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165 वर्ष बाद आ रहा महायोग

165 साल बाद अनूठा संयोग, पितृपक्ष समाप्ती के तीस दिन बाद नवरात्रि, 1885 में हुआ था ऐसा जब 13 दिन बाद हुई थी देवी की पूजा।

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 Mahayoga coming after 165 years

Mahayoga coming after 165 years

रतलाम. प्रतिपर्ष सर्वपितृ अमावस्या के अगले दिन से शारदेय नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। कभी कभी ऐसा भी हुआ कि सुबह अमावस्या व शाम को घटस्थापना हुई हो, इस बार पूरे 165 वर्ष बाद सर्वपितृअमावस्या के तीस दिन बाद नवरात्रि का पर्व आएगा। वर्ष 1885 में ऐसा हुआ था जब 13 दिन बाद नवरात्रि पर्व की तिथि आई थी।

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हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है और घट स्थापना के साथ 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद लगने जा रहा।

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चातुर्मास की अवधि भी बढ़ेगी
लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा। ज्योतिष की मानें तो 160 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं। चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।

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17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत
इस साल 17 सितंबर को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।

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आश्विन माह का अधिकमास
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिकमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास लगने के कारण इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को दीपावली भी काफी बाद में 14 नवंबर को मनाई जाएगी।

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क्या होता है अधिक मास
एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है।

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इसलिए कहते हैं मलमास
अधिकमास को कुछ स्थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

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1885 में हुआ था ऐसा
वर्ष 1885 मे 28 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या का पर्व मना था। इसके करीब 13 दिन बाद 9 अक्टूबर को घटस्थापना हुई थी। तब से अब करीब 165 वर्ष बाद यह संयोग बन रहा है।
- वीरेंद्र रावल, वरिष्ठ ज्योतिषी

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