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राजस्थान के रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से चौंकाने वाली खबर, एक साल में 16 बाघ-बाघिन लापता

Rajasthan News : बाघों की सबसे सुरक्षित सैरगाह माने जाने वाले रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से चौंकाने वाली खबर है। एक साल में 26 बाघ-बाघिन लापता हो गए। सालाना करोड़ों खर्च करने के बावजूद जंगल की सुरक्षा भगवान भरोसे है। लापता बाघ-बाघिन कहां है किसी को कोई पता नहीं।

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Rajasthan News : सवाईमाधोपुर. देशभर में बाघों की सबसे सुरक्षित सैरगाह माने जाने वाले रणथम्भौर टाइगर रिजर्व पर संकट का काला साया मंडराने लगा है। सालाना करोड़ों खर्च करने के बावजूद जंगल की सुरक्षा भगवान भरोसे है। जिम्मेदारों की सुस्ती बाघों पर भारी पड़ रही है। यही वजह है कि बीते एक साल में 26 बाघ-बाघिन लापता हो गए। आनन-फानन में टाइगर रिजर्व प्रशासन 10 बाघों को ट्रेस करने का दावा कर रहा है, लेकिन 16 बाघों का अब तक अता-पता नहीं है। बाघ टी-90 की फीमेल शावक, बाघिन टी-92, बाघ टी-20, बाघ टी-70, 71, 76 और बाघ भैरूपुरा सहित 16 बाघ अब भी लापता हैं। रणथम्भौर टाइगर रिजर्व में साल भर पहले 73 बाघ-बाघिन थे, लेकिन कमजोर मॉनिटरिंग और एंटी पोचिंग सिस्टम फेल होने से बाघ कम होते गए। वन विभाग के मुताबिक पिछली वन्य जीण गणना तक यहां 67 बाघ-बाघिन थे।

एसटी-13 का आज तक सुराग नहीं

सरिस्का में एसटी-13 बाघ करीब दो साल से गायब है, जिसका आज तक पता नहीं चला है। इसके लिए प्रशासन मॉनिटरिंग कर रहा है, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। अभी सरिस्का में 42 बाघ हैं।

एक साल में 26 गायब, 10 ही हो पाए ट्रेस

रणथम्भौर पार्क में वर्तमान में क्षमता से अधिक बाघ-बाघिन हैं, जिनके लिए नए ठिकानों की व्यवस्था करना जरूरी है। यही कारण है कि बाघ-बाघिन टेरेटरी की तलाश में करौली-धौलपुर और मध्यप्रदेश से सटे जंगलों की ओर चले जाते हैं। जहां तक बाघों के मिसिंग की बात है तो कुछ टाइगर उम्रदराज भी हो सकते हैं। ऐसे में उनके मिलने की संभावना कम होती है।
मनोज पाराशर, पूर्व सीसीएफ, रणथम्भौर

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पांच सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी

बाघों के लापता होने के मामले में पांच सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। यह कमेटी रणथम्भौर भी गई थी। वन अधिकारियों और सीसीएफ से इस संबंध में सवाल किए थे। साथ ही वन चौकियों और नाकों का निरीक्षण किया था। अब भी 15 से अधिक बाघ-बाघिन लापता है। इस संबंध में हमने उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेज दी है।
टी. मोहनराज, जांच कमेटी सदस्य

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कैमरे बंद, वॉच टावर बने शोपीस

रणथम्भौर अभयारण्य प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व है, जहां शिकार (पोचिंग) से वन्य जीवों की रक्षा करने के लिए 60 करोड़ रुपए का ई-सर्विलांस सिस्टम लगा है, लेकिन टेंडर नवीनीकरण नहीं होने से ज्यादातर कैमरे बंद हैं। जंगल में अवैध गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए बनाए टावर भी निष्क्रिय हो चुके हैं। मॉनिटरिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। खुद वन विभाग के मुताबिक 7 साल में 90 से ज्यादा वन्य जीवों का शिकार हुआ। इनमें बाघ, सांभर, हिरण सहित अन्य जानवर शामिल हैं। बीते चार साल में 15 शिकारी पकड़े भी गए, लेकिन ज्यादातर को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया।

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ट्रेसिंग के प्रयास अभी जारी

जंगल में जो बाघ-बाघिन लापता बताए जा रहे है उनमें काफी कैमरा ट्रैप में ट्रेस हो चुके है। जो नहीं मिले है उन्हें ट्रेस किया जा रहा है लेकिन यह भी अंदेशा है कि उनमें ज्यादातर उम्रदराज थे जिनकी संभावत: प्राकृतिक मौत भी हो सकती है। यही वजह है कि वो वजह से ट्रैप नहीं हो पाए रहे हैं। हालांकि उसकी ट्रेसिंग के प्रयास अभी भी जारी है।
अरिजित बनर्जी, हेड ऑफ फॉरेस्ट (हॉफ) वन विभाग, राजस्थान

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