सीएम पद से इस्तीफे के बाद सोशल मीडिया पर येदियुरप्पा की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी से की जा रही है। ‘मैं विश्वास मत का सामना नहीं करूंगा, मैं इस्तीफा देने जा रहा हूं।’ येदियुरप्पा के ऐसा कहते ही विधानसभा में कांग्रेस और जनता दल सेकुलर के सदस्यों ने खुश होकर सदन में हंगामा करना शुरू कर दिया। इसके बाद येदियुरप्पा राज्यपाल वजूभाई वाला को इस्तीफा सौंपने के लिए निकल गए। बीजेपी के केंद्रीय नेता और कर्नाटक के प्रदेश प्रभारी जावड़ेकर भी अंत तक यही दवा करते रहे कि येदियुरप्पा बहुमत साबित कर देंगे।
आखिर क्यों इस्तीफा दिया येदियुरप्पा ने शनिवार दोपहर तक कांग्रेस और जेडीएस के जो विधायक गायब हो गए थे उनको बीजेपी विधायक सोमशेखर रेड्डी द्वारा बंधक बनाकर रखने की खबरें आ रही थीं। लेकिन बहुत ज्यादा हाथ पैर मारने के बाद भी बीजेपी बहुमत का जरूरी आंकड़ा नहीं छू पाई। दरअसल बाकी के विधायक कहां से आएंगे, इस सवाल का बीजेपी के पास कोई वाजिब जवाब नहीं था। येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का वक्त मिला था लेकिन बाद में यह मानते हुए विधायकों को अपनी तरफ करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल हो सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बीजेपी सरकार को शनिवार को ही विश्वास मत हासिल करना होगा।
दामन पर दाग नहीं चाहती थी बीजेपी बताया जा रहा है कि दिल्ली में बैठे शीर्ष बीजेपी रणनीतिकारों के लिए यह एक अप्रत्याशित स्थिति थी। 15 दिन बहुमत की जरूरी संख्या का जुगाड़ करने के लिए पर्याप्त होते लेकिन अचानक बहुमत साबित करना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होने लगी। जोड़-तोड़ की कोशिशें हुईं, विधायकों को प्रलोभन भी दिया गया और उन पर दबाव भी डाला गया। लेकिन दिल्ली में बैठा बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व चुनावी साल में पार्टी की छवि पर कोई दाग नहीं चाहता था। पार्टी जानती थी कि येदियुरप्पा के लिए जरूरी संख्या जुटा पाना नामुमकिन है। बताया जा रहा है कि इन परिस्थितियों में भाजपा कम से कम नैतिक स्तर पर खुद को बचाए रखना चाहती थी। येदियुरप्पा के पास शनिवार सुबह ही यह संदेश पहुंचा दिया गया कि ‘एक सीमा के बाद’ बहुमत जुटाने के तरीके स्वीकार्य नहीं होंगे।