scriptयदि सही तिथि और समय में नहीं किया तर्पण तो पितरों को नहीं मिलेगी शांति, व्यर्थ हो जाएगा श्राद्ध | Pitru Paksha 2019: Know shradh vidhi mantra rule and imp of shraddha | Patrika News

यदि सही तिथि और समय में नहीं किया तर्पण तो पितरों को नहीं मिलेगी शांति, व्यर्थ हो जाएगा श्राद्ध

locationरायपुरPublished: Sep 14, 2019 06:21:15 pm

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CG Desk

Pitru Paksha 2019: पितृ पक्ष 13 से 28 सितंबर तक पितरों के मुक्ति के लिए किया जाएगा श्राद्ध .

यदि सही तिथि और समय में नहीं किया तर्पण तो पितरों को नहीं मिलेगी शांति, व्यर्थ हो जाएगा श्राद्ध

यदि सही तिथि और समय में नहीं किया तर्पण तो पितरों को नहीं मिलेगी शांति, व्यर्थ हो जाएगा श्राद्ध

रायपुर . Pitru Paksha 2019: पितरों के प्रति श्रद्धा का महापर्व पितृपक्ष की शुरुआत शनिवार से हो गई है, जो 28 सितंबर तक चलेगी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष के पुर्णिमा तिथि दिन शनिवार 14 सितंबर से पितृपक्ष की शुरूआत हो रही है। पहले दिन पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध-तर्पण किया जाएगा।

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पितरों की शांति के लिए हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होता है। माना जाता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व पितृपक्ष आज भाद्रपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ हो गया है।
आश्विन अमावस्या की प्रतिप्रदा से अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। ब्रह पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राहमणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड के रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

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16 दिनों का होता है श्राद्ध पक्ष
श्राद्ध पक्ष 16 दिनों का होता है। हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध करना बेहत जरूरी होता है। मान्यता है कि अगर श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। वहीं कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति
मिलती है।
तिथि का चयन
परिजनों की अकाल मृत्यु या किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला हो तो श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।
जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए।
अगर कोई महिला सुहागिन की मृत्यु हुई हो तो उसका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए।
सन्यासी जीवन व्यतित करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध द्वादशी को किया जाता है।
श्राद्ध के नियम
पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए। पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है।
श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाता हैं, पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है।
इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए।
इस दौरान रंगीन फूलों का इस्तेमान भी नहीं करना चाहिए।
पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज काला नमक नहीं खाया जाता है।

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