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दरअसल, लोकायुक्त की ओर से अगस्त 2019 में एनएमआरसी के मुख्य वित्त अधिकारी/महाप्रबंधक (वित्त) व कार्यकारी निदेशक पूर्णदेव उपाध्याय, महाप्रबंधक (तकनीकी) मनोज बाजपेई, कनिष्क सिंह (डीजीएम/आपरेशन/रेवन्यू/एएफसी, टेली/एक्स फाइनेंस), अपर महाप्रबंधक (कार्मिक) एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी रजनीश पांडेय, सहायक कंपनी सचिव/ कंपनी सचिव निशा वधावन, वीपीएस कोमर (स्टॉफ ऑफिसर-मैनेजिंग डायरेक्टर) के खिलाफ जांच की जा रही थी। ये जांच दिल्ली हाई कोर्ट की वकील अमिता सिंह और इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील मदन राम सोनकर की शिकायत पर की जा रही थी। लगाए गए हैं ये आरोप जानकारी के अनुसार दोनों वकीलों ने लोकायुक्त उत्तर प्रदेश के पास उक्त छह अधिकारियों के कुप्रशासन, लोक वित्त का दुरुपयोग, नियुक्ति में अनियमितिताओं, अनुसूचित जाति के साथ भेदभाव, भ्रष्टाचार समेत कई गंभीर आरोप लगाकर सुबूत पेश किए थे और मामले की जांच कराने का आग्रह किया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लोकायुक्त द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के बाद योगी सरकार सीबीआई से मामले की जांच करा सकती है।
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कार्यकारी निदेशक गए छुट्टी पर एनएमआरसी के कार्यकारी निदेशक पूर्णदेव उपाध्याय ने 14 फरवरी को खुद को रिलीव कर लिया है। जानकारी के अनुसार उन्होंने 17 फरवरी से सात मार्च तक निजी कार्य से व निजी खर्चे पर अमेरिका जाने के लिए गत नौ जनवरी को वित्त विभाग में अर्जी लगाई गई थी। जिसे मंजूर करते हुए उन्हें छुट्टी दे दी गई। तबादले के बाद भी नहीं छोड़ा था पद गौरतलब है कि कार्यकारी निदेशक पूर्णदेव उपाध्याय का तबादला शासन ने 26 अगस्त, 2019 को एनएमआरसी से राजकीय आयुर्विज्ञान, ग्रेटर नोएडा कर दिया था। इस बाबत उन्हें पत्र जारी कर सूचित भी किया गया था और उन्हें एनएमआरसी के महाप्रबंधक वित्त/कार्यकारी निदेशक के पद से कार्य मुक्त कर दिया गया था। बावजूद इसके उन्होंने एनएमआरसी को नहीं छोड़ा। बताया जाता है कि जब लोकायुक्त ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी तो उन पर पद छोड़ने का दबाव बना। जिसके बाद वह खुद ही रिलीव हो गए और 22 दिन की छुट्टी पर चले गए हैं।