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ऐतिहासिक बुद्ध सर्किट में जरूरत आधुनिक सुविधाओं की

बुद्ध सर्किट में कुशीनगर, कपिलावस्तु, कौशांबी, सनकिनसा और श्रावस्ती आते है। प्राचीन बुद्ध सर्किट घूमने के लिए करनी पड़ती है काफी मशक्कत

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लखनऊ. बुद्ध सर्किट में कुशीनगर, कपिलावस्तु, कौशांबी, सनकिनसा और श्रावस्ती आते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बने बुद्ध सर्किट की देश में अपनी पहचान है लेकिन बावजूद इसके वहां सुविधाओं की काफी कमी है। बौद्ध धर्म को कई देशों में माना जाता है इसी कारण इस सर्किट में विदेश सैलानी भी हर महीने आते हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर, परिवहन, खानपान समेत कई ऐसी बुनियादी सुविधाएं इस क्षेत्र में नाकाफी हैं। इसके अलावा इस सर्किट की ब्रांडिंग भी उस तरह से नहीं हुई जैसी होनी चाहिए थी।

इस सर्किट में ये हैं खास जगह- कुशीनगर, कपिलावस्तु, कौशांबी, सारनाथ, सनकिनसा और श्रावस्ती

कुशीनगर

कुशीनगर बौद्ध श्रद्धालुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। कुशीनगर में बुद्ध से संबंधित स्मारक तीन समूहों में हैं। मुख्य स्मारक निर्वाण मंदिर है। इसके अलावा बुद्ध को समर्पित स्तूप और मठ भी यहीं है। दक्षिण-पश्चिम में माथाकुंवर मंदिर और रामभर स्तूप हैं। कुशीनगर को भगवान बुद्ध का महानिर्वाण स्थल माना जाता है।

कुशीनगर के प्रमुख पर्यटन स्थल

निर्वाण स्तूप

ईंट से बने इस स्तूप की खोज सन 1876 में कैरिल ने की थी। यह 2.74 मीटर ऊंचा है। ताम्रपटल पर बुद्घ संबंधी अभिलेख दर्ज हैं।

निर्वाण मंदिर

यहां भगवान बुद्ध की छह मीटर से अधिक लंबी लेटी हुई प्रतिमा है। इसकी खोज 1876 में हुई। यह प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर से बनी हुई है। माना जाता है कि इसका निर्माण पांचवीं शताब्दी में हुआ था।

माथाकुंवर मंदिर

यह मंदिर बुद्घ के परिनिर्वाण स्तूप से 400 गज दूरी पर है। यहां से बुद्ध की काले पत्थर की प्रतिमा खोजी गई थी। बुद्ध ने यहां अंतिम बार अपने शिष्यों को सीख दी थी।

रामाभर स्तूप

यह एक बड़ा स्तूप है, जिसकी ऊंचाई 49 फुट है। यह माथाकुंवर मंदिर से एक किमी. की दूरी पर है। यहां बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। बौद्ध साहित्य में इस स्तूप को मुकुट-बंधन विहार कहा गया है।

चीनी मंदिर

इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण बुद्ध की सुंदर प्रतिमा है।

जापानी मंदिर

कुशीनगर के इस मंदिर में भगवान बुद्ध की अष्टधातु से बनी सुंदर प्रतिमा है। इसे जापान ने बनवाया है।


कपिलवस्तु

कपिलवस्तु में शाक्य शासकों की राजधानी हुआ करती थी। शाक्य शासक शुद्धोधन भगवान बुद्ध के पिता थे। बुद्ध ने 29 साल की उम्र में कपिलवस्तु छोड़ दिया था और 12 वर्ष की साधना के बाद ज्ञान प्राप्त कर ही लौटे। कपिलवस्तु में एक बड़ा सा स्तूप है। माना जाता है कि बुद्ध की अस्थियां रखी हुई हैं।

कपिलवस्तु के पर्यटन स्थल

स्तूप परिसर

इस पुरातात्विक महत्व के स्थल का पता 1973-74 में खुदाई के बाद चला। खुदाई से मुहरें, शिलालेख, मिट्टी के बर्तन, ढक्कन मिले। इन्हें राजा कनिष्क के शासन काल का बताया जाता है, बुद्ध के संदेशों को आगे बढ़ाने वाले और संरक्षक माने जाते थे।

महल
भगवान बुद्ध के पिता राजा शुद्दोधन के इस महल के अवशेष खुदाई में मिले हैं। इतिहासकार डॉ. केएम श्रीवास्तव बताते हैं कि बुद्ध ने संन्यास लेने से पहले अपने जीवन के 29 साल इसी महल में गुजारे थे।

सारनाथ

सारनाथ भारत के ऐतिहासिक विरासत का जीता जागता उदाहरण है। भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। बौद्ध धर्म के इतिहास में इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया जाता है।

यहां के पर्यटन स्थल

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धमेक स्तूप-

इसे धर्माराजिका स्तूप भी कहते हैं। इसका निर्माण अशोक ने करवाया था। दुर्भाग्यवश 1794 में जगत सिंह के आदमियों ने काशी का प्रसिद्ध मुहल्ला जगतगंज बनाने के लिए इसकी ईंटों को खोद डाला था।

चैखंड स्तूप

बौद्ध समुदाय के लिए चैखंडी स्तूप काफी पूजनीय है। यहां गौतम बुद्ध से जुड़ी कई निशानियां हैं। ऐसा माना जाता है कि चैखंडी स्तूप का निर्माण मूलतरू सीढ़ीदार मंदिर के रूप में किया गया था। चैखंडी स्तूप सारनाथ का अवशिष्ट स्मारक है।

संग्रहालय

सारनाथ का संग्रहालय भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण का प्राचीनतम स्‍थल संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1904 में हुई थी। यह भवन योजना में आधे मठ (संघारम) के रूप में है। इसमें ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व से 12वीं शताब्दी तक की पुरातन वस्तुओं का भंडार है।

लगंध कुटी
मूलगंध कुटी गौतम बुद्ध का मंदिर है। सातवीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसका वर्णन 200 फुट ऊंचे मूलगंध कुटी विहार के नाम से किया है। इस मंदिर पर बने हुए नक्काशीदार गोले और छोटे-छोटे स्तंभों से लगता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल में हुआ होगा।

श्रावस्ती

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोंडा-बहराइच ज़िलों की सीमा पर स्थित यह जैन और बौद्ध का तीर्थ स्थान है। गोंडा - बलरामपुर से 12 मील पश्चिम में आधुनिक 'सहेत-महेत' गाँव ही श्रावस्ती है। पहले यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव कुश ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती बौद्ध जैन दोनों का तीर्थ स्थान है, तथागत (बुद्ध) श्रावस्ती में रहे थे। यहां कई बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर है।

संकिशा

संकिशा फ़र्रुख़ाबाद के निकट स्थित आधुनिक संकिस ग्राम से समीकृत किया जाता है हांलांकि भौगोलिक रूप से यह जनपद एटा में आता है। उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है जहां बुद्ध, इन्द्र व ब्रह्मा सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से पृथ्वी पर आये थे। इस प्रकार गौतम बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।

कौशाम्बी

बौद्ध भूमि के रूप में प्रसिद्ध कौशाम्बी उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। कौशांबी, बुद्ध काल की परम प्रसिद्ध नगरी, जो वत्स देश की राजधानी थी। इसका अभिज्ञान, तहसील मंझनपुर ज़िला इलाहाबाद में प्रयाग से 24 मील पर स्थित कोसम नाम के ग्राम से किया गया है। यह नगरी यमुना नदी पर बसी हुई थी। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। यहां स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, प्रभाषगिरी और राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

इन सुविधाओं की है कमी

बुद्ध सर्किट घूमने में सबसे ज्यादा परेशानी परिवहन की है। राजधानी लखनऊ व आस-पास के जिलों से बस व ट्रेन जाती हैं लेकिन उनकी संख्या काफी कम है। कौशांबी व कुशीनगर में भी आधुनिक सुविधाओं वाले होटल या गेस्ट हाउस नहीं हैं। इसके अलावा सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम भी काफी कम हैं। इतने प्राचीन इतिहास के बावजूद इस सर्किट की ब्रांडिंग ठीक से नहीं की गई है।