रास्ता बनाकर निकलती थी जीप
उन दिनों चुनाव प्रचार के लिए 45 दिन का समय मिलता था। गांवों तक पहुंचने के लिए रास्ते नहीं थे। साहू ने प्रचार के लिए एक जीप रखी थी, लेकिन वह कई क्षेत्रों में पहुंच ही नहीें पाती थी। पार्टी के रणनीतिकारों ने एक रास्ता निकाला। जीप में फावड़ा और कुल्हाड़ी लेकर दो लोग बैठते थे। रास्ता नहीं होने अथवा झाडिय़ों से रास्ता बंद होने पर जीप रोकी जाती। दोनों सहयोगी उतरते और फावड़े-कुल्हाड़ी की मदद से रास्ता तैयार करते। उसके बाद जीप आगे जाती थी। ऐसा नहीं हो पाता तो वे पैदल ही उस रास्ते से गांव तक जाते थे।
फिर नहीं चला वह जादू
चंद्रिका साहू का वह जादू फिर नहीं चला। 1980 के चुनाव में उन्हें दोबारा टिकट मिला था। नाम वापसी के अंतिम दिन दूसरे नेता को बी-फॉर्म दे दिया गया। कहा गया कि यह शुक्ला बंधुओं की वजह से हुआ। बाद में साहू अर्जुन सिंह के गुट में शामिल हो गए। 1996 में पार्टी ने टिकट दिया लेकिन चंद्रिका चुनाव हार गए।