मैराइन-अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की जापानी एजेंसी की ओर से किए गए इस शोध में पाया कि खराब पोषण वाले वातावरण में भी जीवन का अस्तित्व हो सकता है। उन्होंने प्रशांत महासगर के साउथ पैसिफिक जायरे धाराओं के सिस्टम के 12,140 से 18700 फीट नीचे समुद्रतल से अवसाद के नमूनों का विश्लेषण किया। माना जाता है कि इस जगह जीवन की काफी कम संभावनाएं रहती हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों को समुद्र की गहराई में मिले एक हजार करोड़ पुराने सुक्ष्मजीवों के विकास ने हैरात में डाल दिया।
शोध के प्रमुख लेखक युकी मोरोनो का कहना है कि समुद्रतल के जैवमंडल (Biosphere) में जीवों की उम्र की कोई सीमा नहीं है। लैब में शोधकर्ता लंबे समय से बेकार पड़े एक कोशिका वाले जीवों को दोबारा जिंदा करने में कामयाब हुए। इसके लिए उन्होंने समुद्र तल से लिए गए नमूनों में कार्बन और नाइट्रोजन के सब्सट्रोट दिए। 68 दिन के बाद देखा गया कि करीब 7000 कोशिकाएं नए वातावरण में दोबारा सक्रिय हो गईं। साथ ही उनकी संख्या भी गुना बढ़ गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब ये सूक्ष्मजीव इन अवसादों में दबे होंगे उस वक्त एक क्यूबिक सेंटीमीटर में करीब दस लाख कोशिकाएं होंगी। मगर मुश्किल हालात के चलते अब महज एक क्यूबिक सेंटीमीटर में केवल एक हजार कोशिकाएं ही बची हैं। मगर ये बात हैरान करने वाली है कि ये सूक्ष्मजीव कैसे बचे और इनकी प्रजनन क्षमता बरकरार है।