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मैदान में हार रहा खेल…कमजोर नींव के भरोसे खेलों में पदक की उम्मीद

locationभोपालPublished: Sep 24, 2021 10:42:09 pm

Submitted by:

Shailendra Sharma

खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर नहीं खेल मैदान, स्कूलों में न खेल मैदान न खेल प्रशिक्षक…

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राजीव जैन

भोपाल. इस बार ओलंपिक खेलों में कुछ बेहतर प्रदर्शन से प्रेरित युवा खिलाड़ियों का उत्साह भोपाल व नर्मदापुरम संभाग में खेल सुविधाओं के अभाव में काफूर हो रहा है। राजधानी के आसपास के जिलों में एक भी स्तरीय खेल स्टेडियम और खेल परिसर नहीं है और न ही खिलाड़ियों के लिए खेल संसाधन प्रचुरता से उपलब्ध हैं। कुछ जगह स्टेडियम बने हैं, लेकिन वे नाम के हैं। पत्रिका ने आसपास के जिलों में खेल सुविधाओं पर नजर डाली, तो कुछ ऐसी ही तस्वीर नजर आई।

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मंत्रियों के इलाकों से समझें प्रदेश में कैसे हैं हाल…

– महेंद्र सिंह सिसौदिया, पंचायत मंत्री, बमोरी गुना
प्रदेश के पंचायत मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया के पूरे विधानसभा क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए कोई ग्राउंड या खेल स्टेडियम नहीं है। क्षेत्र के एक भी सरकारी स्कूल में खेल मैदान नहीं है। इससे ग्रामीण खेल प्रतिभाएं नहीं निकल पा रही हैं। पत्रिका के सवाल पर मंत्री सिसोदिया ने कहा कि वे बिश्नवाड़ा में स्टेडियम निर्माण कराएंगे।

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कमल पटेल, कृषि मंत्री हरदा
जिला मुख्यालय पर नेहरू स्टेडियम है। बारिश से जगह-जगह पानी भरा रहता है। यहां एक साथ कबड्डी, खो-खो, एथलेटिक्स, फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबॉल, शूटिंग बॉल आठ आउटडोर खेल खेले जाते हैं। सभी वर्ग के बच्चे एक ही समय पर खेलने आते हैं। इससे विवाद की स्थिति भी बन जाती है।

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प्रभुराम चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री, सांची रायसेन
रायसेन में खेल एवं युवक कल्याण विभाग का सर्वसुविधायुक्त स्टेडियम है। इसमें लॉन टेनिस और बास्केटबॉल कोर्ट भी है। यहां आज तक स्कूली खेल प्रतियोगिताओं के अलावा कोई बड़ी प्रतियोगिता नहीं हुई। राज्य स्तर की खेल प्रतियोगिताएं जिले में मंडीदीप और बरेली में होती हैं, लेकिन वहां अच्छा मैदान तक नहीं है। मंडीदीप में स्टेडियम की जमीन तय हुई पर निर्माण नहीं हुआ है। बरेली में 2013 में मुख्यमंत्री ने स्टेडियम बनाने की घोषणा की, लेकिन अब तक नहीं बना।

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पायका योजना बंद: स्टेडियम हो गए खंडहर
केंद्र सरकार ने 2014-15 में खेल को बढ़ावा देने के लिए पायका योजना में प्रदेश के हर ब्लॉक में इंडोर और आउटडोर स्टेडियम का काम शुरू किया। खेल विभाग ने ब्लॉक स्तर पर स्टेडियम के लिए पांच से सात एकड़ जमीन भी आवंटित कराई। योजना में एक खेल मैदान के विकास के लिए 80 लाख का बजट था। प्रदेश के ज्यादातर विकासखंड में स्टेडियम का निर्माण कार्य भी शुरू हुआ, लेकिन जब तक खेल मैदान बनकर तैयार होते, उससे पहले ही योजना बंद हो गई। बजट खत्म होने पर आरइएस ने जब इन आधे-अधूरे स्टेडियम को खेल विभाग के सुपुर्द करना चाहा तो स्टेडियम की सुरक्षा के लिए चौकीदार, कोच आदि स्टाफ के लिए पद स्वीकृति न होना बताकर खेल विभाग ने इन्हें लेने से इंकार कर दिया। आरइएस ने प्रदेश स्तर से एक पत्र लिख यह सभी आधे-अधूरे खेल मैदान पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को सुपुर्द कर दिए। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इनकी देख-रेख नहीं कर पा रहा। ऐसे में प्रदेश के 100 से ज्यादा ब्लॉक में आधे-अधूरे स्टेडियम खंडहर हो गए हैं या चारागाह और शराबियों का अड्डा बनकर रह गए हैं। इन मैदानों में आज तक कोई खेल नहीं हुए।

 

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कहां क्या हाल-
– अशोकनगर शहर का संजय स्टेडियम पशुओं का चारागाह और नशेड़ियों का अड्डा बना हुआ है। स्टेडियम में जगह-जगह गोबर पड़ा रहता है।
– राजगढ़ जिले में हर ब्लाक में 11 ग्रामीण स्टेडियम बनाए, लेकिन गांव में बने सभी खेल मैदान और स्टेडियम पर अतिक्रमण है। नरसिंहगढ़ में बने स्टेडियम में 1970 में इंग्लैंड और भारत का महिला हॉकी मैच हुआ पर अब हाल यह है कि रात में शराबी बैठते हैं तो दिन में वाहन खड़े रहते हैं। इससे स्टेडियम की हालत खराब हो गई।
– रायसेन जिले में जिला मुख्यालय के अलावा कहीं भी स्टेडियम नहीं हैं। साँची में 10 साल पहले स्टेडियम के लिए जगह चिन्हित कर बाउंड्री वाल बनाई, उसके बाद कोई काम नहीं हुआ।
– विदिशा जिले में ग्रामीण स्टेडियमों में पत्थर और झाड़ियां उग आई हैं और मवेशी चर रहे हैं।

 

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खेल शिक्षकों की कमी
– होशंगाबाद जिले में 1868 स्कूल हैं और 28 खेल शिक्षक हैं।
– रायसेन जिले में 186 हाई और हायर सेकंडरी स्कूल हैं, जिनमे से मात्र 15 स्कूलों में खेल प्रशिक्षक हैं।
– विदिशा के 2773 हाई-हायर सेकंडरी स्कूलों में से 14 में खेल प्रशिक्षक हैं।

 

कोच भी उपलब्ध नहीं
जिला स्तर पर खेल सुविधाओं की बात की जाए तो सरकारी तौर पर यह क्रिकेट और हॉकी तक ही सीमित रही जाती है। एथलेटिक्स, टेबल टेनिस, जंपिंग, बॉक्सिंग, कुश्ती और स्वीमिंग जैसे खेलों के लिए तो संसाधन और कोच न के बराबर हैं। होशंगाबाद में ताइक्वांडो, किक बॉक्सिंग, मार्शल आर्ट, रायफल शूटिंग, वाटर स्पोट्र्स (वाटर पोलो, स्वीमिंग), तलवारबाजी और स्केटिंग जैसे खेलों की प्रतिभा उभरने से पहले ही खत्म हो जाती है।

 

– प्रदेशभर में 133379 स्कूल
– 105029 स्कूलों में हैं खेल मैदान

जिला – कुल स्कूल – खेल मैदान
अशोकनगर – 1597 – 1284
बैतूल – 3143 – 2805
गुना – 2526 – 1752
हरदा – 2946 – 686
होशंगाबाद – 1955 – 1755
रायसेन – 2596 – 2201
राजगढ़ – 2920 – 2723
सीहोर – 2354 – 1734
विदिशा – 2684 – 2066

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एक्सपर्ट व्यू
प्रदेश में खेल को बढ़ावा देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने की जरूरत है। खेल अकादमी तो दूर की बात, प्रदेश में खेल मैदान तक नहीं हैं। जब तक खिलाड़ियों को सुविधाएं नहीं मिलेंगी, तब तक हम खेल के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे। दूसरा, खिलाड़ियों के करियर को सुरक्षित करने की भी जरूरत है। कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है, मेडल जीते हैं, लेकिन उन्हें अपने जीवनयापन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है वो दूसरे प्रदेशों में जाकर खेल प्रशिक्षण दे रहे हैं। यदि उन्हें सरकारी और प्राइवेट नौकरी भी मिलती है तो पर्याप्त वेतन नहीं मिलता है। जब तक खेल के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने वाले युवाओं को अच्छा जीवन जीने के लिए सरकार सुविधाएं मुहैया कराने की योजना नहीं बनाएगी, युवा खेल के क्षेत्र में करियर के हिसाब से नहीं आएंगे, शौकीन गिने-चुने लोग ही खेल के क्षेत्र में आ रहे हैं। पड़ोसी राज्य गुजरात से तुलना की जाए तो वह मध्यप्रदेश से बहुत आगे है। वहां खेल मैदान हैं, खेल अकादमी हैं। मध्यप्रदेश में तो गिनी चुनी खेल अकादमी हैं। सरकार को खेल मैदान बनाकर ग्रामीण क्षेत्र से खिलाड़ी निकालने चाहिए। अच्छा खेलने वालों को रोजगार की गारंटी दी जानी चाहिए तभी लोग इसे करियर की तरह देखेंगे।

– ललिता सैनी, प्रदेश की पहली बी लाइसेंसधारी फुटबॉल कोच

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