उन्होंने कहा कि वैदिक मूल्यों पर नियंत्रण से मन स्थिर रहता है। यदि ऐसा होता है तो जीवन सुखमय बन जाता है। इन मूल्यों से दूर होने पर ही कष्ट शुरू होते हैं। सुख-दुख मन में ही समाहित है। यदि मन अपनी लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करे तो वे ब्रह्मा बन जाता है। कोठारी ने प्रासंगिक तरीके से श्रीकृष्ण के उपदेश समेत कई मायथोलोजिकल कथाओं को बताया।
कोठारी की बुक लॉचिंग में देश व विदेश से आए कई साहित्यकारों और कवियों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान दरबार हॉल में पैर रखने की जगह भी नहीं थी। विश्व में कई जगह अहिंसा पर व्याख्यान दे चुके अणुव्रत विश्व भारती के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष एस.एल.गांधी ने गुलाब कोठारी की पुस्तक ‘रे मनवा रे’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। बुक लॉचिंग के दौरान हुए सत्र में उन्होंने कोठारी का परिचय दिया और कहा कि वे महज एक महान पत्रकार ही नहीं, बल्कि अच्छे साहित्यकार और कवि भी है। उन्होंने कहा कि कवि जॉन किड्स ने नाइटेंगल और शैली ने स्काईलार्क से बात करते हुए कविता लिखी, जबकि कोठारी ने इसके विपरीत खुद से बातचीत पर कविता लिखी। इसमें कोठारी खुद के मन से पूछते हैं कि तुम इतने भटकते क्यों हो।
तुम ही तो लड़ाई-झगड़े के स्रोत हो। मन सत्य और वैदिक के रास्ते से भटकता है तो संघर्ष बढ़ता है। कोठारी अपनी कविता में खुद के मन से कह रहे हैं कि तुम अपनी सीमा में रहो।
यह मन की नहीं, बल्कि मन से बात है
संस्कृत के विशेषज्ञ और राजस्थान संस्कृत अकादमी के पूर्व अध्यक्ष देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने बुक की समीक्षा करते हुए इस बुक को अप्रितम बताया और इसे श्रेष्ठ काव्य का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि स्वयं से बातचीत की यह सृजनात्मक अभिव्यक्ति है।
संस्कृत के विशेषज्ञ और राजस्थान संस्कृत अकादमी के पूर्व अध्यक्ष देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने बुक की समीक्षा करते हुए इस बुक को अप्रितम बताया और इसे श्रेष्ठ काव्य का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि स्वयं से बातचीत की यह सृजनात्मक अभिव्यक्ति है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो मन की बात करते हैं, जबकि कोठारी ने यह मन से बात की है। उन्होंने मन, मानस और मनवा में अंतर भी बताया। उन्होंने कहा कि इस किताब में कई तरह की खुद से की हुई बातें शामिल है। संचालन प्रवीण नाहटा ने किया।