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उजाड़ पहाड़ी को मोरों से आबाद किया डॉक्टर ने

locationभोपालPublished: Mar 03, 2019 08:54:52 am

– राष्ट्रीय पक्षी मोरों का कुनबा बढ़ाने में डॉ. अजीत सलूजा का बड़ा योगदान] सूखते वन किया हरा-भरा, खिलाए फूल, वेस्ट वाटर को सहेज कर करते हैं पेड़-पौधों की सिंचाई…

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उजाड़ पहाड़ी को मोरों से आबाद किया डॉक्टर ने

भोपाल. सुबह सूर्य की पहली किरण उन्हें पेड़-पौधों को सींचते या मोरों को दाना देते देखती है। खिलते चट्टानी पहाड़ी पर खिलखिलाते बोगनवेलिया के फूलों और नाचते-घूमते मोरों को को देख उनकी मुस्कान खिल उठती है। जी हां, ये सच है। शाहपुरा और भरत नगर के बीच ई-8 की 87 नम्बर पहाड़ी को वर्षों से गुलजार कर रहे डॉ. अजीत सलूजा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। सुबह 6 बजे से 9 बजे के बीच किसी भी दिन इसी पहाड़ी पर पेड़-पौधों को सींचते या ट्रिमिंग करते डॉ. अजीत दिखाई दे जाएंगे। वे अपने कर्मचारी कमल और सीपीए के कर्मचारी रामदास के साथ सुबह तीन घंटे काम करते मिलेंगे। मोर और पेड़-पौधे की उनके साथी और दोस्त हैं।
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आरकेडीएफ मेडिकल कॉलेज में पैथोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. अजीत सलूजा अनन्य प्रकृति प्रेमी हैं। डॉ. अजीत बताते हैं कि वर्ष 1995 में यह पहाड़ी वीरान थी। पेड़-पौधे नहीं थे। उन्होंने तब से पौधे लगाने और सहेजने का कार्य शुरू किया। पिछले 5-7 वर्षों से तो सीपीए-फॉरेस्ट भी काम कर रहा है। इस समय यहां 25 हजार के लगभग छायादार और फूल वाले पेड़-पौधे हैं।
इन पेड़ों में बरगद, पीपल, कंज, कचनार, सेमल, नीम, गुलमोहर, बेर, ब्लेरीसीडिया, पापड़ा, आष्टा, अंजन, सावनिया, पल्टाफारम, पलाश आदि के पेड़ हैं। पानी की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए घर से एक पाइप डालकर पेड़ों तक पानी पहुंचाया। शाहपुरा छावनी गांव का वेस्ट वाटर एक गड्ढा कर उसमें इक_ा किया, उसके बाद उसमें बूस्टर पम्प डालकर इसी वेस्ट वाटर को लिफ्ट कर एक-एक पेड़ तक पानी पहुंचाया जा रहा है। दो बूस्टर पम्प में एक सीपीए ने प्रदान की है।
रोजाना करीब छह घंटे में 150 से अधिक पेड़-पौधों की सिंचाई की जाती है। उनका कहना है कि यदि इस पहाड़ी के क्षेत्र में बरसात का पानी रोकने के लिए सीपीए एक कच्चे डैम की ही व्यवस्था कर दे तो काफी पानी सहेजा जा सकता है, जिससे भूगर्भ जलस्तर तो बढ़ेगा ही, पेड़-पौधों और पक्षियों के लिए पानी पर्याप्त हो जाएगा।
इस पहाड़ी पर मोरों की संख्या बढ़ाने में डॉ. अजीत का बड़ा योगदान है। हर महीने एक-डेढ़ क्विंटल बाजरा मोरों को दिया जाता है। मोरों और अन्य पक्षियों के लिए पीने की पानी की व्यवस्था नहीं थी। घर की छत पर तो वे पानी रखते ही थे, उन्होंने पहाड़ी पर ही 25 गुणा 25 फीट का एक बड़ा सा हौज बनवाकर जाली से सुरक्षित करवा दिया। इसमें टैंकर्स से पानी डलवाया जाता है।
एमपी नगर में एक बार एक बरगद के पौधे को डम्पर ने उखाड़कर फेंक दिया था, डॉ. अजीत इस पौधे को उठा लाए और अपने पिता स्वर्गीय एसबी सलूजा की स्मृति में यहां लगा दिया। उनके पिता पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग में ज्वाइंट डायरेक्टर थे। अब यह पेड़ काफी बड़ा हो गया और हरा-भरा है। कई पक्षी इसपर बसेरा करते हैं। उनके प्रयासों से बोगनवेलिया और अन्य प्रजातियों के फूल यहां मन को बरबस अपनी ओर खींचते हैं।

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