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विवादित ढाँचे के सवाल पर कल्याण सिंह ने दोहराया था…अफ़सोस न ग़म, जय श्रीराम

लंबी बीमारी के बाद शनिवार को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ( former UP CM kalyan singh ) का निधन हाे गया। 23 अगस्त को अतरौली में उनका अंतिम संस्कार होगा।

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लखनऊ

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shivmani tyagi

Aug 21, 2021

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Kalyan Singh Passed Away: PM Modi And Other Union Ministers Expressed Grief

महेंद्र प्रताप सिंह, लखनऊ. रामभक्ति का सजीव उदाहरण अब निर्जीव हो गया है। रामभक्ति के प्रति वशीभूत होकर अपना सर्वस्व निछावर कर देने वाले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ( Kalyan Singh ) ने अपने संघर्ष के बल पर यूपी में पहली बार भाजपा की सरकार बनायी और राम के नाम पर साल भर के भीतर ही अपनी सरकार का बलिदान भी कर दिया। अपने जीवन के अंतिम समय तक उन्हें राममंदिर बाबरी मस्जिद के विध्वंस का अफसोस नहीं था। पखवाड़े भर पहले उनसे मिलने गए कुछ मीडियाकर्मियों से उन्होंने दोहराया था...अफसोस न गम जयश्रीरम।

मंदिर आंदोलन के रहे नायक
राममंदिर आंदोलन ( Ram Mandir Movement ) के सबसे बड़े नायक रहे कल्याण सिंह की पहचान कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी और प्रखर वक्ता की थी। 5 जनवरी 1932 को अलीगढ़ में जन्मे कल्याण सिंह संघ की गोद में पले-बढ़े। 30 अक्टूबर 1990 को जब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे और कारसेवकों पर गोलियां चलीं तब बीजेपी ने उग्र हिंदुत्व को उफान देने के लिए कल्याण सिंह को ही आगे किया गया। अपने संघर्ष के बल पर उन्होंने 1991 में भाजपा की सरकार बनायी। मंत्रिमंडल गठन के बाद उन्होंने रामलला परिसर का पूरे मंत्रिमंडल के साथ दौरा किया और राममंदिर बनाने का संकल्प लिया। उनकी सरकार के एक साल भी नहीं गुजरे थे कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया। इसके लिए उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने मुख्यमंत्री पद का बलिदान कर दिया। 425 में से 221 सीटें लेकर आने वाले कल्याण सिंह ने खुद अपनी सरकार की कुर्बानी दे दी। केंद्र सरकार ने उनकी सरकार बर्खास्त कर दी। इसके बाद सितंबर 1997 से नवम्बर 1999 तक, वे दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

दो बार भाजपा ( BJP ) छोड़ी फिर जुड़े
1967 में अतरौली विधानसभा से पहली बार विधायक बनने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस सीट से वे आठ बार जीते। दिसंबर 1999 मे कल्याण सिंह ने कुछ मतभेदों की वजह से भाजपा छोड़ दी। साल 2004 में एक बार फिर से भाजपा के साथ राजनीति से जुड़ गए। 2004 में उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार के रूप में बुलंदशहर से विधायक के लिए चुनाव लड़ा। 2009 में एक बार उन्होंने भाजपा छोड़ दिया और खुद एटा लोकसभा चुनाव के लिए निर्दलीय खड़े हुए और जीते भी। उन्हें 26 अगस्त, 2014 को राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया और साथ ही उन्होंने 2015 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला।

तीन दिन का राजकीय शोक
23 अगस्त को गृह जनपद अलीगढ़ के अतरौली में उनका अंतिम संस्कार होगा। उप्र सरकार ने उनके निधन पर तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है।

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