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वृद्धा की संघर्ष भरी कहानी, 62 की उम्र में दिहाड़ी कर पोती को अफसर बनाने की खातिर पढ़ा रही ‘मीरा’

locationसिरोहीPublished: Jan 20, 2018 05:20:05 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

यह संघर्ष भरी सच्ची कहानी है सरूपगंज निवासी मारीदेवी (62) की। वह इस उम्र में दिहाड़ी मजदूरी कर पोती को पाल रही है।

Inspirational Story

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स्वागत दवे/सरूपगंज। सड़क हादसे में छोटे बेटे की मौत और उससे पहले सिलिकोसिस सरीखी जानलेवा बीमारी से पति और बड़े बेटे को खोने के बावजूद साहसी वृद्धा ने हिम्मत नहीं हारी। दूध पीती पोती को अकेला छोड़ कर पिता—दादा संसार से विदा हो गए, मां ने अन्यत्र घर बसा लिया। उसने ठान लिया कि अब वह पोती का न सिर्फ सहारा बनेगी बल्कि पढ़ा—लिखाकर अफसर तक बनाएगी। यह संघर्ष भरी सच्ची कहानी है सरूपगंज निवासी मारीदेवी (62) की। वह इस उम्र में दिहाड़ी मजदूरी कर पोती को पाल रही है। आज उसकी पोती कुसुम आठ साल की हो गई है और तीसरी में पढ़ रही है।
करीब तीस साल पहले मीरादेवी के हंसते खेलते परिवार को ग्रहण लग गया, जब पत्थर तराशने का कार्य करने वाले पति रताराम को सिलिकोसिस सरीखी लाइलाज बीमारी ने जकड़ लिया। ऐसे में पति के उपचार समेत परिवार को पालने के लिए बड़े पुत्र प्रकाशकुमार (नवीं का छात्र) की पढ़ाई छुड़वाकर पत्थर तराशने में लगाना पड़ा लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। कुछ ही महीनों में प्रकाश भी सिलिकोसिस की गिरफ्त में आ गया और देखते ही देखते उसने भी खाट पकड़ ली।
अचानक रताराम की 26 जनवरी 2011 को मौत हो गई और कुछ माह बाद ही 27 नवम्बर 2011 को प्रकाश का भी सिलिकोसिस से संघर्ष करते दम टूट गया। इस बीच 2013 में सगी मां ने भी दुधमुंही बच्ची को दादी भरोसे अकेला छोड़कर अन्य जगह घर बसा लिया। ऐसे में घर की जिम्मेदारी छोटे बेटे रूपाराम के कंधे पर आ गई। इधर—उधर हाथ पांव मारने के बाद भी उसे कोई काम नहीं मिला तो उसने भी पत्थर तराशना शुरू कर दिया। जैसे—तैसे परिवार का पालन हो ही रहा था। कि उसे भी सिलकोसिस ने घेर लिया। उसकी दवाइयां चल रही थीं कि अचानक 23 मई 2017 को अज्ञात वाहन की चपेट में आने से उसकी भी मौत हो गई।
अधिकारियों ने भी नहीं सुनी पुकार
वार्ड सदस्य आजाद मेघवाल ने बताया कि मारीदेवी की स्थिति को लेकर 24 दिसम्बर को भवरी ग्राम पंचायत में जनसुनवाई के दौरान विकास अधिकारी राजेन्द्रकुमार के समक्ष पेश हुए, मगर उन्होंने उसे नजर अंदाज कर दिया और पीड़िता आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही है।
इसके बाद परिवार की जिम्मेदारी दादी मीरा पर आ गई। अब वह खुद दिहाड़ी पर मजदूरी कर पोती को पढ़ा रही है। इस काम में उसकी बेटी कमला भी मदद कर रही है। जैसा कि मीरा बताती है कि जब तक शरीर में जान है तब तक पोती को पढ़ाती रहूंगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी पोती बड़ी होकर अफसर बनेगी और गांव का नाम रोशन करेगी।
बीपीएल से भी वंचित
मीरादेवी ने पति व पुत्र की मौत के बाद बीपीएल परिवार के नमा जुड़वाने के लिए छह साल से अधिकारियों के कार्यालय के कई बार आवेदन कर चुके हैं लेकिन आज दिन तक लाभ से वंचित है। हालांकि ग्राम पंचायत क्षेत्र में हैं, जाक काफी सक्षम है।
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