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Happy Women’s Day: महिला सुरक्षा पर अब काम करने का वक्त, आजादी के सही मायने समझने का वक्त

International Women's Day: याद रखना होगा कि भारत में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जो नारी के सौंदर्य से इतर उसके अदम्य साहस, वीरता, प्रेरणा, त्याग, करुणा की गौरवगाथा सुनाते हैं और बताते हैं कि महिलाएं कभी कमजोर थी ही नहीं, न हैं और न रहेंगी... जानें इस बार कैसे मनाएं International Women's Day?

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international women's day special

International Women's Day 2025: पुराणों में लिखा है, सृष्टि की रचना में नारी है, यौद्धाओं की तलवार की धार नारी है, हर सभ्यता के उत्थान में नारी है, प्रकृति, जैविकता, काव्यात्मक, प्रतीकात्मक चाहे जिस नजरिए से देख लो, हर हाल में सृजन, शक्ति और सहनशीलता की प्रतीक नारी है। वो दिन फिर आ रहा है, जिसे सारी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाती है।

विश्व महिला दिवस 2025 की थीम और हिस्ट्री

इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस नई थीम 'सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार। समानता। सशक्तिकरण।' के नाम से मनाया जाएगा। हमें याद रखना होगा कि 1910 में अमरीका की क्लारा जेटकिन ने ही इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखी थी।

भारत में भरे पड़े हैं उदाहरण

याद रखना होगा कि भारत में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जो नारी के सौंदर्य से इतर उसके अदम्य साहस, वीरता, प्रेरणा, त्याग, करुणा की गौरवगाथा सुनाते हैं और बताते हैं कि महिलाएं कभी कमजोर थी ही नहीं, न हैं और न रहेंगी। फिर क्यों हम सदियों बाद भी उसकी सुरक्षा और स्वतंत्रता के नाम पर रटी रटाई एक लाइन कहने को मजबूर होते हैं कि 'सुनो सुरक्षा मांगने वाली बेटियों पहले खुद को कमजोर समझना बंद करो, क्योंकि तुम अब अबला नहीं सबला हो… क्यों? …आखिर क्यों हर बार महिलाओं को ये सीख देने की जरूरत महसूस करते हैं हम…।

कमजोर होती अगर महिला तो कैसे रचती इतिहास, कैसे बनतीं फिल्में

ऐसा कहने वालों को सोचना होगा और समझना भी कि अगर वो कमजोर होतीं तो न झांसी की रानी होतीं, न रानी दुर्गावती होतीं, न कल्पना चावला होतीं, न मैरी कॉम, मितालीराज और मनु भाकर होतीं, हर दिन अपने काम पर जाने वालीं बेटियां, बहुएं और न ही घर की चौखट लांघकर दूसरे शहरों राज्यों और देशों में जाकर पढ़ने, करियर बनाने वाली नव युवतियां होतीं, और तो और समाज का आईना दिखाने वाली लिपस्टिक अंडर माय बुर्का, थप्पड़ और मिसेस जैसी फिल्में होतीं।

अब हमें वाकई सोचना होगा

हमें वाकई सोचना होगा कि क्योंकि आज महिला शिक्षा की स्थिति बेहतर है, महिला अधिकारों को लेकर जागरुकता की स्थिति भी काफी बदल चुकी है, अब हर मां, दादी, नानी यहां तक कि ज्यादातर परिवार चाहते हैं कि उनके घर की बेटियां सक्षम हों, आत्मनिर्भर बनें।

खुद को बहादुर और निडर समझने वाली बेटियों का क्या हुआ?

इसी का परिणाम और आधुनिक नारी की ये सोच कि उसे करियर बनाना है, नाम कमाना है, वह स्वतंत्र है आज कुछ भी बनने और कर गुजरने के लिए, मन की यही लगन उसे निडर होकर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है, हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत साबित करने इसी तरह अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए वो अपने हर दिन का सफर तय करती है… (Crime Against Women)...

1.- लेकिन फिर एक दिन यात्रियों से खाली बस में बैठती है, जिसमें कंडक्टर, ड्राइवर, एक दो उनके पुरुष साथी होते हैं, फिर होता वो है जो उसने या उसके परिवार ने कभी सोचा भी नहीं, घर-परिवार से मिले संस्कार उसे एक सुरक्षित माहौल दिखाते हैं, उसे बिना डरे आगे बढ़ना सिखाते हैं, लेकिन इससे इतर वो पुरुष हैवानियत का शिकार होती है और निर्भया कांड की दर्दनाक सिहरा देने वाली घटना बनकर अपराधों के इतिहास में दर्ज हो जाती है। 16 दिसंबर 2012 की रात निर्भया के साथ इतनी बर्बरता आज तक कोई नहीं भूला और न ही उसे भुलाया जा सकता है।

2.- घर-परिवार से मिली ऐसी ही सीख के बाद दिन भर की थकी हारी एक मेडिकल स्टूडडेंट कितनी बेफिक्र होकर सो जाती है, क्योंकि उसके मन के किसी कोने तक किसी छोटी सी भी अनहोनी का अंदाज़ा ही नहीं था। यह मामला अगस्त 2024 का है, जब पूरे देश ने देखा कि किस तरह की हैवानियत एक डॉक्टर के साथ की गई। किस तरह से उसे मार दिया गया। पूरे देश में इसे लेकर विरोध-प्रदर्शन हुए। नए कानूनों को बनाने की बात की गई, लेकिन आज हाल क्या हुआ? वो भी कोलकाता डॉक्टर रेप केस की खौफनाक कहानी बनकर रह गई।

3.- सितंबर 2024 में उज्जैन में भरी सड़क पर एक महिला का रेप हो रहा था और किसी ने उस घटना को रोकने की कोशिश तक नहीं की, बल्कि उसका वीडियो बनाया और ऑनलाइन वायरल भी कर दिया, सामाजिक संवेदनहीनता की निर्मम कहानी सुनाती ये घटना उज्जैन रेप केस के नाम से मध्य प्रदेश के माथे पर कलंक बनकर रह गई।

4.- मासूमों से रेप के, रेप कर हत्या के मामले अब सड़कों से ही नहीं कोचिंग से, स्कूलों और होस्टल्स से भी सामने आते हैं। मासूमों से रेप के मामले सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में होते हैं।

5. हाल ही में मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग के शिवपुरी जिले से ऐसी ही रौंगटे खड़े कर देने वाली वारदात सामने आई, 5 साल की मासूम बच्ची से एक नाबालिग ने रेप की वारदात को अंजाम दिया, वहीं बच्ची के प्राइवेट पार्ट को दांतों से चबा डाला, उसके शरीर पर जगह-जगह दांत गड़े थे, डॉक्टरों ने जैसे-तैसे मासूम की जान बचाई।

6.- भले ही भारत का नाम अब दुनिया के बड़े देशों के साथ लिया जाता हो, लेकिन महिला सुरक्षा आज भी शार्मिंदा करती है, क्रूरता की सारी हदें पार करने वाला ये मामला तो होश उड़ा देता है कि अपना वहशीपन छिपाने एक पुरुष ने महिला के शरीर के 50 टुकड़े कर उसकी लाश को फ्रिज में रख दिया गया। बेंगलुरु की ये भयावह वारदात हम कैसे भूल सकते हैं।

मध्य प्रदेश में महिला सुरक्षा का हाल

महिला अपराधों की सूची में भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक है, तो मध्य प्रदेश में हालात सबसे बदतर। यहां महिलाओं की हत्या के मामलों में 2024 में 57 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। दहेज हत्या के मामलों में भी 86 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अपहरण और हत्या के मामले भी 16 फीसद तक बढ़े हैं। हालांकि सामूहिक दुष्कर्म के मामलों मे 5.4 फीसदी कमी दर्ज की गई है। छेड़छाड़ के अपराधों में 11.1 फीसदी की कमी आई है। लेकिन अब इन्हें हर हाल में पूरी तरह से रोकना होगा।

स्वतंत्रता मिले कैसे, जब नहीं बदल रहे हालात

आज की नारी सुरक्षा की नहीं स्वतंत्रता की बात करती है, लेकिन कितना शर्मनाक है ये कहना कि वो समझती है मैं सुरक्षित हूं, कितनी टीस देते हैं ये शब्द कि जमीनी हकीकत आज भी नहीं बदली। ये वक्त का तकाजा है कि उसे आज भी सुरक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत है। ये मामले दिखाते हैं, सबला, स्वतंत्र नारी को पुख्ता सुरक्षा व्यवस्थाओं की जरूरत है, कानूनों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है, सामुदायिक भागीदारी और महिलाओं के लिए एकजुट होने की जरूरत है, नारी सुरक्षा समितियों जैसी एक पहल अब गली मोहल्लों में करनी होगी, टेक्नोलॉजी का बेहतर इस्तेमाल, इमरजेंसी अलर्ट, ट्रैकिंग एप, सीसीटीवी कैमरों और उनकी मॉनिटरिंग को मजबूत किए जाने की जरूरत है। आर्थिक स्वतंत्रता महिला उद्यमों को और ज्यादा बढ़ाए जाने की जरूरत है।

सरकारी स्तर की सुरक्षा भी चाहिए सड़कों पर अंधेरा न हो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में उसकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हों, सड़कों, चौराहों पर, बस स्टैंड्स, रेलवे स्टेशन हर जगह उसकी सुरक्षा के लिहाज से चाक चौबंद हों।

अब मनोचिकित्सकों को आगे आना होगा

और सबसे खास और अनिवार्य पहल, जिसे आज और अभी से करने की जरूरत है, ये भी वक्त की ही नजाकत है कि अब पुरुष की मानसिकता बदलने की जरूरत है, पितृ सत्तात्मक, पुरुषवादी सोच का सामाजिक ढांचा बदलने की जरूरत है। घर-परिवार के सदस्यों के साथ ही अब बारी है मनोचिकित्सकों की, इन एक्सपर्ट्स को नारी सुरक्षा का भार उठाना होगा, इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) पर महिलाओं के साथ पुरुषों को भी पाठ पढ़ाना होगा, खुद बेटियों और महिलाओं को चाहिए कि गलत के खिलाफ आवाज उठाएं, हंसी-मजाक में भी आपकी मर्यादा पर कोई वार न कर सके।

तुम कमजोर कभी रही ही नहीं, समाज तुम्हारी शक्ति को खतरा मान तुम्हें कमजोर बनाता और समझाता आया है। नौकरी जाने के डर से खुद का शोषण होने देने या खुद को हालात में ढालना बंद करो, ये समय है हर उस पल के खिलाफ आवाज उठाने का, जो तुम्हारे जमीर को नागवार गुजरा हो, जिसने तुम्हें आत्मा तक कचौट कर रख दिया हो।

आजादी के सही मायने समझें

यही समय है और सही समय है ये समझने का कि तुम्हारी आजादी सिगरेट फूंकने, देर रात तक बाहर घूमने या फिर शराब पीने का नाम नहीं है, ये तो हम मुकाबला कर बैठे हैं... अपराधों की दुनिया को बढ़ावा देने का दुस्साहस कर बैठे हैं... सेहत के साथ खिलवाड़ का दुशाला ओढ़ बैठे हैं, जो सिर्फ भविष्य में तुम्हारी-हमारी पीढ़ियों को गर्त में धकेल देगा, बात महिला अधिकारों की है, बात बराबरी की है, तो बराबरी शिक्षा की है, बराबरी रोजगार में समान अवसर, वेतन और पदोन्नति की है, बराबरी निर्णय लेने की है, बराबरी कानूनी सुरक्षा और महिला अधिकारों की है।

आइए इस बार हम स्त्री-पुरुष का भेद मिटाकर साथ-साथ मनाएं महिला दिवस

तो आइए इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women Day 2025) पर आगे बढ़ रहीं, खुद को स्थापित कर रहीं महिलाओं और बेटियों के सम्मान के साथ समाज को एक नई दिशा और दशा देने की एक छोटी सी शुरुआत करते हैं, इस बार महिला जागरूकता के जश्न के साथ पुरुष मानसिकता बदलने के प्रयास शुरू करते हैं। थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन, ये प्रयास बेटियों का भविष्य सुरक्षित कर देंगे, तब वो न अपनी सुरक्षा के लिए लड़ेगी और न ही उसे अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा। कितना सुनहरा होगा वो समय और कितनी चमकीली सी होगी बराबरी की वो दुनिया जब स्त्री देह से आगे होगी, उसकी भावनाएं समझने वाला अकेला पिता या मां का मन नहीं बल्कि, एक भाई, एक दोस्त, पति भी होगा। तब कितना सुंदर वो एक नया जहान होगा।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक, कैसे मिटेगा लड़का-लड़की का भेदभाव?


इस मामले पर जब भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. नरेंद्र सिंह राजपूत से बात की तो उन्होंने बेबाकी से दिया जवाब, आप भी देखें और ध्यान से सुनें डॉ, नरेंद्र सिंह राजपूत से पत्रिका की खास बातचीत के अंश

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