
Sharad purnima 2021
हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा के अगले दिन से कार्तिक माह शुरु हो जाता है। अश्विन मास की इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहते हैं, जो देवी लक्ष्मी को समर्पित है। कई मान्यताओं के अनुसार इस दिन को देवी मां लक्ष्मी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। शुभ पूर्णिमा का दिन दिव्य माना जाता है।
जानकारों के अनुसार शरद पूर्णिमा को धन की वर्षा करने वाली रात माना जाता है, मान्यता के अनुसार देवी मां लक्ष्मी इस रात्रि में धरती लोक पर विचरण करती हैं। कहते हैं कि समुद्र मंथन से इसी दिन मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। इसलिए लक्ष्मी जी की पूजा शरद पूर्णिमा पर रात्रि के समय करने का विधान है। ऐसे में इस साल यानि 2021 में शरद पूर्णिमा का पर्व मंगलवार, 19 अक्टूबर को पड़ रहा है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसर शरद पूर्णिमा का यह दिन अत्यंत खास होने के साथ ही इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग कई तरह के उपाय भी अपनाते हैं। चूंकि शरद पूर्णिमा का सीधा संबंध देवी मां लक्ष्मी से है, तो ऐसे में आज हम आपको माता महालक्ष्मी के गजस्वरूप की पूजा की दो कथाएं बता रहे हैं, जो धार्मिक पुस्तकों में भी मौजूद हैं।
यूं तो देवी मां लक्ष्मी को अनेक रूपों में पूजा जाता है। इन रूपों में से मां वैभव लक्ष्मी रूप की पूजा हर शुक्रवार को की जाती है, जबकि साल में एक बार ही मां महालक्ष्मी की पूजा की जाती है और शास्त्रों में तक इस पूजन का बखान विशेष रूप से किया गया है।
कथा: 1
पहली कथा के अनुसार एक बार महालक्ष्मी के त्यौहार पर गांधारी ने हस्तिनापुर में नगर की समस्त स्त्रियों को पूजा के लिए आमंत्रित किया, लेकिन कुंती से नहीं कहा।
इसके बाद गांधारी के दुर्योधन सहित सभी 100 पुत्रों ने एक हाथी का निर्माण मिट्टी से करके उसे खूब सजाकर महल में बीच स्थापित कर दिया। इसके बाद पूजा के थाल ले लेकर सभी स्त्रियां गांधारी के महल में आने लगीं। यह सब देख कुंती काफी उदास हो गईं, इस पर जब पांडवों ने इस उदासी का कारण पूछा तो कुंती ने कहा कि मैं किसकी पूजा करूं? इस पर अर्जुन ने कहा मां! तुम पूजा की तैयारी करो मैं जीवित हाथी लाता हूं।
इसके साथ ही अर्जुन इन्द्र के पास गए और अपनी माता के पूजन के लिए वहां से ऐरावत को ले आए। जिसके पश्चात कुंती ने सप्रेम पूजन किया। कुुंती के यहां तो स्वयं इंद्र के ऐरावत हाथी आने की सूचना मिलते ही सभी उनके महल की ओर दौड़ पड़े और वहां सभी ने एरावत का पूजन किया। इस व्रत पर सोलह बोल की कहानी सोलह बार कही जाती है और चावल या गेहूं अर्पित किए जाते हैं।
कथा: 02
वहीं दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मण एक गांव में रहता था। जो हर रोज निश्चित समय पर श्री विष्णु की पूजा करता था। उसकी इस भक्ति को देखकर भगवान श्री विष्णु ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से वरदान मांगने के लिए कहा।
इस पर ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की। यह सुनकर श्री विष्णु जी ने ब्राह्मण को लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग बताते हुए कहा कि इस मंदिर के सामने हर रोज एक स्त्री आकर उपले थापती है।
वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है, अत: तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। देवी लक्ष्मी जी के आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। यह कहकर श्री विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
इसके बाद वह गरीब ब्राह्मण सुबह चार बजे से ही मंदिर के सामने बैठकर देवी लक्ष्मी का इंतजार करने लगा। लक्ष्मी जी के उपले थापने आने पर ब्राह्मण ने अपने घर आने का उनसे निवेदन किया।
ब्राह्मण की बात सुनते ही लक्ष्मी जी, विष्णु जी की उस ब्रह्मण से कही सारी बात समझ गईं। और उन्होंने ब्राह्मण से महालक्ष्मी व्रत करने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि तुम्हारा मनोरथ 16 दिन तक व्रत करने के साथ ही 16वें दिन की रात को चन्द्र को अर्घ्य देने से पूरा होगा।
इस पर ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन शुरु कर दिया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा, 16वें दिन लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। माना जाता है कि उसी दिन से यह व्रत इस दिन विधि-विधान से करने पर व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
Published on:
18 Oct 2021 12:52 pm
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