यहां सुनें बहन माया से बाचतीत के कुछ अंश
मुनि तरुण सागर की सल्लेखना शुरू होने की जानकारी लगते ही उनके गृहस्थ जीवन के रिश्तेदार और भक्तों का दिल्ली पहुंचना शुरू हो गया है। दमोह जिले के गुंहची गांव में उनका घर है। जहां से अधिकांश परिजन दिल्ली पहुंच चुके है। इसके अलावा तेंदूखेड़ा में उनके गृहस्थ जीवन की बड़ी बहन माया जैन रहती है। जिनके घर से भी परिजन दिल्ली पहुंच चुके है। माया जैन से पत्रिका प्रतिनिधि ने चर्चा की। इस दौरान उन्होंने बताया कि वह चार भाई और तीन बहनें है। जिनमें से एक तरुणसागर भी है। पत्रिका से बातचीत के दौरान माया जैन ने बताया कि तरुणसागर बचपन से ही धार्मिक रहे है। शरारत के साथ-साथ धर्म में उनका लगाव रहा है। वह भगवान बनना चाहते थे। यही कारण था कि १२ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने घर का त्याग कर आचार्यों के साथ रहने लगे थे। आचार्य विद्यासागर से ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेने के बाद वह वापस पीछे नहीं मुड़े और २० साल की उम्र में ही वह मुनि तरुणसागर बन गए। उन्हें आचार्य पुष्पदंग सागर ने मुनि दीक्षा दी। इसके बाद वह जो है सभी के सामने है। तब से वह हमारे नहीं जनसंत बन चुके थे। मुनि तरुणसागर की सल्लेखना की खबर अचानक सुनकर पूरा परिवार स्तब्ध है।
बहन माया जैन के अनुसार तरुण सागर घर से यह कहते हुए निकले थे कि वह भगवान बनना चाहते है, वह महावीर बनना चाहते है। आज समाधि भावना के साथ ही उनकी यह बात भी सच हो रही है। समाधि मरण की मोक्ष का रास्ता है। जो हर किसी को नहीं मिलता। भगवान महावीर के आदर्शों पर चलते हुए मुनि तरुणसागर ने समाज को नई दिशा दिखाने का कार्य है जो युगो-युगो तक याद किया जाएगा।