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करवा चौथ पर महिलाओं की आस्था का केंद्र : 1100 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजती हैं चौथ माता, जानिए मंदिर का इतिहास और मान्यता

Karwa Chauth 2025: सवाईमाधोपुर का चौथ माता मंदिर करवा चौथ की आस्था से जुड़ा शक्तिस्थल है, जहां देवी पार्वती के रूप में चौथ माता की पूजा होती है।

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Chauth Mata Temple
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चौथ माता का मंदिर, सवाईमाधोपुर। फोटो- पत्रिका

राजस्थान न केवल अपनी रंग-बिरंगी संस्कृति और शाही इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपने प्राचीन और भव्य मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। ये मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि कला, स्थापत्य और इतिहास का अनमोल खजाना भी हैं। इनमें से एक है चौथ माता का मंदिर (Chauth Mata Temple), जो कि सवाईमाधोपुर जिले के एक छोटे से कस्बे चौथ का बरवाड़ा में स्थित है। करवा चौथ (Karwa Chauth 2025) के दिन महिला श्रद्धालु यहां व्रत खोलने और पति की लंबी आयु की कामना करने के लिए आती हैं।

1100 फीट ऊंची पहाड़ी पर मंदिर

चौथ माता हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी मानी जाती हैं, जो स्वयं माता पार्वती का ही एक रूप हैं। यह भव्य मंदिर शहर के शक्तिगिरी पर्वत पर बना हुआ है। यहां माता के दर्शन के लिए भक्तों को 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, क्योंकि यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला की चोटी पर करीब 1100 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है। इस मंदिर में भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी हैं। सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना माता का मंदिर परंपरागत राजपूताना शैली को दर्शाता है।

1451 में हुई मंदिर की स्थापना

इस मंदिर की स्थापना 1451 में शासक भीम सिंह ने की थी। 1463 में मंदिर मार्ग पर बिजल की छतरी और तालाब का निर्माण कराया गया। स्थानीय मान्यता के अनुसार, करवा चौथ का व्रत चौथ माता से जुड़ा है। इस अवसर पर महिलाएं माता की पूजा-अर्चना करती हैं और अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। भक्तों का मानना है कि चौथ माता के दर्शन मात्र से जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कई कथाएं प्रचलित

एक प्रचलित कथा के अनुसार राजा भीम सिंह चौहान को स्वप्न में चौथ माता ने दर्शन दिए। माता ने राजा को आदेश दिया कि वह इस पहाड़ी पर उनका मंदिर बनवाएं। इसके बाद राजा ने पहाड़ी पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और तभी से यह स्थान चौथ माता धाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

एक अन्य लोककथा के अनुसार चौथ माता की पवित्र मूर्ति पंचल देश (आज का उत्तर प्रदेश) से लाई गई थी। जब राजा भीम सिंह ने इस मूर्ति को यहां स्थापित किया। कुछ स्थानीय लोग यह भी बताते हैं कि पहले यह पहाड़ी सुनसान और भयावह थी, लेकिन जैसे ही माता की मूर्ति यहां स्थापित हुई, एक अलौकिक प्रकाश ने पूरे क्षेत्र को आलोकित कर दिया। उस दिन से यह पहाड़ी एक पवित्र तीर्थस्थल बन गई।

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