यह जानकारी न्यूयार्क से सम्पादित बोल किट वेबसाइट के सम्पादक रामेन्द्र ने पत्रिका से बातचीत में दी। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कारों सुरक्षित करने के लिए कई बाल साहित्यकार यू-ट्यूब पर बच्चों को अपनी कहानी और रचनाएं सुना रहे हैं। साथ ही माता-पिता से अपील भी कर रहे हैं कि बच्चों का किताबों से परिचय करवाएं। माता-पिता अपने सुकून के लिए बच्चों को टीवी के सहारे नहीं छोड़ें। स्वयं को मिली स्नेह की विरासत से अपने बच्चों को वंचित नहीं करें।
READ MORE: बाल पत्रकारिता पर हुआ मंथन, विशेषज्ञों ने रखी राय यह करें अपने बच्चों के लिए बच्चों को अधिक कार्टून नहीं देखने दें। बच्चों को समय दें, उनके साथ खेले और उनके सवालों के जबाव दें। बच्चों को वृद्धों के सान्निध्य कोई भी अवसर नहीं छूटने दें। पढ़ाई का दबाव नहीं डालें और दूसरे बच्चों से प्रतिस्पद्र्धा नहीं कराएं। बचपन को बचपन रहने दें। एेसा कर माता-पिता भी अपना बचपन दोबारा जी सकते हैं।
READ MORE: आंखों पर पट्टी बांध कर ये बच्चे करते हैं ऐसा कमाल, देखनेवाले भी रह जाते हैं दंग बचपन फूल की तरह है जिसे स्वत: खिलने और संवरने दें। उन्हें अपनी पसंद की किताबें चुनने दें। उनको समय दें कहानी सुनाएं फिर देखें, संस्कार तो हवाओं में भी जीवंत हैं।
-बाल साहित्यकार रामेन्द्र