script

Santan Saptami 2021: संतान सप्तमी की व्रत विधि, पूजन विधि के साथ ही जानें कथा

locationभोपालPublished: Sep 12, 2021 11:18:13 pm

इस तरह से करें भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना

santan saptami 2021

santan saptami 2021

हिंदू समाज के प्रमुख व्रतों में से एक संतान सप्तमी व्रत हर वर्ष भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है। ऐसे में इस साल यानि 2021 में संतान सप्तमी सोमवार, 13 सितंबर को है। इस पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये व्रत मुख्य रुप से संतान प्राप्ति,संतान रक्षा, संतान की खुशहाली और समृद्धि के लिए किया जाता है।

संतान सप्तमी : व्रत विधि
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार सप्तमी का यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान के लिए किया जाता हैं। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा दोपहर तक कर लेने का विधान है।

Lord Shiv and Goddess Parvati

संतान सप्तमी का यह व्रत करने वाली माताओं को इस दिन प्रात:काल में स्नानादि क्रियाओं से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए। तत्पश्चात सुबह के ही समय पूजा अर्चना के दौरान भगवान विष्णु और भगवान शिव के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

पंडित शर्मा के अनुसार इसके बाद व्रत के तहत निराहार रहते हुए दोपहर के समय चौक को साफ शुद्ध करने के बाद शिव-पार्वती की पूजा चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी और नारियल आदि से करनी चाहिए। नैवेद्ध के रुप में इस व्रत में खीर-पूरी और गुड के पुए बनाये जाते हैं। इस समय भगवान शिव को संतान की रक्षा की कामना के साथ कलावा अर्पित किया जाता है जिसके पश्चात स्वयं इस कलावे को धारण कर व्रत कथा सुननी चाहिए।

संतान सप्तमी व्रत : पूजन विधि
संतान सप्तमी के दिन माताएं सुबह स्नानादि के पश्चात व्रत करने का संकल्प भगवान शिव और मां पार्वती के सामने लें। पूजा के लिए चौकी सजाएं और फिर शिव-पार्वती की मूर्ति रखने के पश्चात नारियल के पत्तों के साथ कलश स्थापित करें। इस दिन निराहार अवस्था में शुद्धता के साथ पूजन का प्रसाद तैयार कर लें।

Must read- September 2021 festivals LIST : सितंबर 2021 के व्रत,तीज और त्यौहार

list_of_september_2021_festivals_calender.png

दोपहर के समय तक इस व्रत की पूजा कर लेनी चाहिए। पूजा के लिए धरती पर चौक बनाकर उस पर चौकी रखते हुए उस पर भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। अब कलश की स्थापना करते हुए उसपर आम के पत्तों के साथ नारियल रखें।

वहीं इसके बाद आरती की थाली तैयार करते हुए उसमें हल्दी, कुमकुम, चावल, कपूर, फूल, कलावा आदि सामग्री रख लें। फिर भगवान के सामने दीपक जलाएं और फिर केले के पत्ते में बांधकर 7 मीठी पूड़ियों को पूजा स्थान पर रख दें। जिसके बाद संतान की रक्षा और उन्नति के लिए प्रार्थना करते हुए भगवान शंकर को कलावा अर्पित करें।

मान्यता के अनुसार पूजा के समय सूती का डोरा या फिर चांदी की संतान सप्तमी की चूड़ी हाथ में अवश्य पहननी चाहिए। माना जाता है कि संतान सप्तमी के पूजन के पश्चात धूप, दीप नेवैद्य अर्पित करने के बाद संतान सप्तमी की कथा जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए। वहीं इसके बाद कथा पुस्तक का भी पूजन करना चाहिए। इसके बाद भगवान को भोग लगाकर व्रत खोलना चाहिए।

Must Read- परिवर्तिनी एकादशी पर ऐसे करें पूजा और जानें इसका महत्व

Parivartini Ekadashi
IMAGE CREDIT: patrika

संतान सप्तमी व्रत कथा
कथा के अनुसार प्राचीन काल में नहुष अयोध्यापुरी का प्रतापी राजा था। उसकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उसके राज्य में ही विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था, जिसकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी और रूपवती में परस्पर घनिष्ठ प्रेम था एक दिन वे दोनों सरयू में स्नान करने गईं। जहां अन्य स्त्रियां भी स्नान कर रही थीं।

उन स्त्रियों ने वहीं पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक उनका पूजन किया, तब रानी चंद्रमुखी और रूपवती द्वारा उन स्त्रियों से पूजन का नाम तथा विधि के बारे में पूछने पर एक स्त्री ने बताते हुए कहा कि यह संतान देने व्रत वाला है। इस व्रत की बारे में सुनकर रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने भी इस व्रत को जीवन-पर्यन्त करने का संकल्प किया और शिवजी के नाम का डोरा बांध लिया। लेकिन घर पहुंचने पर वे अपने संकल्प को भूल गईं। जिसके कारण मृत्यु के पश्चात रानी वानरी और ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में पैदा हुईं।

कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर पुनः मनुष्य योनि में आईं। चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी और रूपवती ने फिर एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया। इस जन्म में ईश्वरी नाम से रानी और भूषणा नाम से ब्राह्मणी जानी गईं। राजपुरोहित अग्निमुखी के साथ भूषणा का विवाह हुआ। उन दोनों में इस जन्म में भी बड़ा प्रेम हो गया।

पूर्व जन्म में व्रत भूलने के कारण इस जन्म में भी रानी की कोई संतान नहीं हुई। जबकि व्रत को भूषणा ने अब भी याद रखा था जिसके कारण उसने सुन्दर और स्वस्थ आठ पुत्रों ने जन्म दिया। संतान नहीं होने से दुखी रानी ईश्वरी से एक दिन भूषणा उससे मिलने गई। इस पर रानी के मन में भूषणा को लेकर ईर्ष्या पैदा हो गई और उसने उसके बच्चों को मारने का प्रयास किया। परंतु वह बालकों का बाल भी बांका न कर सकी।

इस पर उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताईं और फिर क्षमा याचना करके उससे पूछा- आखिर तुम्हारे बच्चे मरे क्यों नहीं। भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात स्मरण कराई साथ ही ये भी कहा कि उसी व्रत के प्रभाव से मेरे पुत्रों को आप चाहकर भी न मार सकीं। भूषणा के मुख से सारी बात जानने के बाद रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख देने वाला यह व्रत विधिपूर्वक रखा, तब व्रत के प्रभाव से रानी गर्भवती हुई और एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उसी समय से यह व्रत पुत्र-प्राप्ति के साथ ही संतान की रक्षा के लिए प्रचलित है।

 

ट्रेंडिंग वीडियो