
ममता की महत्वाकांक्षा? ...तो क्या इसलिए है बंगाल में उबाल
नई दिल्ली। देश में लोकसभा चुनाव के 6 चरण संपन्न हो चुके हैं। सातवें और अंतिम चरण के लिए 19 मई को मतदान कराया जाना है। ऐसे में देश का सियासी पारा सातवें आसमान पर है। यूं तो राजनीतिक दलों और नेताओं की बयानबाजी और मुबाहिसों की सियासी तपिश जारी है। लेकिन पश्चिम बंगाल में जिस तरह से सियासत का उबाल देखने को मिल रहा है, उससे देशवासियों का पूरा ध्यान ममता बनर्जी और भाजपा के बीच चली रही तनातनी पर आ टिका है। लोगों को इस बात की टोह है कि पश्चिम बंगाल में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा। हालांकि यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही तय होगा कि बंगाल में जादू किसका चला? लेकिन यहां एक बात तय है कि ममता बनर्जी एक मजबूत नेता के रूप में उभरीं हैं...
दरअसल, पश्चिम बंगाल पिछले कुछ समय से देश की सियासी धुरी बना हुआ है। यही वजह है कि जैसे यह आम चुनाव में ममता बनर्जी के ईद-गिर्द ही सिमट कर रहा है। चुनावी विश्लेषकों की मानें तो भाजपा से सीधी टक्कर लेकर ममता बनर्जी ने एक बड़ा चुनावी दाव खेला है। उनके अनुसार भारतीय जनता पार्टी के साथ इस टकराव के कारण ममता हाल ही के दिनों में विपक्ष की एक सशक्त नेता रूप में उभरी हैं। जिससे ममता को अचानक एक बिग गेम चेंजर के रूप में देखा जा रहा है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि ममता बनर्जी अपने आपको देश के अगले प्रधानमंत्री के लिए एक मजबूत दावेदार के रूप में पेश करती आ रही हैं, लेकिन राहुल गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती की दावेदारी के चलते वह मुखर होकर सामने नहीं आ पा रहीं थी। ऐसे में ताजे घटनाक्रम ने उनको कांग्रेस और बसपा अध्यक्ष दोनों से ही अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है।
विपक्षी पार्टियों का मिला समर्थन
यही नहीं भाजपा के खिलाफ आक्रमक हो चली ममता बनर्जी को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समेत कई बड़ी पार्टियों का समर्थन मिल रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि समर्थन देने वाली कमोबेश सभी पार्टियों के नेता अपने आप को पीएम इन वेटिंग के लिए मजबूत दोवदारी पेश करते हैं। ऐसे में उनका ममता बनर्जी के साथ खड़ा होना या यूं कहें कि उनके पीछे खड़ा होना उनके सियासी कद को कहीं अधिक उंचा बनाता था। जिसका फायदा उनको निकट भविष्य में मिल सकता है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि ममता को विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला हो। इससे पहले भी वह विपक्षी दलों को एक मंच पर इकट्ठा कर चुकीं हैं। लेकिन इस बार जबकि देश में नई सरकार का गठन होना है, ऐसे समय में ममता बनर्जी का उभार नए समीकरण गढ़ सकता है।
ऐसे मिल सकता है चुनावी लाभ
विश्लेषकों की मानें तो फिलवक्त विपक्षी पार्टियों की मंशा पीएम नरेंद्र मोदी का सत्ता से बेदखल करना है। हालांकि भावी प्रधानमंत्री बनने को लेकर अधिकांश नेताओं की आकांक्षा प्रबल है। इस बीच मोदी को सीधा टक्कर देकर ममता बनर्जी ने यह साबित कर दिया है कि वह न केवल मोदी सरकार के नाकों चने चबवा सकती हैं, बल्कि विपक्षी पार्टियों का कुशल नेतृत्व भी कर सकती हैं। यही वजह है कि चुनाव बाद सत्ता को लेकर चलने वाली उठा पटक में बाजी ममता के हाथ लग सकती है।
इन— इन मौके पर दिया सख्त संदेश—
चुनावी विश्लेषकों के अनुसार केंद्र सरकार का विरोध कर ममता बनर्जी समय-समय पर मजबूत विपक्षी नेता होना का प्रदर्शन करती रहीं हैं। चाहे फिर तीन तलाक का मुददा हो या फिर नवरात्रों में माता की मूर्ति के विसर्जन पर रोक। ममता बनर्जी ने कहीं न कहीं भाजपा सरकार पर कड़ा प्रहार किया है। यही नहीं कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के समर्थन में उतर ममता ने मोदी सरकार के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया था। हालांकि ऐसा कम ही होता है कि किसी राज्य की मुख्यमंत्री इस तरह से किसी अफसर के समर्थन में उतर केंद्र के खिलाफ खड़ी हो गई हो। लेकिन उस समय भी मोदी सरकार से भिड़कर ममता का संदेश एक सशक्त नेता के रूप में उभरना था। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा नेताओं की सभाओं को अनुमति न दिया जाना या फिर हेलिकॉप्टर को लैंडिंग की अनुमति न देना विपक्षी पार्टियों को अपने अडियल या फिर ताकत का एहसास कराना रहा।
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Updated on:
18 May 2019 09:54 am
Published on:
18 May 2019 07:09 am
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