
10 World Famous Picnic Spots of MP : मानसूनी सीजन में अगर आप कहीं आउटिंग का प्लान ( Outing Plan ) बना रहे हैं तो ये खबर आपके लिए है। क्योंकि, हम आपको मध्य प्रदेश के ऐसे वर्ल्ड फेमस पिकनिक स्पॉट्स ( world famous picnic spot ) के बार में बता रहे हैं, जिन्हें मानसूनी सीजन ( Monsoon Season ) में मध्य प्रदेश की जन्नत कहा जाता है। अगर आप भी यहां घूमने का मन बना रहे हैं तो ये पिकनिक स्पॉट्स आपकी आउटिंग को रोमांचित कर देंगे और अगर अबतक आपने कहीं घूमने का प्लान नहीं बनाया है तब भी इन पिकनिक स्पॉट्स ( MP picnic spot ) के बारे में जरूर जान लीजिए। यकीन जानिए इन स्पॉट्स के बारे में जानकर आप भी इनमें से किसी न किसी स्पॉट ( MP Tourism ) पर घूमने जाने का मन जरूर बना लेंगे।
बारिश के दिनों में अकसर लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होती है कि आखिर घूमने जाएं कहां ? क्योंकि अधिकतर इलाकों में बारिश के दिनों में कीचड़-गंदगी हो जाती है, जो घूमने फिरने के मजे को किरकिरा कर देती है। लेकिन, फिर भी इस सीजन के सुहाने मौसम का आनंद लेने बारिश की परवाह किए बिना, बल्कि इसी के दौरान घूमने की इच्छा रखते हैं। इसलिए अगर आप भी परिवार या दोस्तों के साथ कहीं घूमने का मन बना रहे हैं तो मध्य प्रदेश के ये 10 खूबसूरत स्पॉट्स आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
स्वच्छता के क्षेत्र में देश का नंबर-1 शहर इंदौर से सटे धार जिले में विंध्याचल की खूबसूरत पर्वतमालाओं के बीच 2 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा मांडू मालवा के परमारों द्वारा शासित क्षेत्र रहा है। यहां पर राज महाराजों के महल, बावड़ी, तालाब आदि की अद्भुत कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। यहां प्राकृतिक सुंदरता भी भरपूर है। मानसूनी सीजन में ये इलाका घूमने के लिहाज से बेहद शानदार है। क्योंकि, मानसूनी सीजन में औसत बारिश ही होती है। ऐसे में यहां का सुहाना मौसम आपके ट्रिप को और भी शानदार बना देता है। बारिश के दिनों में यहां का अधिकतम तापमान तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक ही जाता है। इसका लाभ उन्हें भी मिलता है जो कभी-कभार ही घूमने निकलते हैं। बारिश के बावजूद वो यहां घूमने में असहज मेहसूस नहीं करते। बारिश के कारण यहां ताज़गी और हरियाली आपको खुशगवर अहास कराती है।
मांडू शहर मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिये जुड़ा हुआ है। ऐसे में जिस सड़क मार्ग के जरिए यहां किसी भी दिशा से पहुंचना बेहद आसान है। मांडू इंदौर के करीब है, जिसके चलते भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से यहां का हवाई संपर्क है। आइये जाने कि आप हवाई, रेल या सड़क मार्ग से किस तरह मांडू पहुंच सकते हैं।
मांडू पहुंचने के लिए सबसे निकटतम इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा है जो मांडू से करीब 97 कि.मी दूर है। नियमित उड़ानें इंदौर को दिल्ली, मुंबई, ग्वालियर और भोपाल से जोड़ती हैं।
दिल्ली-मुंबई मुख्य लाइन पर रतलाम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन (124 किमी) से होकर गुजरती हैं। रतलाम एक प्रमुख स्टेशन है और लगभग सभी ट्रेनें इस स्टेशन पर रुकती हैं।
मांडू अन्य शहरों से अच्छे सड़क नेटवर्क द्वारा जुड़ा हुआ है। नियमित बस सेवाएं मांडू को धार (35 कि.मी), इंदौर, रतलाम, उज्जैन (154 कि.मी) और भोपाल (इंदौर के माध्यम से 285 कि.मी) से जोड़ती हैं।
मध्य प्रदेश में एक ऐसी जगह, जिसके आगे विदेश के नजारे भी फीके हैं। हम बात कर रहे हैं, जबलपुर जिले के भेड़ाघाट की, जहां की सुंदर संगमरमर की चट्टानें और आसपास हरे-भरे पेड़ इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। ये जगह इतनी खास है कि इसके शॉट्स आपने कई बार फिल्मों में देखे होंगे। बोटींग का मजा भी यहां काफी अद्भुत है। इस घाट की चट्टानों को भी लोग जादुई मानते हैं।
भेड़ाघाट पर मौजूद पत्थर समय के साथ चट्टानों में बदल गए। 100 फीट ऊंची चट्टाने इस घाट को खास बनाती हैं। बहते पानी ने इन मार्बल रॉक्स को 5 किलोमीटर की घाटी में बदल दिया है। इन मार्बल पर मैग्नैशियम बहुत ज्यादा है, इसलिए ये पत्थर नर्म है। घाट का जलप्रपात भी खासा फेमस है। इसका नाम धुआंधार है। यहां पानी इतनी तेजी से गिरता है कि दूर से इसका नजारा धुएं जैसा दिखाई देता है। यहां से गिरने वाले झरने की आवाज आप कई किलोमीटर दूर से सुन सकते हैं।
कई फीट ऊंची इन चट्टानों को लोग जादुई बताते हैं। नदी जैसे-जैसे बहती है, चट्टान आकार बदल देती है। यह चट्टाने बाहर से दिखने में काली और अंदर से सफेद हैं। रात के समय यहां का नजारा दोगुना खूबसूरत हो जाता है। चांद की रोशनी में संगमरमर बहुत खूबसूरत लगता है।
भेड़ाघाट हमेशा लाइमलाइट में बना रहता है। इसकी वजह ये है कि यहां के अद्भुत नजारों के चलते इस इलाके में फिल्मों की शूटिंग भी होती रहती है। हालही में रिलीज हुई शाहरुख खान और तापसी पन्नू की फिल्म 'डंकी' में इस घाट को फिल्माया गया है। इसके अलावा रितिक रोशन की फिल्म मोहन जोदड़ो , प्राण जाए पर वचन ना जाए, अशोका, जिस देश में गंगा बहती है और बॉबी जैसी फिल्में यहीं शूट हुई हैं।
फिलहाल, क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश के चलते भेड़ाघाट का जलस्तर तेजी से बढ़ा है, जिसके चलते धुआंधार जलप्रपात पूरी तरह गायब हो गया है। यहां चारों तरफ पत्थरों से पानी बह रहा है। यह विहंगम दृश्य देखने में जितना अद्भुत और सुंदर है, उतना ही खतरनाक भी है। बता दें कि जबलपुर संभाग के जिलों में इस साल हो रही भारी बारिश से नर्मदा लगातार उफान पर चल रही है। हालांकि, अगर मौजूदा समय में हो रही भारी बारिश के दिनों को छोड़ दें तो ये प्कनिक स्पॉट आउटिंग का बढ़िया ऑप्शन है।
भेड़ाघाट पहुंचने के लिए आपको जबलपुर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर उतरना होगा। जबलपुर से यह जगह लगभग 25 किलोमीटर दूर है। शहर का अपना एयरपोर्ट भी है। भेड़ाघाट तक जाने के लिए आपके पास रोपवे का ऑप्शन है। घाट में बोटींग करने पर नजारों को और करीब से देखा जा सकता है, जिसकी टिकट 200 रुपए है।
एमपी के नर्मदापुरम जिले में स्थित पचमढ़ी मध्यप्रदेश का एकमात्र हिल स्टेशन है जिसे मध्यप्रदेश का श्रीनगर और स्विट्जरलैंड तो कहा जाता ही है, कई लोग प्यार से इसे सतपुड़ा की रानी भी कहते हैं। देश के रोमांटिक स्थलों में ये स्पॉट टॉप पर है। ऊंचे ऊंचे पहाड़, झील, झरने, गुफाएं, जंगल सभी कुछ हैं यहां पर। राजधानी भोपाल से भी यहां पहुंचना बेहद सस्ता और आसान है। पचमढ़ी के पास ही अमरकंटक वह स्थान है जहां से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है। हालांकि, मानसून में घूमने यहां पर जा रहे हैं तो अपनी रिस्क पर ही जाएं क्योंकि यहां पर पहाड़ी पर ले जानी वाली जीप बंद हो जाती है। आप कुछ स्थानों की यात्रा बाइक से और कुछ की पैदल कर सकते हैं।
विशेष रूप से पचमढ़ी उन लोगों के लिए आर्दश स्थली है, जिन्हें बहते झरने, प्राचीन तालाब और हरे-भरे जंगलों के बीच समय बिताना पसंद है। पचमढ़ी की समुद्र तल से उंचाई लगभग 1,607 मीटर है, इसलिए मानसून के सीजन में यहां के दृश्य मनमोहक और खूबसूरती लिए जाना जाता है। पचमढ़ी आकर हर कोई सब कुछ भूलकर कुछ पल के लिए प्रकृति में खो जाता है।
पचमढ़ी आने वाले पर्यटकों के लिए इतिहास और प्रकृति का अद्भुत खजाना छिपा है। यहां के आकर्षक पर्यटक स्थलों में 'पांडव गुफाएं' भी, जिनके बारे में मान्यता है कि इनका निर्माण पांडवों ने करवाया था। साथ ही अपने वनवास के दौरान पांडवों ने यहां कुछ समय गुजारा भी था। इसके अलावा सन सेट प्वाइंट, धूपगढ़ जहां पर बैठकर सन सेट के नजारे का मजा ले सकते हैं। क्योंकि धूपगढ़ सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी पर है, जिसकी उंचाई समुद्र तल से 1350 मीटर है। धूपगढ़ की खासियत ये है कि यहां प्रकृति के सभी रंग, जिसमें जल, जंगल, जमीन के साथ बादलों के मिलन देखने को मिलता है। यहां कई मनमोहक गुफाएं भी हैं।
यहां बारिश के दिनों की सबसे खास बात ये है कि यहां पहाड़ों से बहने वाले झरनों से आती कल-कल आवाज शांत पड़े जंगल की खामोशी को चीरते हुए एक अद्भुत सी ध्वनि बनाती है। पचमढ़ी को झरनों का हिल स्टेशन कहना कहीं से गलत नहीं है यहां के कुछ खूबसूरत झरनों में बी फॉल्स, अप्सरा विहार फॉल्स, सिल्वर फॉल्स। इन झरनों में सिल्वर फॉल्स को सबसे बड़ा झरना कहा जाता है जो लगभग 350 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है। इस झरने को सूरज की रोशनी में देखने पर ये एक चांदी की पट्टी की तरह दिखाई देता है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाता है। वहीं अप्सरा विहार फॉल्स, पचमढ़ी की डाउनहिल ट्रेल पर मौजूद है।
पचमढ़ी घूमने के लिए सबसे खास मौसम मानसून यानी जुलाई के आखिरी सप्ताह से सितंबर और अक्चूबर शुरु तक रहता है। इस मौसम में यहां की खूबसूरती अपने चरम पर होती है। पहाड़ी इलाका होने की वजह से यूं तो हर मौसम में पचमढ़ी का अपना ही रंग रहता है, लेकिन इस क्षेत्र की सुंदरता के अद्भुत नजारे मॉनसूनी सीन में ही सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं। वैसे गर्मियों के दिनों में भी पचमढ़ी घूमना बढ़िया विकल्प है।
पचमढ़ी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 195 किलोमीटर की दूरी पर है जो भारत के लगभग हर शहर से सीधे ट्रेन-हवाई या मार्ग से जुड़ा शहर है। भोपाल से पचमढ़ी के लिए सरकारी, निजी बसों ये ट्रेवल्स के वाहन उपलब्ध हैं। भोपाल से पचमढञी तक शानदार सड़कें होने के कारण आप खुद की कार से भी यहां आसानी से आ सकते हैं।
पचमढ़ी पहुंचने के लिए सबसे निकट रेलवे स्टेशन पिपरिया है, जिसकी दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। पिपरिया रेलवे स्टेशन नागपुर, पुणे, कोलकाता, आगरा, दिल्ली, भोपाल से सीधे जुड़ा हुआ है। पिपरिया से आसानी से टैक्सी या बस में सवार होकर पचमढ़ी पहुंच सकते हैं।
पचमढ़ी के पास सबसे नजदीक हवाई अड्डा भोपाल में है जो देश के सभी बड़े शहरों से हवाई मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है। भोपाल से आसानी से टैक्सी से पचमढ़ी पहुंचा जा सकता है।
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बुंदेलखंड का ऐतिहासिक शहर और विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो अपने मंदिरों के लिए प्रसिद्ध। खजुराहो शिल्प के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय नृत्य समारोह के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। इन विश्व प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण चंदेल राजाओं ने सन् 950-1050 के बीच करवाया था। पहले इसका नाम 'खर्जुरवाहक' था। 1986 में यूनेस्को द्वारा इन मंदिरों को 'विश्व धरोहर स्थल' घोषित कर रखा है। अगर आप मानसून में यहां पर घूमने का प्लान बना रहे हैं तो ये एक बढ़िया ऑप्शन है। क्योंकि मानसूनी सीजन में यहां की अद्भुत छटाएं इस क्षेत्र की संदरता में चार चांद लगा देती है।
यह मध्य प्रदेश की एक बहुत ही खूबसूरत जगह है जो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में भी शामिल है। यहां कई सारे प्राचीन मंदिर मौजूद है जो यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल है। यहां पर आपको हर तरफ हरियाली और पानी दिखाई देगा और यहां की प्राकृतिक सुंदरता आपका दिल मोह लेगी।
खजुराहो में क्या-क्या देखें खजुराहो एक ऐसा शहर है, जिसके हर कोने में ऐतिहासिकता की झलक मिलती है। अगर आप खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में घूमना चाहते हैं तो घंटाई, आदिनाथ, मातंगेश्वर, वामन, कंद्रिय महादेव, ब्रह्मा, जगदंबी आदि मंदिरों में जा सकते हैं। इसके अलावा शाम को इन्हीं मंदिरों में लाइट एंड साउंड शो का भी आयोजन होता है, जिसे मिस करना बहुत बड़ी गलती होगी। खुजराहो में मौजूद राज्य संग्रहालय में चंदेल वंश के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल कर सकते हैं।
इसके अलावा यहां की आदिवासी संस्कृतियों के बारे में भी यहां आपको विस्तृत जानकारी मिलेगी। खजुराहो से मात्र 80 किमी दूर अजयगढ़ किला है, जिसपर चंदेल राजाओं का अधिकार रहा है। आप चाहे तो 688 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद इस किले पर भी घूम आ सकते हैं। खजुराहो में ही लक्ष्मण मंदिर है, जिसका निर्माण हजारों साल पहले किया गया था। इस मंदिर की कलात्मकता भी देखने लायक है।
खजुराहो एयरपोर्ट के लिए आपको दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, वाराणसी आदि से सीधी उड़ान मिल जाएंगी। खजुराहो शहर से एयरपोर्ट मात्र 6 कि.मी की दूरी पर है। वहीं, दिल्ली से खजुराहो के लिए सीधी ट्रेन भी मिल जाएगी। इसके अलावा महोबा रेलवे स्टेशन भी खजुराहो से लगभग 63 किमी की दूरी पर है। दिल्ली से कई निजी कंपनियों की बसें भी चलती हैं, जिनसे आप आसानी से खजुराहो पहुंच सकते हैं।
इंदौर के पास करीब 90 किलोमीटर दूर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। मानसून में यहां की यात्रा के दौरान नदी और घाटों के नजारे कई गुना ज्यादा सुंदर दिखाई देते हैं। यात्रा के दौरान ऐतिहासिक घाटों, प्राकृतिक खूबसूरती को संजोए पर्वत, आश्रमों, डेम, बोटिंग आदि का लुत्फ भी लिया जा सकता है। ओंकारेश्वर के पास ही महारानी अहिल्याबाई की नगरी महेश्वर को देखना न भूलें। मंडलेश्वर भी पास में स्थित है। मानसूनी सीजन में यहां की खूबसूरती देखने देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।
ओंकारेश्वर देश का एक ऐसा शहर है, जो अपनी सुंदरता और पवित्र स्थलों के लिए विदेशों तक में खासा प्रसिद्ध है। नर्मदा और कावेरी नदी के संगम तट पर स्थित ये शहर मानसून में खूबसूरती का खजाना बिखेरता है।
ओंकारेश्वर में ऐसी कई बेहतरीन और शानदार जगहें मौजूद हैं, जहां मानसूनी सीजन में घूमने का एक अलग ही मजा होता है। यहां स्थित कुछ जगहों की खूबसूरती इस कदर प्रचलित है कि यहां हर मौसम में पर्यटक घूमने के लिए पहुंचते हैं। इनमें सबसे प्रमुख श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो भारत के 12 पूज्य ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये नर्मदा और कावेरी नदियों के मिलन बिंदु पर स्थित है। इसके अलावा शहर में कई घाट भी मौजूद हैं, लेकिन इसमें सबसे फेमस घाट का नाम अहिल्या घाट है। इस घाट के किनारे से ओंकारेश्वर का खूबसूरत और अद्भुत नजारा दिखाई देता है। वहीं, नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध पर भी मानसूनी सीजन में बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं। बांध के आसपास मौजूद हरियाली सैलानियों को खासा आकर्षित करती है।
मध्य प्रदेश के इंदौर और उज्जैन समेत अन्य राज्यों तक से ओंकारेश्वर पहुंचना बहुत आसान है। इसके लिए आप हवाई मार्ग, ट्रेन या सड़क मार्ग से इस ऐतिहासिक शहर तक पहुंच सकते हैं।
अगर आप हवाई मार्ग से ओंकारेश्वर जाना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले आपको इंदौर हवाई अड्डे तक आने होगा। क्योंकि ये शहर ओंकारेश्वर से सबसे नजदीक है। हवाई अड्डे में टैक्सी, कैब या बस लेकर आप आसानी से ओंकारेश्वर पहुंच सकते हैं। इंदौर हवाई अड्डे से ओंकारेश्वर महज 74 कि.मी की दूरी पर है। यहां से अधिकतम डेढ़ घंटे में आप ओंकारेश्वर पहुंच सकते हैं।
ट्रेन के जरिए ओंकारेश्वर पहुंचने के लिए इंदौर या उज्जैन तक आ सकते हैं। यहां से लोकल ट्रे पकड़कर आप सीधे ओंकारेश्वर रेलवे स्टेशन पहुंच सकते हैं।
ओंकारेश्वर मध्य के कई बड़े शहरों से जुड़ा है। ऐसे में आप इंदौर के साथ साथ उज्जैन के रास्ते भी बाई रोड ओंकारेश्वर पहुंच सकते हैं।
एशिया के सबसे सुरम्य और खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वों में से एक है कान्हा राष्ट्रीय उद्यान। यहां पर हजारों पशु और पक्षियों का झुंड है। मंडला और जबलपुर शहर से सड़क मार्ग द्वारा 'कान्हा राष्ट्रीय उद्यान' तक पहुंचा जा सकता है। बारिश के मौसम में भी यहां पर घूमने की सरकार ने व्यवस्था की है। खटिया गेट से बफर जोन घूमने के लिए पर्यटकों को एंट्री टिकिट मिलेगी। यह जोन लगभग 35 वर्ग किमी का है और यहां अधिकांश वन्यप्राणी देखने को मिल जाते हैं।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, बांस और साल के जंगलों, झीलों और नदियों तथा फैले हुए घास के मैदानों के साथ, देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। इसका मुख्य क्षेत्र लगभग 950 वर्ग किलोमीटर है और आसपास का क्षेत्र लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें कई अन्य प्रजातियों के अलावा बाघ, बारहसिंगा और जंगली सूअर जैसे जानवर देखने को मिलते हैं। वैसे तो मानसून के दिनों में 1 जुलाई से 30 सिंतबर तक इसका मुख्य क्षेत्र पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन, बारिश के बीच आप इसके बफर जोन का आनंद ले सकते हैं। वैसे कान्हा घूमने का सबसे आदर्श समय नवंबर और दिसंबर के बीच या मार्च और अप्रैल के बीच माना जाता है। ऐसे में अगर आप मानसून में यहां घूमने का मन बना रहे हैं तो पहले मौजूदा स्टेटस चैक कर लें।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के मंडला और बालाघाट जिलों में स्थित है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का भारत के अधिकांश भागों से हवाई, सड़क और रेल संपर्क बहुत बढ़िया है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के दो मुख्य स्थान हैं, खटिया और मुक्की प्रवेश द्वार। खटिया प्रवेश द्वार मंडला जिले में और मुक्की मध्य प्रदेश राज्य के बालाघाट जिले में पड़ता है। खटिया प्रवेश द्वार से कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के किसली, कान्हा और सरही क्षेत्रों का भ्रमण किया जा सकता है और मुक्की प्रवेश द्वार राष्ट्रीय उद्यान की मुक्की श्रृंखला को कवर करता है। खटिया प्रवेश द्वार जबलपुर और नागपुर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और मुक्की प्रवेश द्वार जबलपुर, रायपुर और नागपुर से जुड़ा हुआ है।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के प्रमुख स्थलों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। कुछ नजदीकी स्थलों से कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की दूरी और अनुमानित ड्राइविंग का समय इस तरह है, जैसे- मध्य प्रदेश के जबलपुर से इसकी दूरी 160 किलोमीटर यानी लगभग 3 घंटे में यहां पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, पड़ोसी राज्यों में महाराष्ट्र के नागपुर और छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर और भिलाई से भी ऐप यहां बाईरोड पहुंच सकते हैं।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन गोंदिया और जबलपुर है। गोंदिया रेलवे स्टेशन कान्हा (खटिया प्रवेश द्वार) से 145 किमी यानी करीब ढाई घंटे की ड्राइव पर है। जबकि जबलपुर रेलवे स्टेशन से कान्हा (मुक्की प्रवेश द्वार) से 160 किमी की दूरी पर है। यानी यहां से 3 घंटों में आप कान्हा राष्ट्रीय उद्यान पहुंच सकते हैं।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के लिए निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर 160 किमी, रायपुर 250 किमी और नागपुर 300 किमी दूर है। जहां से बस या कार की सहायता से आप यहां पहुंच सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल और रामराजा की नगरी ओरछा में प्रतिदिन बड़ी संख्या में भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानी भी पहुंचते हैं। यहां पर ओरछा के राजाओं द्वारा बनाए गए भव्य मंदिर और स्मारकों को देखना अद्भुत है। बेतवा नदी के तट पर बसे ऐतिहासिक शहर ओरछा की स्थापना 16 वीं शताब्दी में बुंदेला राजपूत प्रमुख रुद्र प्रताप ने की थी। मानसूनी सीजन में यहां के ऐतिहासिक स्थलों का नजारा और भी अद्भुत और दर्शनीय हो जाता है। यही कारण है कि यहां इन दिनों में भी हजारों की संख्या में पर्यटक घूमने आते हैं।
भारत के मध्य प्रदेश राज्य के निवाड़ी ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। इसकी स्थापना रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला द्वारा इसी नाम के राज्य की राजधानी के रूप में सन् 1501 के बाद किसी समय हुई थी। ओरछा बुंदेलखंड क्षेत्र में बेतवा नदी के किनारे बसा हुआ है। यह टीकमगढ़ से 80 किमी और उत्तर प्रदेश राज्य में झांसी से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
ऐतिहासिक शहर ओरछा मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है। लेकिन ट्रेन यात्रा के हिसाब से यहां पहुंचने का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन झांसी है, जो करीब 16 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा ग्वालियर से ये हवाई मार्ग से जुड़ा है, जबकि सड़क मार्ग से यहां चारों और से आ सकते हैं।
वैसे तो ये ऐतिहासिक शहर ओरछा मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है। लेकिन ट्रेन यात्रा के हिसाब से यहां पहुंचने का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन झांसी है, जो करीब 16 किलोमीटर दूर है। झांसी रेलवे जंक्शन होने के कारण भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यात्री झांसी से ओरछा पहुंच सकते हैं। यहां से वो टैक्सी या बस की मदद से ओरछा पहुंच सकते हैं।
ओरछा के लिए निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर हवाई अड्डा है, जो लगभग 123 किलोमीटर दूर स्थित है। दूसरा विकल्प खजुराहो हवाई अड्डा है, जो ओरछा से लगभग 175 किलोमीटर दूर है। इन हवाई अड्डों से, आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
ओरछा सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। मध्य प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के विभिन्न हिस्सों से बसें, टैक्सियां और निजी कारें आसानी से गंतव्य तक पहुंच सकती हैं।
पांच गांव का मिलाकर है चित्रकूट है। इसका कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश और कुछ मध्यप्रदेश में आता है। यहां के सुंदर प्राकृतिक स्थल, कल कल बहते झरने, घने जंगल, चहकते पक्षी और बहती नदियां मानसून एवं प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। चित्रकूट मध्य प्रदेश के सतना जिले में आता है, जबकि चित्रकूट धाम उत्तर प्रदेश में पड़ता है।
धार्मिक दृष्टि के साथ साथ पर्यटन के क्षेत्र में भी चित्रकूट का एक विशेष महत्व है। मानसूनी सीजन में भी आप यहां घूमने का प्लान बना सकते हैं। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और पहाड़ बरसात के दिनों में आपके आनंद को चार चांद लगा देंगी।
चित्रकूट का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इलाहाबाद है। वहीं, खजुराहो एयरपोर्ट चित्रकूट से 185 किलोमीटर दूरी पर सबसे नजदीक है। यहां भी हवाई पट्टी बनकर तैयार है, पर अबतक उड़ान शुरू नहीं हुईं। इसके अलावा ट्रेन और सड़क मार्ग के लिए भी यहां जबलपुर, ग्वालियर और कटनी की तरफ से आ सकते हैं।
वैसे तो चित्रकूट का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इलाहाबाद है। वहीं, अगर मध्य प्रदेश की बात करें तो खजुराहो एयरपोर्ट चित्रकूट से 185 किलोमीटर दूरी पर सबसे नजदीक है। चित्रकूट में भी हवाई पट्टी बनकर तैयार है, लेकिन यहां अबतक उड़ानें शुरू नहीं हुईं।
चित्रकूट से 8 किलोमीटर की दूर-करवी- निकटतम रेलवे स्टेशन है। इलाहाबाद, जबलपुर, दिल्ली, झांसी, हावड़ा, आगरा,मथुरा, लखनऊ, कानपुर,ग्वालियर, रायपुर, कटनी आदि शहरों से रेलगाड़ियां चलती हैं। इसके अलावा शिवरामपुर रेलवे स्टेशन की चित्रकूट से दूरी महज 4 किलोमीटर है।
चित्रकूट के लिए इलाहाबाद, बांदा, झांसी, महोबा, कानपुर, छतरपुर, सतना, फैजाबाद, लखनऊ, मैहर आदि शहरों से नियमित बस सेवाएं हैं। यानी सभी तरफ से चित्रकूट के लिए बसें आसानी से मिल जाती हैं। सतना से चित्रकूट मार्ग बनने के बाद से यहां से चित्रकूट के लिए बसें चलने लगी हैं। सागर से होती हुई बस चित्रकूट पहुंचती है।
मध्य प्रदेश के प्राचीन स्थल धार जिले की कुक्षी तहसील में स्थित बाघ की गुफाएं इंदौर शहर से 60 किलोमीटर की दूरी पर ही है। बाघिनी नामक छोटी-सी नदी के बाएं तट पर और विंध्य पर्वत के दक्षिण ढलान पर स्थित इन गुफाओं का इतिहास भी रहस्यों से भरा है। माना जाता है कि इन गुफाओं का निर्माण भगवान बुद्ध की रोजान होने वाली दिव्यवार्ता को प्रतिपादित करने हेतु निर्मित और चित्रित किया गया था। प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित इन गुफाओं को बारिश के दिनों में देखना बहुत अच्छा अनुभव साबित होगा।
बता दें कि, यहां कुल 9 गुफाएं हैं जिनमें से 1, 7, 8 और 9वीं गुफा नष्टप्राय है, जबकि दूसरे नंबर की गुफा 'पाण्डव गुफा' नाम से मशहूर है। वहीं तीसरी गुफा 'हाथीखाना' और चौथी 'रंगमहल' नाम से जानी जाती है। इन गुफाओं का निर्माण संभवतः 5वी-6वीं शताब्दी ई. में शिलाएं काटकर किया होगा। ये गुफा, भित्ति चित्रों के लिए खासा पहचानी जाती हैं। धार की गुफा पूरे भारत में चट्टान में की गई खुदाई का सबसे अद्भुत उदाहरण है, जिसे वास्तुकला का बढ़िया नमूना माना जाता है। इन गुफाओं के भित्तिचित्र अजंता गुफाओं के समकालीन हैं। महेश्वर के महाराज सुबंधु की अभिलेखित 416-17 ईस्वी के एक ताम्र पात्र में इस बौद्ध विहार को दिए गए अनुदान का उल्लेख है। उस अभिलेख में इस विहार को कल्याण विहार कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध भिक्षु दातक ने बाघ गुफाओं की रचना की थी।
बाघ गुफाए एमपी के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित हैं। ये धार और मांडू के नज़दीक है, इसलिए धार या मांडू में होटल में रहने के दौरान, हम भ्रमण यात्रा के रूप में इन गुफाओं को देख सकते हैं। यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, इसलिए यहां आने के लिए अपनी कैब या कार का इस्तेमाल बढ़िया विकल्प है।
इंदौर के रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद, आप धार के लिए प्राइवेट बस किराए पर ले सकते हैं या इंदौर से टैक्सी किराए पर लेकर सीधे बाघ की गुफा तक पहुंच सकते हैं। क्योंकि, गुफाएं मुख्य मार्ग से सटी हुई नहीं हैं और इसलिए सरदारपुर के बाद बाग गुफाओं के रास्ते पर धार की ओर मुड़ना होगा। अगर आप इंदौर से धार के लिए बस ले रहे हैं तो आपको धार से बाघ गुफाओं तक प्राइवेट टैक्सी लेकर जाना चाहिए। क्योंकि गुफाओं तक जाने के लिए अलग से कोई सार्वजनिक परिवहन फिलहाल नहीं है।
बाग गुफाओं तक पहुंचने के लिए सीधे तौर पर हवाई सुविदा उपलब्ध नहीं है। इसलिए पहले इंदौर एयरपोर्ट पहुंचना होगा, जहां से इंटरनेशनल कनेक्टिविटी उपलब्ध है। साथ ही ये एमपी का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है। यहां से बाघ गुफाएं 161 किमी दूर है, जबकि धार जिला मुख्यालय इंदौर से 64 कि.मी की दूरी पर है। गुफाएं धार से 97 किमी दूर हैं। इसलिए गुफाओं के रास्ते में धार किले को भी कवर किया जा सकता है।
निकटतम रेलवे स्टेशन इंदौर है, जो बाग गुफाओं से लगभग 160 किमी दूर है। इंदौर से बाग गुफाओं तक निजी परिवहन मिल सकता है। इंदौर रेलवे स्टेशन चेन्नई-मुंबई रेल मार्ग पर स्थित है। इंदौर के लिए विभिन्न स्थानों से कुछ ट्रेनें हैं।
दुनियाभर के खूबरसूरत शहरों की बात हो और नवाबों के शहर भोपाल का जिक्र न हो, ये तो संभव ही नहीं है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को झीलों के शहर के नाम से भी जाना जाता है। खुशनुमा मौसम और दिलकश नजारों वाले इस शहर में दुनियाभर से लोग घूमने आते हैं। ये शहर अपनी प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के तौर पर दुनियाभर में पहचाना जाता है। बारिश के दिनों में इस शहर की खूबसूरती अपने आप में चार चांद लगा देती है। शहर से सटे पिकनिक स्पॉट्स में भीम बैठका, अभयारण्य और भोजपुर, चिकलौद कोठी, इस्लाम नगर किला आदि विशेष पर्टन क्षेत्र हैं। जहां बारिश के दिनों में आने का आनंद ही कुछ और होता है।
महादेव पानी झरना भोपाल के शहरवासियों के बीच अपनी अनूठी पहचान रखता है। घने जंगलों में स्थित महादेव पानी वाटर फॉल शहर से महज 25 कि.मी की दूरी पर है। मानसून में प्रकृति खिल उठती है। मानसून के इन दिनों में ये पिकनिक स्पॉट बन जाता है। 100 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता पानी का झरना टूरिस्ट को अपनी ओर खासा आकर्षित करता है।
मानसून में भोपाल बड़ा तालाब देश का पहला मानव निर्मित तालाब है। तालाब के मुख्य आकर्षण का केंद्र बोट क्लब, भदभदा डेम और लक्ष्मण झूला। जहां से इस ताल को निहारने दूर दूर से सैलानी आते हैं। मानसून में बड़े तालाब को देखने पर नजारा बिल्कुल वैसा ही महसूस होता है जैसे समुद्र में पड़ी सीप खुल गई और तालाब में नजर आने वाली हर चीज, बोटिंग करते लोग उसमें रखे मोती हों।
राजधानी से महज 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक सांची को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। ये स्थल यूनेस्कों के ऐतिहासिक विरासत स्थलों में से एक है। इसका निर्माण सम्राट आशोक के शासनकाल में किया गया था। यह बौद्ध विहार के रूप में दुनिया भर में मशहूर है। इसके आसपास पसरी हरियाली और इसकी लोकेशन मानसून सीजन में निखरकर सामने आती है।
उदयगिरी गुफाएं सांची से थोड़ी ही दूरी पर स्थित हैं। यहां 21 गुफाएं हैं, जिनमें वैष्णववाद (विष्णु), शक्तिवाद (दुर्गा और मातृकाएं), जैन धर्म और शैववाद (शिव) की प्रतिमा है। उदयगिरि गुफाओं का स्थल गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय का संरक्षण प्राप्त था। इसका निर्माण 250 ई. में शुरु हुआ था तथा 410 ई. में बनकर तैयार हुआ। इन गुफाओं की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1870 के दशक में की थी। यहां आप चट्टानों की ऊंचाई पर चढ़ते जाएं और पर्वत के शिखर से दूर-दूर तक हरियाली की मखमली चादर देखकर आपका दिल भी मखमली हो जाएगा।
यह गुफाएं काफी चर्चित ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है जो महाभारत काल के भीम से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल के दौरान पांडू पुत्र भीम यहां आए थे। इसके अलावा यह जगह यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। ये हिस्टॉरिकल प्लेस बारिश के दिनों में पिकनिक का मजा दोगुना कर देता है।
मध्य प्रदेश की राजधानी होने के चलते इस खूबसूरत शहर तक पहुंचने के लिए आप किसी भी संसाधन का इस्तेमाल कर सकते हैं। यानी हवाई, ट्रेन या सड़क मार्ग से आप भोपाल आ सकते हैं। इसके अलावा, देश के किसी भी कौने से आप भोपाल अपने निजी वाहन से भी आसानी से भोपाल आ सकते हैं।
भोपाल मुंबई, इंदौर, दिल्ली और ग्वालियर के लिए नियमित एयरलाइस द्वारा जुड़ा हुआ है। विभिन्न एयरलाइंस भोपाल को दिल्ली, गुवाहाटी, गोवा, इंदौर और लखनऊ से जोड़ती है। हवाई अड्डा शहर के बस स्टेंड से महज 15 कि.मी दूरी पर स्थित है। जो शहर में स्थित है।
भोपाल जंक्शन (स्टेशन कोड: BPL), जो पुराने शहर के हमीदिया रोड पर स्थित है। ये भोपाल का मुख्य रेलवे स्टेशन है जो पश्चिम मध्य रेलवे के अंतर्गत आता है। जहां से देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से ट्रेनें रोजाना चलती हैं। इसके अलावा भोपाल में ही रानी कमलापति रेलवे स्टेशन है। वहीं, संत हिरदाराम रेलवे स्टेशन और मिसरोद स्टेशन है।
क्षेत्र और अंतरराज्यीय शहरों के लिए व्यापक बस सेवाएं (निजी और राज्य) हैं। ऐसे में आप किसी भी राज्य से आसानी से यहां सड़ मार्ग से परिवहन कर सकते हैं।
Updated on:
12 Sept 2024 06:29 pm
Published on:
12 Sept 2024 06:21 pm
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