के कुछ आसान उपाय और हवन से भक्त अपनी समस्याओं का छुटकारा पा सकते हैं।
ग्रह दोषों से मुक्ति का उपायः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार काल सर्प दोष और क्रूर ग्रह दोष से छुटकारा पाने के लिए जटामांसी और काली मिर्च से प्रकटोत्सव के दिन माता के लिए होम (हवन) करना चाहिए।
कर्ज से मुक्ति का उपायः यदि आप कर्ज को लेकर परेशान हैं और उससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो कर्ज से मुक्ति के लिए माता धूमावती प्रकटोत्सव के दिन नीम की पत्तियों और घी से माता धूमावती के लिए हवन करना चाहिए।
गरीबी का उपायः माता धूमावती की कृपा से सब दुख दूर हो जाते हैं। गरीबी दूर करने की प्रार्थना को लेकर व्यक्ति को गुड़ और गन्ने से हवन करना चाहिए। इससे माता की कृपा से व्यक्ति की गरीबी दूर हो जाती है।
संकट से उबारने के लिएः यदि बड़े संकट और रोगों से जूझ रहे हैं तो धूमावती जयंती के दिन मीठी रोटी और घी का हवन करिए माता की कृपा से संकट दूर हो जाएगा।
शत्रु संहार के लिएः मान्यता है कि राई में सेंधा नमक मिला कर हवन करने से शत्रुओं का नाश होता है।
सौभाग्य वृद्धि के लिएः रक्तचंदन घिस कर शहद में मिलाने के बाद इसमें जौ मिलाकर यदि दुर्भाग्यशाली व्यक्ति हवन करे तो उसका दुर्भाग्य दूर हो जाएगा और वह सौभाग्यशाली बन जाएगा।
माता धूमावती की पूजा के छह मंत्र (Maa Dhumavati Ke Mantra)
(धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता धूमावती के मंत्रों का जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए और 21, 51 या 108 माला जाप करना चाहिए)
1. धूं धूमावती स्वाहा।
2. धूं धूं धूमावती स्वाहा।
3. धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा।
4. धूं धूं धुर धुर धूमावती क्रों फट् स्वाहा।
5. ॐ धूं धूमावती देवदत्त धावति स्वाहा।
6. ॐ धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात्।
धूमावती स्तुति (dhoomavati mata stuti)
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा।।
धूमावती अष्टक स्तोत्रं (Dhumavati Ashtakam Strotra)
।।अथ स्तोत्रं।।
प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती,
मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम्।
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां,
वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु आयुष्मान्।।1।।
बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोने:,
कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षै:।
पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ,
पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरव: कालरात्र्याम्।।2।।
चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्,
उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी।
नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्,
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती।।3।।
टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां वहन्ती,
स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा।
लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती,
चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु।।4।।
वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे,
नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम्।
स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं,
संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली।।5।।
तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा,
लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मन: पादशोभाम्।
दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा,
वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव।।6।।
सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां,
शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा।
दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची,
शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम्।।7।।
दंष्ट्रा रौद्रे मुखेऽस्मिंस्तव विशति जगद्देवि सर्वं क्षणार्द्धात्,
संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशा सम्प्लवे भूमधूम्रे।
काली कापालिकी साशवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा रक्तारुद्धिः,
सभास्था भरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा।।8।।
धूमावत्यष्टकम्पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम्,
य: पठेत्साधको भक्त्या सिद्धिं व्विन्दन्ति वाञ्छिताम्।।9।।
महापदि महाघोरे महारोगे महारणे,
शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनाम्मोहने तथा।।10।।
पठेत्स्तोत्रमिदन्देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत्,
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगा:।।11।।
सिंहव्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्रस्मरणमात्रत:,
दूराद्दूरतरं य्यान्ति किम्पुनर्मानुषादय:।।12।।
स्तोत्रेणानेन देवेशि किन्न सिद्ध्यति भूतले,
सर्वशान्तिर्ब्भवेद्देवि ह्यन्ते निर्वाणतां व्व्रजेत्।।13।।
।।इत्यूर्द्ध्वाम्नाये धूमावतीअष्टक स्तोत्रं समाप्तम्।।
Updated on:
27 May 2023 11:40 pm
Published on:
27 May 2023 10:23 pm
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