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राजधानी में आप की पकड़ हुईं कमजोर
आप-कांग्रेस के बीच जारी सियासी घमासन पर सवाल उठना लाजिमी है कि, जिस आप ने कांग्रेस के खिलाफ दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा किया था, आज वहीं केजरीवाल हाथ को पकड़ने के लिए क्यों बेताब हैं। पिछले साल के अंत तक मुख्यमंत्री केजरीवाल यह दावा करते नहीं थक रहे थे कि दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों आम आदमी पार्टी की जीत होगी। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे आप कांग्रेस के साथ सियासी सौदेबाजी में जुटी है। पिछले कुछ सालों में आप की पकड़ राजधानी में ढीली पड़ी है। ऐसे में केजरीवाल हाथ को पकड़ने के लिए बेताब दिख रहे हैं। 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 6 फीसदी मत मिला था। वहीं 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी को 54 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन दो वर्षों में हुए निगम चुनाव में आप की वोट फीसदी में पचास प्रतिशत की कमी आई है। वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़कर 21 फीसद बढ़ा है। ऐसे में आप की पकड़ दिल्ली में कमजोर पड़ती दिख रही है।
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..तो अस्तित्व बचाने के लिए केजरीवाल करना चाहते हैं गठबंधन
दोनों ही पार्टियों में वोट प्रतिशत के विश्लेषण के आधार पर ही 4-3 का फॉर्मूला बना था। लेकिन इस पर दोनों दलों में सहमति नहीं बन पा रही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केजरीवाल अपना अस्तित्व बचाने के लिए गठबंधन करने की जुगाड़ में हैं। वोट प्रतिशत में आई गिरावट के बाद केजरीवाल एंड कंपनी लगातार गठबंधन के संकेत दे रही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर इसबार लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में और खराब हो सकती है। इसलिए आप अपना अस्तित्व बचाने की जुगत कर रहा है ना कि भाजपा को हराने के लिए गठबंधन करना चाह रहा है। हरियाणा में आप कांग्रेस के साथ लीडिंग पार्टी के रूप में स्थापित होना चाहती है। लेकिन कांग्रेस ऐसा दांव कभी नहीं खेलना चाहती। गठबंधन को लेकर दोनों ही पार्टियों में सहमति नहीं बन पा रही है। यही वजह है कि सात लोकसभा सीटों का चुनाव रोमांचकारी मोड़ पर है।
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गठबंधन को लेकर दो गुटों में बंटी कांग्रेस
वहीं गठबंधन नहीं होने से कांग्रेस का एक गुट गद्दगद है। कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित का मानना है कि आप से गठबंधन नहीं करने का फैसला कांग्रेस को आने वाले समय में मिलेगा। लेकिन कांग्रेस में दूसरी लॉबी की मानें तो आप से गठबंधन करने पर लोकसभा में कांग्रेस पार्टी मजबूती के साथ उभरेगी। दरअसल जब अजय माकन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो वो भी केजरीवाल के साथ चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे। अब शीला दीक्षित कांग्रेस अध्यक्ष हैं तो माकन आप के साथ चुनाव लड़ने का तैयार हैं। पार्टी के अंदर जारी इस उठापटक ने भी आप-कांग्रेस के बीच गठबंधन को पेचीदा बना दिया है।
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